Wednesday, 14 June 2017

Giraffe - tallest mammal in the world

Giraffe -  tallest mammal in the world


Giraffes are the tallest mammals in the world. Their long legs and necks help them to eat leaves at the top of tall trees that other animals cannot reach. They have long tongues, and no teeth at the front of their top jaw, which helps them to rip leaves from branches. Male giraffes use their necks for fighting, swinging them from side to side to head butt their opponent. There are four species: Northern giraffe, Southern giraffe , Masai giraffe  and reticulated giraffe .



 The long legs and necks of giraffes make them tallest of all the mammals; at around six foot, the legs alone are taller than many humans. They have a distinct spotted coat, with no two giraffes having the exact same pattern. The giraffes can be individually identified from their coats, a feature that is often used in the study of wild giraffe populations. On average, giraffes are between 16 and 20 ft (4.8–6 m) tall. Giraffes have long necks that can be over six foot (>1.8 m) in length. The long neck is useful for reaching food at the top of tall trees. 



The added height is good for spotting approaching predators, and males use their long necks to compete with other males, a fight known as necking. Male giraffes swing their long necks and repeatedly head butt the others body. Males with longer and stronger necks tend to win these fights, and often get the female. Giraffes are browsers, so use their long neck to feed on the leaves, shoots, and fruits of tall bushes and trees. 


They feed on a variety of plants and diet varies depending on location and season, but acacia leaves and shoots are most common. Giraffes have 32 teeth, the same number as humans. Teeth are located at the front of the bottom jaw, but only at the back of the top jaw. Instead of teeth they have a lump of tissue known as a hard plate, or dental pad, at the top of their mouths, which helps them to grip the leaves. Giraffe tongues are long, reaching around 20–21 in (50–53 cm) in length.


 Giraffe tongues and lips are tough and specially adapted to allow giraffes to forage on trees that other animals would avoid, such as acacias, which are very thorny. Baby Giraffes can stand within half an hour and after only 10 hours can run alongside their family. Young giraffes hang out in nursery groups until they are around 5 months old, resting and playing together while their mothers forage in the distance; one female will tend to stay and look after the young. Males are not involved in the raising of young.













Monday, 12 June 2017

कबूतर - खूबसूरत , उड़ाके और प्रतियोगी पक्षी

कबूतर  - खूबसूरत , उड़ाके और प्रतियोगी पक्षी




कबूतर एक शांत स्वभाव वाला पक्षी है। कबूतर सभी स्थानों पर भिन्न-भिन्न आकृति वाले होते हैं। कबूतर की सौ प्रजातियों के पक्षियों में से एक छोटे आकार वाले पक्षियों को फाख्ता या कपोत और बड़े को कबूतर कहते हैं। कबूतर ठंडे इलाकों और दूरदराज के द्वीपों को छोड़कर लगभग पूरी दुनिया में पाए जाते हैं। कबूतर सौम्य, पंखदार, छोटी चोंच वाले पक्षी हैं। जिनकी चोंच और माथे के बीच त्वचा की झिल्ली होती है। सभी कबूतर अपने सिर को आगे पीछे हिलाते हुए इतराई सी चाल चलते हैं। अपने लंबे पंखों और मजबूत उड़ान माँसपेशियों के कारण ये सशक्त कुशल उड़ाके होते हैं। ये एकसहचर होते हैं। इनका जीवन थोड़े दिन के लिए होता है। संदेशवाहक कबूतरों की चोंच लंबी होती है और शरीर भारी होता हैय बार्ब छोटी चोंच वाली नस्ल है। पंखदार पूंछ वाले कबूतर की पूंछ में 42 से अधिक पंख होते हैं उलूक कबूतर के गले के पंख बिखरे हुए होते हैं  फ्रिलबैक के पंख उल्टी दिशा में होते है जैकोबिन के गले के पंख छतरी के सामान होते हैं। टंबलर कबूतर उड़ते समय उल्टी दिशा में गोता लगाते हैं।



नई दुनिया का यात्री कबूतर अब विलुप्त हो गया है। भारत में 34 से अधिक किस्मों के कबूतर पाए जाते हैं। इसकी सामान्य प्रजातियाँ इस प्रकार हैं, नीला, रॉक कबूतर हरा शाही कबूतर जंगली और हरा कबूतर हैं। हिमालय का हिम कबूतर, तिब्बत के पठार का पहाड़ी कबूतर और पर्वतीय क्षेत्र के शाही जंगली कबूतर, अंडमान का जंगली कबूतर, निकोबार का पाइड इंपीरियल कबूतर, पीतवर्णी कबूतर और निकोबारी कबूतर   कबूतर सूर्य की दिशा, गंध और पृथ्वी के चुम्बकत्व से वापस आने की दिशा तय करते हैं.। कबूतर ऐसा पक्षी है जो घोंसला नहीं बनाता. यह मकानों के छज्जों, पेड़ों की टहनियों आदि पर रात गुजार लेता है कबूतर विश्व के सभी देशों में पाये जाते हैं. समतल से लेकर पहाड़ों तक इनके निवास है बड़ी-बड़ी इमारतों, मंदिरों, मस्जिदों, पुराने मकानों पर हजारों की संख्या में कबूतर बैठे रहते हैं. मकानों, कुओं और पहाड़ों में मौजूद कोटरों में कबूतर अंडे देते हैं. इसीलिए अंग्रेजी में इन्हें रॉक-पिजन के नाम से पुकारते हैं. कबूतर के दुश्मन भी कम नहीं हैं प्रत्येक मांसाहारी जीव के लिए कबूतर का मांस स्वादिष्ट भोजन है   गरुड़, चील, बिल्ली जैसे जीव तो घरों की छतों से उन्हें उठा ले जाते हैं  




कबूतर का मुख्य भोजन अनाज, मेवे और फल आदि हैं. ये पार्क और छतों पर झुंड बनाकर दानों को चुगते हैं तथा नाच उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट करते प्रतीत होते हैं.कबूतरों को पालतू बनाये जाने का इतिहास मिस्र से शुरू होता है. ईसा से लगभग 450 वर्ष पूर्व वहां के राजा जूशू ने एक दर्जन कबूतर पाले थे.भारत में प्राचीन काल से ही कबूतर पालने का इतिहास रहा है   यह इतिहास शुरू से ही मुस्लिम समाज के पेशे के रूप में रहा है.अकबर ने तीन सौ प्रशिक्षित कबूतरों को पाला था. बगदाद के सुल्तान ने सबसे पहले 950 ईसवी में कबूतरों से डाक व्यवस्था शुरू की थी  



कबूतर की आवाज निस्संदेह गुटर गूं, गुर्राहट सिसकारी और सीटी की ध्वनि जैसी होती है। बिलिंग कबूतर और उनकी प्रणय रीति सामान्य दृश्य है, जिसमें ये झुककर गुटर गूं करते हैं। नर झुककर सिर आगे पीछे हिलाते हुए और गर्दन छाती फुलाकर प्रदर्शन करता है। भारत में पायी जाने वाली कबूतरों की  जातियों में मुख्य है रहबान, लोटन, मुक्खी, शीराज, बगदादी और लक्का. भारत में लक्का कबूतर के मांस को लकवा रोग के लिए काफी फायदेमंद माना जाता है. लकवे का कोई शिकार हुआ नहीं कि लक्का कबूतरों पर आफत जाती है  




मोर - शिष्टता और सुंदरता का प्रतीक

मोर - शिष्टता और सुंदरता का प्रतीक


मोर भारत का राष्ट्रीय पक्षी है। रूप और गुण दोनों में मोर अतुलनीय है। मोर बहुत सुन्दर और इसके पंखों में इन्द्रधनुषी रंग बिखरे हुए होते हैं। बरसात के मौसम में बादलों को देखकर पक्षी राज मोर झूम उठता है। अपने पंखों को फैलाकर जब यह नाचता है तो मोरनी के साथ साथ सभी इसके नृत्य के दीवाने हो जाते हैं। मोर की ऊंचाई लगभग डेढ़ दो फुट होती है मगर इसका शरीर कुछ बड़ा होता है। 


वास्तव में अपने लम्बे लम्बे पंखों के कारण यह काफी लम्बा लगता है। नाचते वक्त यह अपने पंख गोल घेरे में ऊपर उठा कर फैला लेता है। मोर के सिर पर एक चमकीली रंग बिरंगी कलगी होती है। इसकी चोंच थोड़ी लम्बी और नुकीली होती है। मोर के पैर उसकी तरह सुन्दर नहीं होते। किस्से कहानियों में कहा जाता है हि मोर अपने पैरों को देखकर रोता है। मोरनी मोर की तरह सुन्दर नहीं होती, क्योंकि उसके पंख मोर जैसे सुन्दर नहीं होते। मोर हरे भरे जंगलों और खेतों के पास ही रहते हैं। मोर का प्रिय भोजन है कीट पतंग और अनाज के दाने। मोर सांप को भी मार कर खा जाता है।


हमारे देश में मोर को पवित्र माना जाता है। भगवान कृष्ण अपने मुकुट में मोरपंख लगाते थे। मोरपंख के पंखे भी बनाये जाते हैं जो सजावट के काम आते हैं। मंदिरों में भी मोरपंख रखे जाते हैं। मोर कार्तिकेय भगवान का वाहन है एवं मां सरस्वती का प्रिय पक्षी है। पतली टांगें और भारी शरीर के कारण मोर अधिक उड़ नहीं सकते। जरूरत पड़ने पर यह तेज भाग सकते हैं। आयुर्वेद में मोरपंखों का प्रयोग दवा के रूप में किया जाता है। मोर के नृत्य की नकल करके मोरनृत्य नामक नृत्य किया जाता है। जिसमें नर्तक मोरपंख लगाकर उसकी तरह नाचते हैं। साइंस की भाषा में मोर को  पावो क्रिस्टेटस कहा जाता है। वहीं, अंग्रेजी में इसे पीफाउल और पीकॉक कहते हैं। 26 जनवरी 1963 को मोर को राष्ट्रीय पक्षी घोषित कर दिया गया। मोर-मोरनी के सहवास का समय जनवरी से अक्टूबर के बीच में होता है। मोर भी अन्य पक्षियों की तरह की सहवास करता है।  मोरनी एक बार में तीन से पांच अंडे देती है। ये अंडे सफेद पीले होते हैं। मोर सेक्स के दौरान अलग-अलग आवाजों के जरिए मोरनी को आकर्षित करता है। हिंदू धर्म में भी मान्य  मोर शिष्टता और सुंदरता का प्रतीक है।  मोर पंख को मुकुट और सिंहासनों पर लगाया जाता था। मोेर पंख में स्याही भरकर लिखने वाले कवियों ने इसकी महत्ता को बताया है। मोर हिंदू धर्म में खास तौर पर मान्य है। भगवान कृष्ण मोर पंख को माथे पर धारण करते थे। राष्ट्रीय पक्षी एवं  पक्षी राज होने  के  कारण  मोर की रक्षा करना हमारा  कर्तव्य है।