Saturday 30 August 2014

Toji Buddha Temple - Word Heritage

Toji Buddha Temple - Word Heritage 
















Toji ( To- ji, “ Eastern Temple”) is a Buddhist temple of the Shingon sect in the city center of Kyoto, Japan. It is best known for its five-story pagoda, the highest wooden tower in Japan. Toji is established by imperial edict in 796 AD and named Kyo-o-gokoku-ji, .Toji was built to guard the city. Today it is an oasis of calm in central Kyoto. 




The red-lacquered Lecture Hall (Kodo) contains a number of images influenced by Tibetan Tantric Buddhism, dating from the Heian Period and arranged in a sacred mandala with five Buddha images at the center, each carved from single blocks of wood and surrounded by Boddhisattvas, the Godai Myo-o (Five Fearful Kings) ,, the Shri-Tenno (Four Heavenly Kinds) and other Hindu deities. 




The original was built by Kulai in 825, though the present building is 16th century. Toji]s beautiful architechure, its pagoda surrounded by a traditional Japanese garden, and its moat filled with lotus flowers, turtles and carps, adds a fairytale atmosphere to the market. UNESCO designate Toji a Word Heritage Site in 1994.


Friday 29 August 2014

गणेश चतुर्थी

गणेश चतुर्थी














गणेश चतुर्थी भगवान गणेश, शिव और पार्वती के पुत्र के जन्मदिन के अवसर पर भारत भर में मनाया जाने वाला त्यौहार है । गणेश ज्ञान के भगवान और बाधाओं के पदच्युत हैं । गणेश चतुर्थी भाद्रपद के हिन्दू चंद्र मास की शुक्त पक्ष चतुर्थी को मनाया जाता है । इस साल गणेश चतुर्थी शुक्रवार, 29 अगस्त 2014 को पड़ रहा है ।
‘‘ वक्रतंुड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरू मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा । ’’










गणेश चतुर्थी पर, भगवान गणेश बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है । गणेश चतुर्थी का उत्सव, पर 10 दिनों के बाद समाप्त हो जाती है जो अनंत चतुदर्शी के रूप में जाना जाता है जो कि गणेश विसर्जन के दिन । गणेश चतुर्थी के दौरान लोगों को भगवान की मिट्टी की मूर्तियों को स्ािापित करने और एक और आधा, तीन, पाचं, सात, नौ या ग्यारह दिनों के लिए उसे पूजा करते हैं । गणेश चतुर्थी के दिनों में भक्तगण फूल, दूब, मोदक, नारियल, चंदन, तेल दीपक और अगरबत्ती का प्रयोग कर भगवान गणेश की पूजा करते हैं । वैदिक ज्योतिष के अनुसार गणेश पूजा का शुभ समय 12.14 से 1.04  तक है गणेश जी की स्ािापना 1.04 बजे तक पूरा किया जाना चाहिए । गणेश चतुर्थी पूजा विधि, व्रत/उपवास का समय 2.09 पर शुरू होगा (29 अगस्त ) और उपवास 3.42 पर समाप्त होगा (30 अगस्त 2014) ।













गणपति को ज्ञान का देवता कहा जाता है । गणेश चतुर्थी का प्राकृतिक महत्व देखते हुए इसे मानसून से भी जोड़ देखा जाता है ।
गणेश जी के 12 नामों की विवेचना - सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्ण, लंबोदर, विकट, विघ्ननाशन, विनायक, धूमकेतु,गणाध्यक्ष, भालचंद्र और गजानन ।
1.            सुमुख - सुन्दर मुख वाले - माता पार्वती जी ने अपरंपार सौंदर्यवान बनाया इसलिए इन दोनों पुत्रों को स्वाभाविक रूप से ही सुमुखी कहा जाता है । चंद्रमा से एक तेजपुंज गजानन के मुख में समा गया इसलिए भी इन्हें सुमुख कहा जाता है । इनके मुँह की संपूर्ण शोभा का आकलन करते हुए इन्हंे मंगल के प्रतीक के रूप में माना गया है ।













2.         एक दंत - एक दांत वाले, की भावना ऐसा भी दर्शाती है कि जीवन में सफलता वही प्राप्त करता है, जिस का एक लक्ष्य हो । एक शब्द माया का बोधक है और दांत शब्द मायिक का बोधक है । श्री गणेशजी में माया और मायिक का योग होने से वे एकदंत कहलाते हैं । 
3.         कपिल - जिनके श्री विग्रह से नीले और पीले वर्ण की आभा का प्रसार होता है । कपिल का अर्थ गोरा, ताम्रवर्ण, मटमैला होता है । कपिलवर्णी गणेशजी बुद्धिरूपी दही, आज्ञारूप घी, उन्नत भावरूपी दुग्ध द्वारा मनुष्य को पुष्ट बनाते हैं तथा मनुष्यों के अमंगल का नाश करते हैं विघ्न दूर करते हैं । दिव्य भावों द्वारा त्रिविधि ताप का नाश करते हैं ।













4.            गजकर्णक - हाथी के कान वाले गणेशजी को बुद्धि का अनुष्ठाता देव माना गया है । अराध्य देव को लंबे कान वाला दिर्शाया है, इसलिए वे बहुश्रुत मालूम पड़ते हैं । सुनने को तो सब कुछ सुन लेते हैं परन्तु बिना विचारे करते नहीं । 
5.            लम्बोदर - लम्बे उदर (पेट) वाले - किसी भी तरह की भलीबुरी बात को पेट में समाहित करना बड़ा सदगुण है । भगवान शंकर के डमरू की आवाज से संपूर्ण वेदों का ज्ञान, पार्वती जी के पैर की पायल की आवाज से संगीत का ज्ञान और शंकर का तांडव नृत्य देख कर नृत्य विद्या का अध्ययन किया इस विविध ज्ञान प्राप्त करने और उसे समाहित करने के लिए बड़े पेट की आवश्यकता थी ।











6.         विकट - सर्वश्रेेष्ठ - गणेश का धड़ मनुष्य का है और मस्तक हाथी का है । इसलिए ऐसे प्रदर्शन का विकट होना स्वाभाविक ही है । समस्त विघ्नों को दूर करने के लिए विघ्नों के मार्ग में विकट स्वरूप् धारण करके खड़े हो जाते हैं । 
7.            विघ्ननाश - वास्तव में भगवान गणेश समस्त विघ्नों के विनायक हैं और इसलिए किसी भी कार्य के आरंभ में गणेश पूजा अनिवार्य मानी गई है ।
8.            विनायक - विशिष्ट नायक - गणेशजी में मुक्ति प्रदान करने की क्षमता है । गणेशजी भक्ति और मुक्ति के दाता माने जाते हैं ।  
9.         केतु - धूम्रकेतु - धुंए के से वर्ण की ध्वजा वाले - संकल्प - विकल्प की धूधली कल्पनाओं को साकार करने वाले और मूर्तस्वरूप दे कर ध्वजा की तरह लहराने वाले गणेशजी को धूमकेतू कहना यथार्थ है ।  मनुष्य के आध्यात्मिक और आधि-भौतिक मार्ग में आने वाले विघ्नों को अग्नि की तरह भस्मिभूत करने वाले गणेशजी का धूमकेतु नाम यथार्थ लगता है ।












10.            गणाध्यक्ष - गणों के स्वामी - गणपति जी दुनिया के पदार्थमात्र के स्वामी हैं । साथ ही गणों के स्वामी तो गणेशजी हैं । इसीलिए इनका नाम गणाध्यक्ष हैं । 
11.            चंद्रा - भाल चंद्र - मस्तक पर चंद्रमा धारण करने वाले - गजानन जी अपने ललाट पर चंद्र को धारण कर के उस की शीतल और निर्मल तेज प्रभा द्वारा दुनिया के सभी जीवों को आच्छादित करते हैं । व्यक्ति का मस्तक जितना शान्त होगर उतनी कुशलता से वह अपना कत्र्तव्य निभा सकेगा । गणेशजी गणों के पति हैं । इसलिए अपने ललाट पर सुधाकर-हिमांशु चंद्र को धारण करके अपने मस्तक को अतिशय शांत बनाने की आवश्यकता प्रत्येक व्यक्ति को समझाते हैं ।
12.            गजानन - हाथी के मुख वाले - हाथी की जीभ अन्य प्राणियों से अनोखी होती है । गुजराती में कहावत है - पडे चड़े, जीभ वडे़, ज प्राणी । मनुष्य के लिए यह सही है । अच्छी वाणी उसे चढ़ाती है और खराब वाणी उसे गिराती है परंतु हाथी की जीभ तो बाहर निकलती ही नहीं । यह तो अंदर के भाग में है अर्थात इसे वाणी के अनर्थ का भय नहीं हैं ।



















संकट चतुर्थी व्रत करने से जीवन में आए हुए हरेक प्रकार के संकट दूर होते हैं जीवन में विद्या , धन संतान और मोक्ष की प्राति होती है । सफेद पुष्प् अथवा जासुद अर्पण करने से कीर्ति मिलती है । दुर्वा अर्पण करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है और संतान का सुख मिलता है । सिंदूर अर्पण करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है । धूप अर्पण करने से कीर्ति मिलती है । मोदक / लडडू अर्पण करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है । भगवान गणेश किसी भी शुभ अवसर, या उत्सव शुरू करने से पहले, पूजा के पहले सम्मान के साथ सम्मान किया है ।

1. श्री मयूरेश्वर मंदिर

1. श्री मयूरेश्वर मंदिर




श्री मयूरेश्वर मंदिर - ज्ञान का हाथी , मंदिर पुणे से 80 किलोमीटर दूर स्थित है । मोरगांव गणेश मंदिर की पूजा का सबसे महत्वपूर्ण केन्द्र है । पौराणिक कथा के अनुसार भगवान गणेश ने दानव सिंधु से लोगों का बचाव किया था । मोरया गोसावी ने इस मंदिर के संरक्षण हैं आज मोरया गोसावी जो कि पेशवा शासकों के परिवार से है इसे व्यवस्थित कर रहे हैं । मोरेगांव मंदिर आठ श्रद्धेय मंदिरों की तीर्थ यात्रा का शुरूआती बिन्दु है तथा साथ ही तीर्थयात्री तीर्थयात्रा के अंत में मोरगांव मंदिर की यात्रा नहीं करता है तो तीर्थ अधूरा माना जाता है । मयूरेश्वर मंदिर में मुस्लिम वास्तुकला का प्रभाव दिखता है क्योंकि इसके निर्माण और संरक्षक के रूप में एक मुस्लिम मुखिसा उस समय था । मंदिर के चारों कोने मीनारों के के साथ एक लंबे पत्थर चारदिवारी से घिरे हैं । मंदिर के चार द्वार चार युगों की याद दिलाते हैं । 1. पूर्वी द्वार पर राम और सीता की छवि जो कि धर्म, कर्तव्य के प्रतीक के रूप में, 2. दक्षिणी द्वार पर शिव और पार्वती जो कि धन और प्रसिद्धि के प्रतीक के रूप में 3. पश्चिमी गेट पर कामदेव और रति जो कि इच्छा, प्रयार और कामुक खुशी के प्रतीक के रूप में और 4. उत्तरी द्वार पर वराह और देवी माही जो कि मोक्ष और शनि ब्रहम का प्रतीत मानी जाती हैं । 



मंदिर के द्वार पर एक बहुत बड़ी नंदी बैल की मूर्ति स्.थापित है जिसका मुंह भगवान की मूर्ति की तरफ है । यह नंदी भगवान शिव मंदिर ले जाया जा रहा था विश्राम के लिए उसे गणेश मंदिर पर रखा गया तो बाद में उसने वहां से जाने से मना कर दिया तब से आज नंदी और मूसा दोनों गणेश मंदिर के मुख्य द्वार के सरंक्षक माने जाते हैं । इस मंदिर में गणपति जी बैठी मुद्रा में विराजमान है तथा उनकी टंक बाई ओर की तरफ तथा चार भुजाएं एवं तीन नेत्र स्पष्ट प्रदर्शित हैं । गणेश मूर्ति के सामने गणेश के वराह मूसा एवं मोर हैं तथा गर्भगृह के बाहर नगना, भैरव हैं । मंदिर के विधानसभा भवन में गणेश के विभिन्न रूपों का चित्रण 23 विभिन्न मूर्तियों स्.थापित हैं । दिन में तीन बार सुबह 7 बजे, दोपहर 12 बजे और रात्रि 8 बजे पूजा की जाती है । मयूरेश्वर दूर से एक छोटे किले की तरह दिखता है ।



 मयूरेश्वर की मूर्ति के पास केवल मुख्य पुजारी को प्रवेश की अनुमति है । जिसमें गर्भगृह, गर्भगृह में है देवता विराजमान तीन आंखों , और अपने टंªक बांई ओर कर दिया है । आंखें और देवता की नाभि कीमती हीरों से जड़ी हुई है । सिर पर नागराज की नुकीले देखी जा सकती हैं । गणेश मूर्ति सिद्धि और बुद्धि की पीतल की मूर्तियों से घिरे हुए है । मूर्ति पर 100-150 साल तक सतत अभिषेक एवं सिंदूर  से वास्तवित मूर्ति से यह बहुत बड़ी दिखने लगी है । मुख्य द्वार गर्भगृह में देवता का सामना एक कछुआ और एक नंदी से होता है । हिन्दू मिथक के अनुसार मयूरेश्वर के मंदिर में भगवान गणेश द्वारा सिंधुरासुर नामक एक राक्षस की हत्या से संबंधित है । सभी देवताओं को सिंधु के कहर से बचाने के लिए भगवान गणेश से प्रार्थना की और भगवान गणेश मोर पर सवार होकर युद्ध में राक्षस सिंधु का नाश किया और बाद में मोर को भाई स्कंद को भेंट कर दिया ।





Wednesday 27 August 2014

हरतालिका तीज - सुखी दापत्व व्रत

हरतालिका तीज - सुखी दापत्व व्रत















हरतालिका तीज सावन माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनायी जाती है । यह मुख्यतः स्त्रियों का त्योहार है । हरतालिका तीज हस्त नक्षत्र के दिन कुंवारी और सौभाग्यवती महिलाएं गौरी शंकर की पूजा करती हैं । .हरतालिका तीज श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को श्रावणी तीज कहते हैं जनमानस में यह हरतालिका तीज के नाम से जानी जाती है । 















इस समय जब प्रकृति चारों तरफ हरियाली की चादर सी बिछा देती है तो प्रकृति की इस छटा को देखकर मन पुलकित होकर नाच उठता है । जगह-जगह झूल पड़ते हैं । स्त्रियों के समूह गीत गा-गाकर झूला झलते हैं । इस दिन कुमारी और सौभाग्वती महिला गौरी श्ंाकर की पूजा करती हैं । सावन की तीज में महिलाएं व्रत रखती हैं इस व्रत को अविवाहित कन्याएं योग्य वर को पाने के लिए करती हैं तथा विवाहित महिलाएं अपने सुखी दांपत्य की चाहत के लिए करती हैं ।














ब्रहम मुहूर्त में जागें, नित्य कर्मों से निवृत होकर, उसके पश्चात तिल तथा आंवला के चूर्ण के साथ स्नान करें फिर पवित्र स्थान में आटे से चैक पूर कर केले का मण्डप बनाकर शिव पार्वती की पार्थिव-प्रतिमा (मिटटी की मूर्ति) बनाकर स्.थापित करें । तत्पश्चात नवीन वस्त्र धारण करके आसन पर पूर्वाभिमुख बैठकर देशकालादि के उच्चारण के साथ हाथ में जल लेकर संकल्प करें क्योंकि मैं आज तीन के दिन शिव पार्वती का पूजन करूंगी इसके अनन्तर ‘‘ श्री गणेशायः नमः’’ उच्चारण करते हुए गणेशजी का पूजन करें । ‘‘ कनशाभ्यो नमः’’ से वरूणादि देवों का आवाहन करके कलश पूजन करें । चन्दनादि समर्पण करें, कलशमुद्रा दिखावें घन्टा बजावें जिससे राक्षस भाग जायं और देवताओं का शुभागमन हो, गन्ध अक्षतादि द्वारा घंटा को नमस्कार करें, दीपक को नमस्कार कर पुष्पाक्षतादि से पूजन करें ।








श्री शिव हरितालिका की जयजयकार महा-अभिषेक करें । पूजा के पश्चात अन्न, वस्त्र, फल दक्षिणा युक्तपात्र हरितालिका देवता के प्रसन्नार्थ ब्राहमण को दान करें उसमें ‘‘ न मम ’’ कहना आवश्यक है । इससे देवता प्रसन्न होते हैं । दान लेने वाले संकल्प लेकर वस्तुओ के ग्रहण करने की स्वीकृति देवे, इसके बाद विसर्जन करें । विसर्जन में अक्षत एवं जल छिड़ कें ।  





Saturday 23 August 2014

हरसिद्धि मंदिर उज्जैन - 52वां शक्तिपीठ

हरसिद्धि मंदिर उज्जैन - 52वां शक्तिपीठ
















हरसिद्धि मंदिर 52 वां शक्ति पीठ के रूप में जाना जाता है । हरसिद्धि मंदिर उज्जैन के मंदिरों के शहर में एक महत्वपूर्ण मंदिर है । यह मंदिर देवी अन्नपूर्णा को समर्पित है जोे गहरे सिंदूरी रंग में रंगी है । देवी अन्नपूर्णा की मूर्ति देवी महालक्ष्मी और देवी सरस्वती की मूर्तियों के बीच विराजमान है । 













श्रीयंत्र शक्ति की शक्ति का प्रतीक है और श्रीयंत्र भी इस मंदिर में प्रतिष्ठित है । पौराणिक कथा के अनुसार ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शिव सती के शरीर को ले जा रहे थे, तब उसकी कोहनी इस जगह पर गिरी थी । मंदिर का पुनिर्माण मराठों ने किया अतः मराठी कला दीपकों से सजे हुए दो खंभों पर दिखाई देती है । 











मंदिर के शीर्ष पर एक सुन्दर कलात्मक स्तंभ है इस देवी को स्थानीय लोगों द्वारा बहुत शक्तिशाली माना जाता है । इस मंदिर के परिसर में एक प्राचीन कुँआ है । उज्जैन में हरसिद्धि मंदिर हिन्दू धर्म में शक्तिपीठ में से एक है और वास्तुकला का मराठा शैली का प्रतीक है ।













देवी के शरीर के अन्य भागों में गिर स्थानों पर जहां भारत में शक्तिपीठों के बाकी का गठन किया है । नवरात्रि पर 15 फुट ऊंचाई के दो दीप स्तंभों को प्रकाशवान किया जाता है ।









Friday 22 August 2014

बछ बारस पूजा - शुभकामनाएं

बछ बारस पूजा - शुभकामनाएं















बछ बारस (वत्स द्वादशी)  प्राचीन हिन्दू परंपरा के अनुसार सुहागिनें और माताएं बछड़े वाली गाय की पूजा करते हुए संतान की सकुशलता की कामना की जाती है । बछ बारस का पर्व श्रद्धा व उल्लास से मनाया जाता है । गाय में देवताओं का वास होता है ।







 .बछ बारस पूजा पुत्र की लंबी आयु के लिए की जाती है जिसमें दिन भर उपवास रख कर  गाय और बछड़े की पूजा की जाती है । गोपाल मंदिर में मक्का व बाजरा से बने व्यंजन का भोग लगाकर उद्यापन किया जाता है । महिलाओं द्वारा धार्मिक परंपराओं के अनुरूप इसे मनाया जाता है । 













मालवा, राजस्थान सहित भारत में माताएं अपने संतान की सुख समृद्धि एवं लंबी उम्र के लिए गाय-बछड़े की पूजा करती है । सार्वजनिक स्थानों  पर आवारा गायों को हरा चारा खिलाकर पुण्य कमाया जाता है । इस पर्व में महिलाओं ने व्रत-उपवास आदि रखकर अपने पुत्र की सुख-समृद्धि एवं लम्बी उम्र की कामना की जाती है । घरों में मूंग और चने के व्यंजन बनाए जाते हैं एवं महिलाएं चाकू से कटी खाद्य सामग्री का सेवन नहीं करती हैं ।