Friday, 29 August 2014

गणेश चतुर्थी

गणेश चतुर्थी














गणेश चतुर्थी भगवान गणेश, शिव और पार्वती के पुत्र के जन्मदिन के अवसर पर भारत भर में मनाया जाने वाला त्यौहार है । गणेश ज्ञान के भगवान और बाधाओं के पदच्युत हैं । गणेश चतुर्थी भाद्रपद के हिन्दू चंद्र मास की शुक्त पक्ष चतुर्थी को मनाया जाता है । इस साल गणेश चतुर्थी शुक्रवार, 29 अगस्त 2014 को पड़ रहा है ।
‘‘ वक्रतंुड महाकाय कोटिसूर्यसमप्रभ ।
निर्विघ्नं कुरू मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा । ’’










गणेश चतुर्थी पर, भगवान गणेश बुद्धि, समृद्धि और सौभाग्य के देवता के रूप में पूजा जाता है । गणेश चतुर्थी का उत्सव, पर 10 दिनों के बाद समाप्त हो जाती है जो अनंत चतुदर्शी के रूप में जाना जाता है जो कि गणेश विसर्जन के दिन । गणेश चतुर्थी के दौरान लोगों को भगवान की मिट्टी की मूर्तियों को स्ािापित करने और एक और आधा, तीन, पाचं, सात, नौ या ग्यारह दिनों के लिए उसे पूजा करते हैं । गणेश चतुर्थी के दिनों में भक्तगण फूल, दूब, मोदक, नारियल, चंदन, तेल दीपक और अगरबत्ती का प्रयोग कर भगवान गणेश की पूजा करते हैं । वैदिक ज्योतिष के अनुसार गणेश पूजा का शुभ समय 12.14 से 1.04  तक है गणेश जी की स्ािापना 1.04 बजे तक पूरा किया जाना चाहिए । गणेश चतुर्थी पूजा विधि, व्रत/उपवास का समय 2.09 पर शुरू होगा (29 अगस्त ) और उपवास 3.42 पर समाप्त होगा (30 अगस्त 2014) ।













गणपति को ज्ञान का देवता कहा जाता है । गणेश चतुर्थी का प्राकृतिक महत्व देखते हुए इसे मानसून से भी जोड़ देखा जाता है ।
गणेश जी के 12 नामों की विवेचना - सुमुख, एकदंत, कपिल, गजकर्ण, लंबोदर, विकट, विघ्ननाशन, विनायक, धूमकेतु,गणाध्यक्ष, भालचंद्र और गजानन ।
1.            सुमुख - सुन्दर मुख वाले - माता पार्वती जी ने अपरंपार सौंदर्यवान बनाया इसलिए इन दोनों पुत्रों को स्वाभाविक रूप से ही सुमुखी कहा जाता है । चंद्रमा से एक तेजपुंज गजानन के मुख में समा गया इसलिए भी इन्हें सुमुख कहा जाता है । इनके मुँह की संपूर्ण शोभा का आकलन करते हुए इन्हंे मंगल के प्रतीक के रूप में माना गया है ।













2.         एक दंत - एक दांत वाले, की भावना ऐसा भी दर्शाती है कि जीवन में सफलता वही प्राप्त करता है, जिस का एक लक्ष्य हो । एक शब्द माया का बोधक है और दांत शब्द मायिक का बोधक है । श्री गणेशजी में माया और मायिक का योग होने से वे एकदंत कहलाते हैं । 
3.         कपिल - जिनके श्री विग्रह से नीले और पीले वर्ण की आभा का प्रसार होता है । कपिल का अर्थ गोरा, ताम्रवर्ण, मटमैला होता है । कपिलवर्णी गणेशजी बुद्धिरूपी दही, आज्ञारूप घी, उन्नत भावरूपी दुग्ध द्वारा मनुष्य को पुष्ट बनाते हैं तथा मनुष्यों के अमंगल का नाश करते हैं विघ्न दूर करते हैं । दिव्य भावों द्वारा त्रिविधि ताप का नाश करते हैं ।













4.            गजकर्णक - हाथी के कान वाले गणेशजी को बुद्धि का अनुष्ठाता देव माना गया है । अराध्य देव को लंबे कान वाला दिर्शाया है, इसलिए वे बहुश्रुत मालूम पड़ते हैं । सुनने को तो सब कुछ सुन लेते हैं परन्तु बिना विचारे करते नहीं । 
5.            लम्बोदर - लम्बे उदर (पेट) वाले - किसी भी तरह की भलीबुरी बात को पेट में समाहित करना बड़ा सदगुण है । भगवान शंकर के डमरू की आवाज से संपूर्ण वेदों का ज्ञान, पार्वती जी के पैर की पायल की आवाज से संगीत का ज्ञान और शंकर का तांडव नृत्य देख कर नृत्य विद्या का अध्ययन किया इस विविध ज्ञान प्राप्त करने और उसे समाहित करने के लिए बड़े पेट की आवश्यकता थी ।











6.         विकट - सर्वश्रेेष्ठ - गणेश का धड़ मनुष्य का है और मस्तक हाथी का है । इसलिए ऐसे प्रदर्शन का विकट होना स्वाभाविक ही है । समस्त विघ्नों को दूर करने के लिए विघ्नों के मार्ग में विकट स्वरूप् धारण करके खड़े हो जाते हैं । 
7.            विघ्ननाश - वास्तव में भगवान गणेश समस्त विघ्नों के विनायक हैं और इसलिए किसी भी कार्य के आरंभ में गणेश पूजा अनिवार्य मानी गई है ।
8.            विनायक - विशिष्ट नायक - गणेशजी में मुक्ति प्रदान करने की क्षमता है । गणेशजी भक्ति और मुक्ति के दाता माने जाते हैं ।  
9.         केतु - धूम्रकेतु - धुंए के से वर्ण की ध्वजा वाले - संकल्प - विकल्प की धूधली कल्पनाओं को साकार करने वाले और मूर्तस्वरूप दे कर ध्वजा की तरह लहराने वाले गणेशजी को धूमकेतू कहना यथार्थ है ।  मनुष्य के आध्यात्मिक और आधि-भौतिक मार्ग में आने वाले विघ्नों को अग्नि की तरह भस्मिभूत करने वाले गणेशजी का धूमकेतु नाम यथार्थ लगता है ।












10.            गणाध्यक्ष - गणों के स्वामी - गणपति जी दुनिया के पदार्थमात्र के स्वामी हैं । साथ ही गणों के स्वामी तो गणेशजी हैं । इसीलिए इनका नाम गणाध्यक्ष हैं । 
11.            चंद्रा - भाल चंद्र - मस्तक पर चंद्रमा धारण करने वाले - गजानन जी अपने ललाट पर चंद्र को धारण कर के उस की शीतल और निर्मल तेज प्रभा द्वारा दुनिया के सभी जीवों को आच्छादित करते हैं । व्यक्ति का मस्तक जितना शान्त होगर उतनी कुशलता से वह अपना कत्र्तव्य निभा सकेगा । गणेशजी गणों के पति हैं । इसलिए अपने ललाट पर सुधाकर-हिमांशु चंद्र को धारण करके अपने मस्तक को अतिशय शांत बनाने की आवश्यकता प्रत्येक व्यक्ति को समझाते हैं ।
12.            गजानन - हाथी के मुख वाले - हाथी की जीभ अन्य प्राणियों से अनोखी होती है । गुजराती में कहावत है - पडे चड़े, जीभ वडे़, ज प्राणी । मनुष्य के लिए यह सही है । अच्छी वाणी उसे चढ़ाती है और खराब वाणी उसे गिराती है परंतु हाथी की जीभ तो बाहर निकलती ही नहीं । यह तो अंदर के भाग में है अर्थात इसे वाणी के अनर्थ का भय नहीं हैं ।



















संकट चतुर्थी व्रत करने से जीवन में आए हुए हरेक प्रकार के संकट दूर होते हैं जीवन में विद्या , धन संतान और मोक्ष की प्राति होती है । सफेद पुष्प् अथवा जासुद अर्पण करने से कीर्ति मिलती है । दुर्वा अर्पण करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है और संतान का सुख मिलता है । सिंदूर अर्पण करने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है । धूप अर्पण करने से कीर्ति मिलती है । मोदक / लडडू अर्पण करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है । भगवान गणेश किसी भी शुभ अवसर, या उत्सव शुरू करने से पहले, पूजा के पहले सम्मान के साथ सम्मान किया है ।

No comments:

Post a Comment