गुरूद्वारा पत्थर साहिब: लेह में गुरूनानक देवजी का आर्शिवाद
लद्दाख के लेह कारगिल सड़क पर 12000
फीट समुद्र के स्तर से ऊपर गुरू नानक की स्मृति में बनाया गया था । गुरूनानक देव
ने अपने जीवनकाल के दौरान कई दूर की स्थानों की यात्राएं की जिसमें एक जगह थी
तिब्बत । गुरू नानक देव जी ने 1515-18 की अवधि के दौरान बताया गया कि पंजाब के
माध्यम से श्रीनगर, सिक्किम, नेपाल और तिब्बत के लिए यात्रा करने के बाद वे इस जगह
पर विश्राम कर रहे थे ।
एक स्थानीय किवदंती के अनुसार एक दुष्ट राक्षस गुरूद्वारा
क्षेत्र में लोगों को आतंकित करता रहता था स्थानीय लोगों की मदद के लिए ईश्वर से
प्रार्थना की तो श्री गुरू नानक ने उनकी मुसीबतों को सुना और सहायता के लिए आए ।
पहाड़ी के नीचे नदी के किनारे पर नीचे बसे गुरू उपदेश के साथ लोगों को आर्शीवाद
दिया । तब स्थानीय लोगों ने उन्हें नानक लामा कह के बुलाया ।
यह सुन एवं देख
कर दानव को बहुत क्रोध आया और उसने गुरू
नानक देव को मारने का फेसला किया । जब गुरू जी एक सुबह ध्यान में बैठे थे तब हत्या
के इरादे से उसने पहाड़ी की चोटी से नीचे एक बड़े पत्थर (बोल्डर) को धक्का दे दिया
और ढाल होने की वजह से पत्थर तेज गति से आकर गुरू जी के शरीर को छुआ और मोम की तरह
नरम होकर गुरू नानक की पीठ पर आकर रूक गया । गुरू जी ध्यान मग्न ही रहे और बिलकुल
भी डिस्टर्ब नहीं हुए ।
दानव ने जब देखा की गुरू जी की हत्या की दी गई है तो वह
पहाड़ी के नीचे आया और गुरूजी को ध्यान में देख कर दंग रह गया और उसने गुस्से से
दाहिने पैर से बोल्डर को धक्का देने की कोशिश की लेकिन पत्थर अभी भी गर्म मोम की
तरह कोमल ही था । उसके पैर का चिन्ह बोल्डर पर उभर आया और तो दानव को महान गुरू
जीे आध्यात्मिक शक्ति का एवं अपनी बेबसी का एहसास हुआ और वह गुरूनानक देव के चरणों
में गिर गया और माफी मांगी । गुरू जी ने उसे बुरे कामों को छोड़, लोगों की सेवा
करने की सलाह दी ।
पत्थर गुरू नानक देव का शरीर और दानव के पदचिन्ह की छाप दोनों
ही गुरूद्ववारा पत्थर साहिब में प्रदशित किया गया है । सन् 1965 में सड़क का
निर्माण किया गया । गुरूद्ववारे के दर्शन के लिए नई दिल्ली, जम्मू और श्रीनगर से
लेह के लिए एक सीधी उड़ान है । अगर आप सड़क मार्ग से लेह की यात्रा करना चाहते हैं
तो श्रीनगर के माध्यम से और दूसरा मनाली / हिमाचल प्रदेश के जरिए जाया जा सकता है
।
सड़क मार्ग मइ से नवम्बर तक बंद रहता क्योंकि अत्यधिक बर्फबारी होती है । जून से
अक्टूबर तक सड़क मार्ग खुला रहता है । लेह ऊंचाई पर होने से आॅक्सीजन की कमी की वजह
से सांस लेने में तकलीफ हो सकती है । यहां का तापमान -20 डिग्री से नीचे चला जाता
है । लेह से गुरूद्वारा पत्थर साहिब सड़क मार्ग से 25 किलोमीटर है । गुरूद्वारा
वर्तमान में भारतीय सेना द्वारा बनाए रखा जा रहा है ।
गुरू नानक देव के उपदेशों में - कीरत करो,नाम जपो और बन्ड के छको ।
ReplyDeleteगुरू नानक देव एक महान क्रान्तिकारी, समाज सुधारक और राष्ट्रवादी गुरू थे । जिन्होंने भाईचारा, एकता, जातिवाद को मिटाने का उपदेश अपनी विभिन्न यात्राओं में घूम घूम कर दिया । लद्दाख के लेह में यात्रा के दौरान पहाड़ी से गिरते पत्थर/बोल्डर को रोककर सतसंगियों की रक्षा की, जहां यह गुरूद्वारा पत्थर साहिब है ।
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