हरछठ पूजा
हरछठ पूजा विशेष रूप से उत्तर भारत
के क्षेत्र में भारत की सबसे प्रसिद्ध त्योहारों में से एक है । यह देश के कृषक समुदाय में सबसे लोकप्रिय है ।
.हरछठ पूजा का त्यौहार भादों कृष्ण पक्ष
की छठ को माना जाता है । इसी दिन श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम का जन्म हुआ था । यह
व्रत पुत्रवती स्त्रियां ही करती है । इस में हल चली हुई जमीन का बोया-जोया अनाज व
गाय का घी, दूध आदि का खाना मना है । इस व्रत में पेड़ों के बिना बोया अनाज आदि
खाने का विधान है ।
बुंदेलखंड में महिलाएं व्रत या पूजा ज्यादातर पुरूष वर्ग की
भलाई के लिए करती है । हरछठ माता का व्रत व पूजा ज्यादातर पुरूष वर्ग की भलाई के
लिए करती हैं । महिलाएं अपने पुत्रों की दीर्घायु और भलाई के लिए निर्जला उपवास कर
कांस-कुसा और झड़बेरी से बनी हरछठ की पूजा करती हैं और अनाज का पारण नहीं करती ।
महिलाएं एक बेटा पर मिट्टी के एक दर्जन कुंढ़वा में सात प्रकार के भुने अनाज (
गेंहू, ज्वार, मसूर, धान, चना और मक्का ) भरकर पूजा करती हैं ।
हरछठ बनाने में
कांस-कुसा, छूल(टेसू) और झड़बेरी का इस्तेमाल किया जाता है । एक कपड़ा भी हल के पास
रख कर पूजा की जाती है । इस पूजा में खास बात यह है कि महिलाएं उस दिन ऐसे खेत में
पैर नहीं रखतीं, जहां फसल पैदा होनी हो और न ही व्रत के बाद किए जाने वाले पारण
में अनाज से बना भोजन खाया जाएगा । ज्यादातर जलभराव वाली भूमि में अपने आप उगने
वाली पसही के चावल या फिर महुए का लाटा खाने का रिवाज है ।
किंवदंती है कि हरछठ की
पूजा कर पुत्र दीर्घायु होते हैं और उन्हें असामयिक मौत से बचाया जा सकता है, इसी
चाह में महिलाएं सदियों से यह पूजा करती आई हैं । महिलाएं हरछठ को देवी मान कर
पूजा करती हैं । इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के भाई बलराम जी का जन्म हुआ था । बलरामजी
का प्रमुख शस्त्र हल और मूसल है । इसलिए उन्हें हलधर कहते हैं । उन्हीं के नाम पर
इस पर्व का नाम हल-षष्ठी पड़ा, क्योंकि इस दिन हल के पूजन का विशेष महत्व है । इस
वर्ष 16 अगस्त को हलछठ है । देश की पूर्वी
अंचल में इसे ललई छठ भी कहते हैं । इस व्रत को पुत्रवर्ती स्त्रियां करती हैं
। इस दिन हल द्वारा जोता हुआ फल और अन्न ही खाया जाता है । इस दिन गाय का दूध, दही
भी नहीं खाया जाता है । इस दिन भैंस का दूध, दही ही उपयोग में लाया जाता है । इस
दिन स्त्रियां एक महुए की दातुन करती हैं ।
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