कबूतर - खूबसूरत
, उड़ाके और प्रतियोगी
पक्षी
कबूतर
एक शांत स्वभाव
वाला पक्षी है।
कबूतर सभी स्थानों
पर भिन्न-भिन्न
आकृति वाले होते
हैं। कबूतर की
सौ प्रजातियों के
पक्षियों में से
एक छोटे आकार
वाले पक्षियों को
फाख्ता या कपोत
और बड़े को
कबूतर कहते हैं।
कबूतर ठंडे इलाकों
और दूरदराज के
द्वीपों को छोड़कर
लगभग पूरी दुनिया
में पाए जाते
हैं। कबूतर सौम्य, पंखदार, छोटी
चोंच वाले पक्षी
हैं। जिनकी चोंच
और माथे के
बीच त्वचा की
झिल्ली होती है।
सभी कबूतर अपने
सिर को आगे
पीछे हिलाते हुए
इतराई सी चाल
चलते हैं। अपने
लंबे पंखों और
मजबूत उड़ान माँसपेशियों
के कारण ये
सशक्त व कुशल
उड़ाके होते हैं।
ये एकसहचर होते
हैं। इनका जीवन
थोड़े दिन के
लिए होता है। संदेशवाहक
कबूतरों की चोंच
लंबी होती है
और शरीर भारी
होता हैय बार्ब
छोटी चोंच वाली
नस्ल है। पंखदार
पूंछ वाले कबूतर
की पूंछ में
42 से अधिक पंख
होते हैं उलूक
कबूतर के गले
के पंख बिखरे
हुए होते हैं फ्रिलबैक
के पंख उल्टी
दिशा में होते
है जैकोबिन के
गले के पंख
छतरी के सामान
होते हैं। टंबलर
कबूतर उड़ते समय
उल्टी दिशा में
गोता लगाते हैं।
नई दुनिया का
यात्री कबूतर अब विलुप्त
हो गया है। भारत
में 34 से अधिक
किस्मों के कबूतर
पाए जाते हैं।
इसकी सामान्य प्रजातियाँ
इस प्रकार हैं,
नीला, रॉक कबूतर
हरा शाही कबूतर
जंगली और हरा
कबूतर हैं। हिमालय
का हिम कबूतर,
तिब्बत के पठार
का पहाड़ी कबूतर
और पर्वतीय क्षेत्र
के शाही व
जंगली कबूतर, अंडमान
का जंगली कबूतर,
निकोबार का पाइड
इंपीरियल कबूतर, पीतवर्णी कबूतर
और निकोबारी कबूतर
। कबूतर
सूर्य की दिशा,
गंध और पृथ्वी
के चुम्बकत्व से
वापस आने की
दिशा तय करते
हैं.। कबूतर ऐसा
पक्षी है जो
घोंसला नहीं बनाता.
यह मकानों के
छज्जों, पेड़ों की टहनियों
आदि पर रात
गुजार लेता है
। कबूतर विश्व
के सभी देशों
में पाये जाते
हैं. समतल से
लेकर पहाड़ों तक
इनके निवास है
। बड़ी-बड़ी
इमारतों, मंदिरों, मस्जिदों, पुराने
मकानों पर हजारों
की संख्या में
कबूतर बैठे रहते
हैं. मकानों, कुओं
और पहाड़ों में
मौजूद कोटरों में
कबूतर अंडे देते
हैं. इसीलिए अंग्रेजी
में इन्हें रॉक-पिजन के
नाम से पुकारते
हैं. कबूतर के
दुश्मन भी कम
नहीं हैं ।
प्रत्येक मांसाहारी जीव के
लिए कबूतर का
मांस स्वादिष्ट भोजन
है । गरुड़, चील, बिल्ली
जैसे जीव तो
घरों की छतों
से उन्हें उठा
ले जाते हैं
।
कबूतर का
मुख्य भोजन अनाज,
मेवे और फल
आदि हैं. ये
पार्क और छतों
पर झुंड बनाकर
दानों को चुगते
हैं तथा नाच
उनके प्रति अपनी
कृतज्ञता प्रकट करते प्रतीत
होते हैं.कबूतरों
को पालतू बनाये
जाने का इतिहास
मिस्र से शुरू
होता है. ईसा
से लगभग 450 वर्ष
पूर्व वहां के
राजा जूशू ने
एक दर्जन कबूतर
पाले थे.भारत
में प्राचीन काल
से ही कबूतर
पालने का इतिहास
रहा है । यह
इतिहास शुरू से
ही मुस्लिम समाज
के पेशे के
रूप में रहा
है.अकबर ने
तीन सौ प्रशिक्षित
कबूतरों को पाला
था. बगदाद के
सुल्तान ने सबसे
पहले 950 ईसवी में
कबूतरों से डाक
व्यवस्था शुरू की
थी ।
कबूतर
की आवाज निस्संदेह
गुटर गूं, गुर्राहट
सिसकारी और सीटी
की ध्वनि जैसी
होती है। बिलिंग
कबूतर और उनकी
प्रणय रीति सामान्य
दृश्य है, जिसमें
ये झुककर गुटर
गूं करते हैं।
नर झुककर सिर
आगे पीछे हिलाते
हुए और गर्दन
व छाती फुलाकर
प्रदर्शन करता है।
भारत में पायी जाने
वाली कबूतरों की जातियों
में मुख्य है
ं- रहबान,
लोटन, मुक्खी, शीराज,
बगदादी और लक्का.
भारत में लक्का
कबूतर के मांस
को लकवा रोग
के लिए काफी
फायदेमंद माना जाता
है. लकवे का
कोई शिकार हुआ
नहीं कि लक्का
कबूतरों पर आफत
आ जाती है
।
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