Friday, 17 April 2015

भदावरी भैंस

भदावरी भैंस 


भारतीय डेरी व्यवसाय मे घीं का स्थान सर्वोंपरि है। देश में उत्पादित दूध की सर्वाधिक मात्रा घी में परिवर्तित की जाती है। हमारे देश में भैंसो की बारह प्रमुख नस्लंे है। भदावरी उनमंे से एक महत्वपूर्ण नस्ल है जो उत्तर प्रदेश तथा मघ्य प्रदेश के भदावर क्षेत्र में यमुना तथा चम्बल नदी के आस पास के क्षेत्रो में पायी जाती है। यह नस्ल दूध में अत्याधिक वसा प्रतिशत के लिए प्रसिद्ध हैं। भदावरी भैंस के दूध में औसतन 8.0 प्रतिशत वसा पायी जाती है जो अलग अलग भैसों में 6 से 14 प्रतिशत तक हो सकती है। भदावरी भैस के दूध में पायी जाने वाली वसा का प्रतिशत देश में पायी जाने वाली भैस की किसी भी नस्ल से अधिक है।


इस नस्ल की भैसों का शारीरिक आकार मध्यम, रंग तांबिया तथा शरीर पर बाल कम होते है। टागें छोटी तथा मजबूत होती है। घुटने से नीचे का हिंस्सा हल्के पीले सफेद रंग का होता है। सिर के अगले हिस्से पर आंखो के उपर वाला भाग सफेदी लिए हुए होता है। गर्दन के निचले भाग पर दो सफेद धारियां होती है जिन्हे कठं माला या जनेऊ कहते है। अयन का रंग गुलाबी होता है। सीगं तलवार के अकार के होते हैं। इस नस्ल के वयंस्क पशुओं का औसत भार 300-400 कि0 ग्रा0 होता है। 


छोटे अकार तथा कम भार की वजह से इनकी अहार आवश्यकता भैसों की अन्य नस्लों (मुख्यतया मुर्रा, नीली-रावी, जाफरावादी, मेहसाना आदि) की तुलना के काफी कम होती है जिससे इसे कम संसाधनो में गरीब किसानो/ पशुपालको, भूमिहीन कृषको द्वारा आसानी से पाला जा सकता है। इस नस्ल के पशु कठिन परिस्थितियों में रहने की क्षमता रखते है, तथा अति गर्म और आर्द्र जलवायु में आराम से रह सकते है। दूध मे अत्यधिक वसा, मध्यम आकार और जो भी मिल जायं उसको खाकर अपना गुजारा कर लेने के कारण इसकी खाद्य परिवर्तन क्षमता  अधिक है। नर पशु खेती के लिये खासतौर से धान के खेतों  के कार्य के लिये बहुत उपयुक्त होते हैं। इस नस्ल के पशु कई बिमारियो के प्रतिरोधी पाये गये है, बच्चो के मृत्यु दर भैसों के अन्य नस्लो की तूलना मे अत्यन्त कम (5 प्रतिशत से कम) है।


स्वतंत्रता प्राप्ति से पूर्व इटावा, आगरा, भिण्ड, मुरैना तथा ग्वालियर जनपद मे कुछ हिस्सों को मिलाकर एक छोटा सा राज्य था जिसे भदावर कहते थे। भैंस की यह नस्ल चूकिं भदावर क्षेत्र में विकसित हूई इसलिये इसका नाम भदावरी पड़ा। वर्तमान में इस नस्ल की भैंसे आगरा की बाह  तहसील, भिण्ड के भिण्ड तथा अटेर तहसील, इटावा (वढपुरा, चकरनगर), औरैया तथा जालौन जिलंो मंे यमुना तथा चम्बल नदी के आस पास के क्षेत्रो में पायी जाती है। ललितपुर तथा झाँसी जनपदों में भी इस नस्ल के जानवर पाये गये है


भदावरी मुर्रा भैंसांे की तुलना में दूध तो थोड़ा कम देती हैं लेकिन दूध मे वसा का अधिक प्रतिशत, विषम परिस्थितियो मे रहने की क्षमता, बच्चो मे कम मृत्यु दर तथा तुलनात्मक रूप से कम अहार अवश्यकता आदि गुंणो के कारण यह नस्ल किसानो मे काफी लोकप्रिय हैं भदावरी भैस औसतन 4-5 कि0 ग्रा0 दूध प्रतिदिन देती है, लेकिन अच्छे पशु प्रबंधन द्वारा 8-10 कि0 ग्रा0 प्रतिदिन तक दूध प्राप्त किया जा सकता है। भदावरी भैसें एक ब्यांत (लगभग 300 दिन) 1200 से 1800 कि.ग्रा. दूध देती हैं।

तालिका 1, भदावरी भैस के दूध का औसत संगठन
वसा - 8.20 प्रतिशत, कुल ठोस तत्व - 19.00 प्रतिशत, प्रोटीन - 4.11 प्रतिशत, कैल्सियम - 205.72 मि0ग्रा0 ( 100 मि0 ली0) , फास्फोरस - 140.90 मि0 ग्रा0 ( 100 मि0 ली0) , जिंक - 3.82 माइक्रो ग्रा0, कापर - 0.24 माइक्रो ग्रा0 ध्मि0 ली0, मैंगनीज - 0.117 माइक्रो ग्रा0 मि0 ली0

तालिका 2:   भदावरी भैस का उत्पादन 
प्रतिदिन औसत दूध उत्पादन - 4-5 कि0 ग्रा0, प्रति ब्यात  औसत दूध उत्पादन - 1200-1400 ली0, ब्यात की औसत आवधि - 280 दिन, दो ब्यात का अन्तर - 475 दिन, पहले ब्यात के समय औसत उम्र - 47 - 48 महीने

  घी एंव दूध उत्पादन हेतु भदावरी एक बहुत ही अच्छी  नस्ल है इस नस्ल की भैंसों को दूरूस्त क्षेत्रो मे जहां आवागमन के साधन कम है दूध को बेचने या संरक्षित करने की सुविधायें नहीं है आराम से पाला जा सकता है। गावांे मे दूध बेचने की सुविधा होने पर, दूध से घी निकालकर महीने मे एक या दो बार शहर मे बेचा जा सकता हैं। घी एक ऐसा उत्पाद है जिसको बिना खराब हुये वर्षो तक रखा जा सकता है। आज जब शुद्ध देशी घी के दाम असमान छू रहे हैं तब किसान भाई घी बेचकर अच्छा लाभ प्राप्त कर सकते है।


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