नेवला
1. .नेवले की वफादारी
एक
गांव में एक
धार्मिक ब्राह्मण रहता था।
उसकी पत्नी के
कोई संतान नहीं
थी। उसने मन
बहलाने के लिए
एक नेवला पाल
लिया था। नेवले
को ब्राह्मण के
घर में घूमने-फिरने की पूरी
स्वतंत्रता थी। ब्राह्मणी
को नेवला बहुत
अधिक प्यारा था।
कुछ दिनों के
बाद ब्राह्मणी के
घर एक बेटे
का जन्म हुआ।
ब्राह्मण ने अपनी
पत्नी से कहा
कि अब हमारे
संतान हो गई
है, इसलिए नेवले
को घर से
निकाल दो। कहीं
ऐसा न हो
कि नेवला बच्चे
का नुकसान कर
दे। ब्राह्मणी ने
ब्राह्मण की बात
न मानी। एक
दिन ब्राह्मणी कुंए
पर पानी भरने
गई। बच्चा पालने
में सो रहा
था और नेवला
पालने के पास
आराम कर रहा
था। बिना
सोचे समझे जो
काम करते है,
वह बाद में
पछताते हैं। परिणाम
बुरा ही होता
है। हर काम
सोच-समझकर विचार
कर करना चाहिए।
इतने में किसी
तरफ से घर
में एक सांप
आ गया। वह
बच्चे की ओर
काटने को बढ़ा।
नेवले ने यह
सब देख लिया।
नेवला सांप का
शत्रु होता है।
नेवले ने सांप
के टुकड़े-टुकड़े
कर दिए। घर
में खून ही
खून हो गया।
नेवले ने बच्चे
की जान बचा
दी यह दिखाने
के लिए वह
घर के दरवाजे
पर आ बैठा।
ब्राह्मणी जब कुंए
से पानी भरकर
लौटी तब उसने
खून से लथपथ
नेवले को दरवाजे
पर देखा। वह
नेवले को देखकर
घबरा गई और
यह समझी कि
उसने बच्चे को
मार डाला है,
इसलिए गुस्से में
ब्राह्मणी ने नेवले
पर पानी भरा
घड़ा दे मारा।
ब्राह्मणी रोती हुई
घर के अंदर
गई, देखा कि
बच्चा पालने में
सोया हुआ है।
पास में सांप
मरा हुआ पड़ा
है। यह देखकर
वह अपनी भूल
पर पछताने लगी,
उसको अपनी भूल
मालूम हुई।
2. .सपने में नेवला
सोते
वक्त हर रोज
कोई न कोई
सपना आप जरूर
देखते होंगे। कई
सपने खास-तौर
से सुबह के
वक्त देखे गये
सपने आपको याद
भी रहते होंगे।
ज्योतिषशास्त्र की अगर
मानें तो व्यक्ति
द्वारा देखे गए
सपनों में भविष्य
के कई अहम
राज छुपे होते
हैं। यदि इन
घटनाओं को इंसान
भली भांति समझ
ले तो वो
कई व्यर्थ की
चिंताओं और परेशानियों
से बच सकता
है और यदि
उसके स्वप्न में
उसे अच्छी घटनाओं
की अनुभूति हुई
है तो वो
उन घटनाओं से
लाभान्वित भी हो
सकता है।
आज
हम आपको बताएंगे
क्या होता है
जब सपने में
नेवला दिखता है।
ज्योतिष के मुताबिक
सपने में नेवला
छुपे हुए खजाने
का प्रतीक है।
गौरतलब है की
हिंदू धर्म शास्त्रों
में कई ऐसे
संकेत मिलते हैं
जिसके द्वारा आप
इस बात का
अंदाजा लगा सकते
हैं कि आपको
मनचाहे काम में
सफलता मिलेगी अथवा
नहीं। दूसरे शब्दों
में कहा जाये
तो इन संकेतों
को शकुन-अपशकुन
भी कहा जाता
है। शास्त्रों के
अनुसार यदि व्यक्ति
अपने सपने में
नेवले के दर्शन
करे तो ये
उसके लिए एक
बहुत ही शुभ
संकेत है।
सपने
में नेवला जहाँ
एक तरफ आपको
आर्थिक रूप से
मजबूत बनाता है
वहीं दूसरी तरफ
आपकी कई छुपी
हुई परेशानियां भी
दूर करता है।
आपको बता दें
कि ज्योतिष शास्त्र
में धन से
जुड़े कई शकुन
और अपशकुन बताए
गए हैं जिसमें
नेवला भी शामिल
है। यदि किसी
व्यक्ति को सुबह
के सपने में
नेवला दिख जाए
तो उस समझ
लेना चाहिए कि
वह निकट भविष्य
में मालामाल होने
वाला है। नेवले
का सीधा संबंध
जमीन में छुपे
खजाने से भी
माना जाता है।
अतः सुबह-सुबह
इसका दिखना यही
संकेत देता है
कि व्यक्ति को
गुप्त धन प्राप्त
होने के योग
बन रहे हैं।
ऐसी प्रबल संभावनाएं
रहती हैं कि
वह व्यक्ति निकट
भविष्य में धनी
और मालामाल हो
जाएगा। यदि व्यक्ति
दोपहर में सोते
वक्त सपने में
नेवला देखे तो
ये उसके लिए
बहुत बुरे संकेत
हैं क्यूंकि ज्योतिष
में इसे बिलकुल
भी शुभ नहीं
माना जाता है।
ज्योतिष के अनुसार
दोपहर में सपने
में नेवला आर्थिक
हानि और परेशानी
लेकर आता है।
3. .नेवला एवं लहसुन
एक
बार एक व्यक्ति
ने जॅंगल मे
एक साँप और
नेवले को लड़ते
देखा. साँप नेवले
को काट लेता
तो नेवला भाग
कर जाता और
एक जड़ी बूटी
के पत्ते खकर
पुनः लड़ने के
लिये आ जाता.
ऐसा कई बार
हुआ. अंत मे
नेवला सर्प को
मार डलता है.
जो व्यक्ति यह
लड़ाई देख रहा
था , उसने उस
जड़ी बूटी को
देखा, जिसे नेवला
सर्पदंश उपरान्त खाकर विषरहित
हो जाता था,
तो पता चला
की वह पौधा
रसोन था ।
रसोन अर्थात लहसुन,
लहसुन एक औषधि
द्रव्य है ।
हम मे से
बहुत लोग इसके
गुणो से अपरिचित
है. कुछ लोग
परम्परवश सामाजिक कारणांे से
इसका सेवन नहीं
करते है. किन्तु
लहसुन एक औषधि
और आहार के
रूप मे भारत
समेत कई देशों
मे प्रयोग होता
आ रहा है
। रस के
छ्हः रूप होते
है मधुर, लवन,
कटु, तिक्त, कषाय
और अम्ल रस
। लहसुन मंे
अम्ल रस नहीं
होता है.
लहसुन
को विभिन्न व्यंजनो
मे प्रयोग किया
जाता है . अगर
लहसुन को छाछ
में मिला कर
पिया जाये तो
छाछ लहसुन की
तीक्षणता और पित्वर्धक
को दूर करती
है । लहसुन
कई रोगों को
दूर करने मंे
सहायक है ।
बुजुर्गों से अक्सर
सुनने को मिलता
है की हम
तो लहसुन की
चटनी के साथ
पूरा खाना खा
जाते थे ।
दस किस्म के
खाने की कोई
चिंता नहीं होती
थी. गरीब लोगों
के लिये तो
यह लहसुन अमृत
तुल्य है ।
इसकी चटनी को
रोटी के साथ
खकर गरीब लोग
स्वस्थ और खुश
रहते है ।
लहसुन के रस
को शहद मे
मिलकर सेवन किया
जाये तो श्वास
मे इस्नोफीलिया ठीक
हो जाता है.
लहसुन रक्त मे
रक्तशर्करा ,कोलेस्ट्रॉल , ट्राइग्लिसराईड एस. जी.
पी. टी. , फॉस्फोलिपिड
को कम करता
है. लहसुन मे
गंधक प्रचुर मात्रा
मे होता है.
इसीलिये यह क्षय
के कीटाणुओ का
नाश करता है.
शरीर के महत्वपूर्ण
जीवाणुओं की वृद्धि
और रक्षण करता
है इसका अम्ली
सलफाइड नमक उडनशील
तेल कीटाणुनाशक होता
है. सर्दियों में
लहसुन को सरसों
तेल मे उबाल
कर ठंडा कर
शरीर की मालिश
करने से ठंड
तो दूर होती
है साथ ही
दर्द भी दूर
होता है ।
लहसुन विष का
नाश भी करता
है . जोकि आपने
आरंभ में पढ़ा
। सर्पदंश पर
इसका कल्क लगाते
है और लहसुन
स्वरस पिलाते है
जिससे वमन हो
कर विष शमन
होता है ।
लहसुन को अमृत
तुल्य मानना एकदम
सही है ।
4. .नेवला एवं पांडवों
का राजसूय यज्ञ
कुरुक्षेत्र
युद्ध में विजय
पाने की खुशी
में पांडवों ने
राजसूय यज्ञ किया।
दूर-दूर से
हजारों लोग आए।
बड़े पैमाने पर
दान दिया गया।
यज्ञ समाप्त होने
पर चारों तरफ
पांडवों की जय-जयकार हो रही
थी। तभी एक
नेवला आया। उसका
आधा शरीर सुनहरा
था और आधा
भूरा। वह यज्ञ
भूमि पर इधर-उधर लोटने
लगा। उसने कहा,
श्तुम लोग झूठ
कहते हो कि
इससे वैभवशाली यज्ञ
कभी नहीं हुआ।
यह यज्ञ तो
कुछ भी नहीं
है।श् लोगों ने
कहा, श्क्या कहते
हो, ऐसा महान
यज्ञ तो आज
तक संसार में
हुआ ही नहीं
। नेवले ने
कहा, यज्ञ तो
वह था जहां
लोटने से मेरा
आधा शरीर सुनहरा
हो गया था।श्
लोगों के पूछने
पर उसने बताया,
एक गांव में
एक गरीब ब्राह्मण
अपनी पत्नी, पुत्र
और पुत्र वधू
के साथ रहता
था। कथा कहने
से जो थोड़ा
बहुत मिलता था,
उसी में सब
मिल जुल कर
खाते थे। एक
बार वहां अकाल
पड़ गया।
कई
दिन तक परिवार
में किसी को
अन्न नहीं मिला।
कुछ दिनों बाद
उसके घर में
कुछ आटा आया।
ब्राह्मणी ने उसकी
रोटी बनाई और
खाने के लिए
उसे चार भागों
में बांटा। किंतु
जैसे ही वे
भोजन करने बैठे, दरवाजे
पर एक अतिथि
आ गया। ब्राह्मण
ने अपने हिस्से
की रोटी अतिथि
के सामने रख
दी, मगर
उसे खाने के
बाद भी अतिथि
की भूख नहीं
मिटी। तब ब्राह्मणी
ने अपने हिस्से
की रोटी उसे
दे दी। इससे
भी उसका पेट
नहीं भरा तो
बेटे और पुत्रवधू
ने भी अपने-अपने हिस्से
की रोटी दे
दी। अतिथि सारी
रोटी खाकर आशीष
देता हुआ चला
गया। उस रात
भी वे चारों
भूखे रह गए।
उस अन्न के
कुछ कण जमीन
पर गिरे पड़े
थे। मैं उन
कणों पर लोटने
लगा तो जहां
तक मेरे शरीर
से उन कणों
का स्पर्श हुआ,
मेरा शरीर सुनहरा
हो गया। तब
से मैं सारी
दुनिया में घूमता
फिरता हूं कि
वैसा ही यज्ञ
कहीं और हो,
लेकिन वैसा कहीं
देखने को नहीं
मिला इसलिए मेरा
आधा शरीर आज
तक भूरा ही
रह गया है।
उसका आशय समझ
युधिष्ठिर लज्जित हो गए।