Tuesday, 25 August 2015

Saras Crane - migratory birds


Saras Crane -  migratory  birds


The saras crane (Grus antigone) is the tallest flying bird in the world. The Indian sarus crane population is found in Pakistan, northern and central India and Nepal. Sarus Crane is the only resident breeding crane in India and is the world’s tallest flying bird. 


This Crane is a long-legged, long-necked grey bird with a naked red head. Juveniles have a brown appearance overall, younger sub-adults (> 1 year of age) have a brown head, grey body marked with grey, and older sub-adults (1-2 years of age) resemble adults except for markedly more black on the naked red head and upper neck.



Sexes are alike, the female being slightly smaller. They can be identified reliably during the unison call when males open their wings and drop their primaries while females keep their wings closed. The diet includes frogs, reptiles, eggs of birds, eggs of freshwater turtles, a variety of invertebrates including butterflies, dragonflies and grasshoppers, tubers of aquatic plants, cereals, potatoes, peas, and fruits of Capparis. Sarus Crane has proven to be highly adaptable in the face of high human population pressures. 


The birds are able to use even small wetlands if they are not persecuted or heavily disturbed. Breeding pairs and families with pre-fledged chicks are typically dispersed among scattered natural and artificial wetlands Adult pairs will use drier habitats such as cultivated and fallow fields. Loss and degradation of wetlands-due to agricultural expansion, industrial development, river basin development, pollution, warfare, heavy use of pesticides, and other factors-are the most significant threats to the species. 



 Sarus Cranes form life-long pair bonds, and return to the same breeding grounds year after year. Their nests are made of marsh vegetation and built on the ground, often in flooded paddy fields or marshes. They lay 2 white eggs per clutch. The female incubates for 31-34 days, with the male taking short turns while she feeds. 



The chicks are yellowish-brown, with 2 dark brown lines down the back. They stay in the nest for several days, and then begin to follow the parents. They fledge when they are about 3 months old, and are mature at 2-3 years. Increasing human demands on India's wetlands may be contributing to the decline of the Sarus Crane by reducing the recruitment rate within the population. 


Wednesday, 12 August 2015

मोर का नृत्य वर्षा ऋतु में

मोर का नृत्य वर्षा ऋतु में  




वर्षा ऋतु में मोर पूरी मस्ती में नाचता है। बरसात में काली घटा छाने पर मोर पंख फैला कर नाचता है। मोर का ध्यान आते ही कई लोगों के पाँव थिरकने लगते हैं। कहते हैं मनुष्य ने नाचना मोर से ही सीखा है। नर के दरबारी नाच में पंखों को घुमाना और पंखों को संवारना एक सुंदर दृश्य उपस्थित करता है। मोर एक बहुत ही सुन्दर, आकर्षक तथा शान वाला पक्षी है। बरसात के मौसम में काली घटा छाने पर जब यह पक्षी पंख फैला कर नाचता है तो ऐसा लगता है मानो इसने हीरों-जड़ी शाही पोशाक पहनी हो। इसलिए इसे पक्षियों का राजा कहा जाता है। पक्षियों का राजा होने के कारण ही सृष्टि के रचयिता ने इसके सिर पर ताज जैसी कलगी लगाई है। 




भारत का राष्ट्रीय पक्षी रंगीन, हंस के आकार का पक्षी, पंखे की आकृति जैसी पंखों की कलगी, आँख के नीचे सफेद रंग और लंबी पतली गर्दन वाला होता है। इसकी आवाज अति प्रिय होती है। इस प्रजाति का नर मादा से अधिक रंगों से भरा होता है जिसका चमकीला नीला सीना और गर्दन होती है और अत्यधिक मनमोहक कांस्य गहरे हरे रंग के 200 लम्बे पंखों का गुच्छा होता है। मोर के इन पंखों की संख्या 150 के लगभग होती है। मादा (मोरनी) भूरे रंग की होती है, नर से थोड़ा छोटा और इसके पास रंग भरे पंखों का गुच्छा नहीं होता है। मुख्यतः मोर नीले रंग में पाया जाता है, परंतु यह सफेद, हरे, व जामनी रंग का भी होता है। 






मोर की उम्र 25 से 30 वर्ष तक होती है। नर मोर की लंबाई लगभग 215 सेंटीमीटर तथा मादा मोर की लंबाई लगभग 50 सेंटीमीटर ही होती है। नर और मादा मोर की पहचान करना बहुत आसान है। नर के सिर पर बड़ी कलगी तथा मादा के सिर पर छोटी कलगी होती है। नर मोर की छोटी-सी पूंछ पर लंबे व सजावटी पंखों का एक गुच्छा होता है। मादा पक्षी के ये सजावटी पंख नहीं होते। वर्षा ऋतु में मोर जब पूरी मस्ती में नाचता है तो उसके कुछ पंख टूट जाते हैं। वैसे भी वर्ष में एक बार अगस्त के महीने में मोर के सभी पंख झड़ जाते हैं। ग्रीष्म-काल के आने से पहले ये पंख फिर से निकल आते हैं।













कांगो मोर अफ्रीका में पाया जाने वाला एकमात्र फैसिएनिड है। इनमें नर मुख्यतः नीले और हरे रंग का होता है और इसकी पूंछ छोटी और गोल होती है मादा लाल या हरे रंग की होती है और उसके ऊपरी हिस्से में भूरा रंग होता है। यह बहुत ऊँचा तथा देर तक नहीं उड़ पाता। परंतु इसकी दृष्टि व सूंघने की शक्ति बहुत तेज होती है। अपने इन्हीं गुणों के कारण यह अपने मुख्य दुश्मनों कुत्तों तथा सियारों की पकड़ में कम ही आता है।




नर मोर के चमकीले धातुई हरे रंग के पंखों की लंबाई 150 सेंटीमीटर तक होती है। ये पंख मुख्यतः ऊपरी पूंछ के हिस्सों से बने होते हैं, जो काफी लंबे होते हैं। हर पंख के छोर पर आंख के समान एक सतरंगी निशान होता है, जिस पर नीले और तांबई रंग के छल्ले बने होते हैं। मादा को रिझाने के लिए नर अपने पंखों को ऊपर उठाकर फैला लेता है और उन्हें कंपित करता है, जिससे चमकीली झलक और सरसराहट की आवाज पैदा होती है। नीले मोर के पंखों का रंग अधिकांशतः धातुई नीले-हरे रंग का होता है। हरे मोर के पंख नीले मोर के समान ही होते है और इसके शरीर के पंखों का रंग हरा और तांबई होता है। दोनों प्रजातियों की मादाओं का रंग हरा और भूरा होता है और आकार लगभग नर जितना ही होता है,






लेकिन इनके लंबे पंख और कलगी नहीं होती। प्राकृतिक रूप से दोनों प्रजातियाँ खुले निचले जंगलों में दिन के समय झुंड में रहती है और रात में पेड़ों की ऊंची शाखाओं पर विश्राम करती है। मोर लंबी पूँछवाले पक्षियों की जाति में से है और इसकी तीन किस्में होती हैं।  हम भारत में आम तौर पाए जानेवाले मोर के बारे में  जो खासकर हरे-नीले रंग का होता है। इसकी लंबाई 200 से 235 सेंटीमीटर होती है जिसमें से 150 सेंटीमीटर लंबी तो उसकी पूँछ होती है। उसकी पूँछ के पंख, हरे और सुनहरे रंग के होते हैं जो नीले और कांस्य वर्ण की आँखों जैसे डिजाइन से भरे होते हैं। और शरीर के पंख ज्यादातर हरे-नीले चमकीले रंग के होते हैं। यह भारत का एक राष्ट्रीय पक्षी है, जो दिखने में बहुत शाही लगता है कुछ लोग मोर को पवित्र पक्षी मानते हैं। इसलिए भारत में जब यह खेतों को तहस-नहस करता है तो किसान इसकी हरकतें बरदाश्त कर लेते हैं। मोर अपने चमचमाते पंखों को उठाकर जिस तरह फैलाता है, उसका यह शानदार प्रदर्शन बेशक बहुत जाना-माना है। मगर वह इस तरह अपने पंखों का प्रदर्शन क्यों करता है?




 दरअसल वह ऐसा मोरनियों को रिझाने के लिए करता है। हालाँकि मोरनी खूब नखरे करती है, मगर ऐसे रिझानेवाले प्रदर्शन को देखकर वह मोर पर लट्टू हो जाती है। मोर के लंबे-चैड़े चमचमाती आँखोंवाले पंख मोर पर इस तरह छा जाते हैं कि यह नजारा मोरनी का दिल चुरा ही लेता है। और फिर वह अपने लिए उस मोर को चुन लेती है जिसका प्रदर्शन उसे सबसे मनभावना लगता है। मगर मोर का प्रदर्शन सिर्फ पंख फैलाकर ही खत्म नहीं होता। वह अपने लंबे-चैड़े पंख फैलाने के बाद उसे आगे की ओर झुका लेता है। इसके बाद बड़ी अदाओं से मटक-मटककर नाचने लगता है। जब वह अपना शरीर हिलाना शुरू करता है तो उसके रंग-बिरंगे पंख उसके दाएँ-बाएँ लटक जाते हैं, और पंखों में झनझनाहट होने लगती हैं।


 वह जोर-जोर से चीत्कार भी भरने लगता है। हालाँकि उसकी चीत्कार सुरीली नहीं होती, मगर इस तरह वह मोरनी को एहसास दिला देता है कि उसे रिझाने की कोशिश कर रहा है। कभी-कभी मोरनी भी मोर के नाच की थोड़ी-बहुत नकल करती है, मगर ज्यादातर वह नाच में इतनी दिलचस्पी नहीं लेती। लेकिन जो मोर सबसे शानदार प्रदर्शन करता है, वही आखिरकार मोरनी का दिल जीत लेता है। साल भर में हर मोर के पास कम-से-कम 5 मोरनियों का समूह होता है और वह तकरीबन 25 चूजों का पिता बनता है। मोर   सब कुछ खा लेते हैं। जैसे कीड़े, छिपकली, कभी-कभी छोटे-छोटे साँप, इसके अलावा बीज, दाने, दाल और अनाज की कोमल जड़ें भी खाते हैं।