Tuesday, 2 September 2014

4.श्री वरदविनायक

4.श्री वरदविनायक 





श्री वरदविनायक  - देवताओं में प्रथम पूजनीय भगवान श्री गणेश का ही एक रूप हैं । मंदिर महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के कोल्हापुर तालुका में एक सुन्दर पर्वतीय गाँव महाड में स्थित है । इस मंदिर की मान्यता है कि यहां वरदविनायक गणेश अपने नाम के समान ही सारी कामनाओं को पूरा होने का वरदान देते हैं । प्राचीन काल मंे यह स्थान ‘‘ भद्रक ’’ नाम से भी जाना जाता था । इस मंदिर में नंददीप नाम से एक दीपक निरंतर प्रज्जवलित है, यक सन् 1892 से लगातार प्रदीप्यमान है । कथा - पुष्पक वन में गृत्समद षि के तप से प्रसन्न होकर भगवान गणपति ने उन्हें ‘‘ गणनां त्वां ’’ मंत्र के रचयिता की पदवी यहीं पर दी थी और ईश देवता बना दिया । उन्हीं वरदविनायक गणपति का यह स्थान है । 




वरदविनायक गणेश का नाम लेने मात्र से ही सारी कामनाओं को पूरा होने का वरदान प्राप्त होता है । वरदविनायक चतुर्थी का साल भर नियमानुसार व्रत करने से सम्पूर्ण मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है । प्रति माह कि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मध्याहन के समय वरदविनायक चतुर्थी या वैनाय की चतुर्थी का व्रत किया जाता है । वैनाय की चतुर्थी में गणेशजी की षोडशोपचार विधि से पूजा-अर्चना करने का विधान है । पूजन में गणेशजी के विग्रह को दूर्वा, गुड़ या मोदक का भोग , सिंदूर या लाल चंदन चढ़ाना चाहिए एवं गणेश मंत्र का 108 बार जाप करें ।

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