संतान सप्तमी
संतान सप्तमी एक दिव्य व्रत है और
इसके पालन से विविध कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं । .संतान सप्तमी का व्रत माघ मास के
शुक्लपक्ष की सप्तमी को किया जाता है । यह सप्तमी पुराणों में रथ, सूर्य, भानु,
अर्क, महती, आरोग्य, पुत्र, सप्तसप्तमी आदि अनेक नामों से प्रसिद्ध है और अनेक
पुराणों में उन नामों के अनुरूप व्रत की अलग-अलग विधियों का उल्लेख है । यह व्रत
पुत्र प्राप्ति, पुत्र रक्षा तथा पुत्र अभ्युदय के लिए किया जाता है । इस व्रत का
विधान दोपहर तक रहता है । इस दिन जाम्बवती के साथ श्यामसुंदर तथा उनके बच्चे साम्ब
की पूजा की जाती है ।
माताएं पार्वती का पूजन करके पुत्र प्राप्ति तथा उसके
अभ्युदय का वरदान मांगती है । इस व्रत का ‘‘ मुक्ताभरण’’ भी करते हैं । इस व्रत को रखने के लिए प्रातः स्नानादि से
निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र पहनें । दोपहर को चैक पूर कर चंदन, अक्षत, धूप, दीप,
नैवेद्य, सुपारी तथा नारियल आदि से शिव-पार्वती की पूजा करें । इस दिन नैवेद्य भोग
के लिए खीर-पूरी तथा गुड़ के पुए रखें । रक्षा के लिए शिवजी को डोरा भी अर्पित करें
। इस डोरे को शिवजी के वरदान के रूप में लेकर उसे धारण करके व्रतकथा सुनें । व्रत
के रूप में इस दिन नमक रहित एक समय एकान्त का भोजन अथवा फलाहार करना चाहिए ।
मान्यता है कि अचला सप्तमी का व्रत करने वाले को वर्ष भर सूर्य व्रत करने का पुण्य
प्राप्त हो जाता है । जो अचला सप्तमी के माहात्म्य का श्रद्धा-भक्ति से वाचन,
श्रवण तथा उपदेश करेगा, वह उत्तम लोक को अवश्य प्राप्त करेगा । भारतीय संस्कृति
में व्रत, पर्व एवं उत्सवों की विशेष प्रतिष्ठा है । यहां प्रति दिन कोई-न-कोई
व्रत, पर्व या उत्सव मनाया जाता है । अचला सप्तमी एक दिव्य व्रत है और इसके पालन
से विविध कामनाएं पूर्ण हो जाती हैं, अतः स्त्री-पुरूषादि सभी को इस व्रत का पालन
अवश्य करना चाहिए ।
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