गुरू पूर्णिमा - 12 जुलाई 2014
गुरूब्र्रहमा गुरूविष्णु गुरूर्देवो महेश्वरः ।
गुरूः साक्षात् परं ब्रहम तस्मै श्री गुरवे नमः ।।
गुरू पूर्णिमा आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरू पूर्णिमा कहते हैं , इस दिन गुरू पूजा का विधान है । पूरे देश में यह पर्व बड़ी श्रद्धा व धूमधाम से मनाया जाता है । इस दिन महाभारत ग्रंथ के रचयिता महर्षि वेदव्यास जी का जन्मदिन भी है । व्यास जी ने चारों वेदों की रचना की थी इस कारण उनका नाम वेद व्यास पड़ा , उन्हें आदि गुरू भी कहा जाता है । उनके सम्मान में गुरू पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है । शास्त्रों में गुरू शब्द की व्याख्या इस तरह है ‘‘गु’’ का अर्थ है अंधकार या मूल अज्ञान और ‘‘ रू’’ का अर्थ - उसका निरोधक । अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को ‘गुरू’ कहा जाता है ।
इस दिन अपने गुरूओं को व्यासजी का अंश मानकर उनकी पाद-पूजा करनी चाहिए तथा अपने उज्ज्वल भविष्य के लिए गुरू का आर्शीवाद जरूर ग्रहण करना चाहिए । साथ ही केवल अपने गुरू-शिक्षक का ही नहीं, अपितु माता-पिता, बड़े भाई-बहन आदि की भी पूजा का विधान है ।
गुरू पूर्णिमा के दिन क्या करें - प्रातः घर की सफाई, स्नानादि नित्य कर्म से निवृत होकर साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें तथा घर के किसी पवित्र स्थान पर पटिए पर सफेद वस्त्र बिछाकर उस पर 12 रेखाएं बनाकर व्यास-पीठ बनाएं, फिर हमें ‘‘ गुरूपरंपरसिद्धयर्थं व्यासपूंजा करिष्यें’ मंत्र से पूजा का संकल्प लेना चाहिए इसके बाद दसों दिशाओं में अक्षत छोड़ना चाहिए , फिर व्यासजी, ब्रहमा जी, शुक्रदेव जी, गोविंद स्वामीजी और शंकराचार्यी के नाम, मंत्र से पूजा का आवाहन करना चाहिए । इसके बाद गुरू अथवा उनके चित्र की पूजा करके उन्हें यथा योग्य दक्षिणा देना चाहिए ।
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