बटेर - लुप्त होते पक्षी ( संरक्षण
जरूरत )
घरेलू बटेर से जापानी बटेर का जन्म
हुआ है । घरेलू बटेर अपने गीत के लिए प्रसिद्ध थे । बीसवी शताब्दी के दौरान वे
उनके मांस और अंडों के लिए भी लोकप्रिय हो गये । जापानी बटेर सन् 1974 में भारत
में लाया गया और आई वी आर आई इज्जतनगर (कैरी) में 1983 से इसका पालन शुरू किया गया
। इसके बाद तमिलनाडू इसे पाला गया । बटेर उच्च जैविक मूल्य के साथ मांस और अंडे का
एक अच्छा स्त्रोत है । बटेर लघु अवधि पीढ़ी अंतराल के साथ एक तेजी से बढ़ता प़क्षी
है यह 5 सप्ताह में बेचा जा सकता है । मादा बटेर 6 सप्ताह में अण्डे देना शुरू
करती है तथा 24 सप्ताह में उच्च उत्पादन को
प्राप्त कर लेती है । बटेर मांस की उच्च मांग होटल, रेस्तरां, ढ़ाबों,
आद्योगिक केन्टीन, उड़ान रसोई ,सुपर मार्केट में बहुतायत से है ।
बटेर पालन के लाभ - निम्न लिखित
कारणों हमें बताते हैं कि बटेर पालन क्यों किया जाए । 1. बटेर में बहुत जल्द
परिपक्वता आ जाती है लगभग 5 सप्ताह में । 2. बटेर दूसरों की तुलना में कम स्थान
में पाले जा सकते हैं ( 10 बटेर पक्षी 1 वर्ग फुट जगह लेते हैं ) 3. बटेर की आहार
की खपत भी तुलनात्मक कम होती है । 4. बटेर में बहुत कम पीढ़ी अंतराल होता है ( एक
साल में 3 से 4 पीढ़िया ली जा सकती हैं ) 5. उच्च तीव्र अण्डे देने की प्रक्रिया (
मादा बटेर 42 दिन में ही अण्डे देना शुरू कर देती है ) 6. बटेर की रोगों प्रति
रोगप्रतिरोधक क्षमता बहुत अधिक होती है इन्हें किसी टीकाकरण की जरूर नहीं होती है
।
जंगल बुश बटेर - बटेर की एक प्रजाति जो भारतीय उपमहाद्वीप
जिसमें भारत, नेपाल, पाकिस्तान और श्रीलंका में पायी जाती है । नर बटेर के सफेद
मूंछ होती है । नर और मादा के सिर पर लाल और सफेद धारियां पायी जाती है । इनका
प्रजनन बारिश के बाद होता है वे 5 से 6 अण्डे देती हैं जिनसे 16 से 18 दिनों में
बच्चे निकल आते हैं ।
तुगदर बटेर आम (बटन क्वेल ) - यह
बटेर भारत के उष्णकटिबंधीय, दक्षिणी चीन, एशिया, इंडोनेशिया और फिलिपीन्स में पायी
जाती है । यह एक ठेठ छोटी बटेर लाल सा भूरा रंग जिसके ऊपर जंग खाया हुआ गला ठोडी,
स्तन काले रंग के नीले ग्रे बिल और पैर साथ ही पीले / सफेद रंग की आंखें ।
लाल चोंच वाले बटेर - हिमालय की
पर्वतीय श्रृंखला के आसपास पाये जाते हैं ये बहुत ही आकर्षक होते हैं । आज ये
विलुप्तप्राय पक्षियों की श्रेणी में हैं । अपनी सुंदर चोंच और पैर की वजह से बटेर
देर से ही पहचाने जा सकते हैं जिनका रंग लाल या पीला होता है । इनकी आंखों के
आसपास सफेद धब्बे होते हैं । इनकी पूंछ लंबी और घनी होती है । नर बटेर की खाल का
रंग गहरा भूरा होता है । जिस पर हल्की धारियां होती हैं । मादा बटेर की खाल का रंग
भी भूरा, लेकिन धारियां गहरी होती है । लाल चोंच वाले बटेर हमेशा 5-10 के झुंड में
रहते हैं । अपने साथियों से बिछुड़ने पर ये मुंह से सीटी बजाकर अपने साथियों को
बुलाते हैं । ये बटेर उत्तरांचल के कुमांऊ-गढ़वाल इलाके में लम्बी घांस वाले इलाके
में पाये जाते हैं ।
हिमालय बटेर - बटेर
एक मध्यम आकार के बटेर हैं उत्तराखण्उ, उत्तर पश्चिम भारत में पाये जाते हैं । इन
बटेर के लाल और पीले बिल और आंखें होती है । नर बटेर - धूमिल धारियों के साथ सफेद
माथा, मादा बटेर - भूरी भौंह और भूरा ही रंग,
इस बटेर की लम्बी पूंछ होती है ।
बटेर अंडे से स्वास्थ्य लाभ (बटेर अण्डे के औषधीय गुण ) - अंडे में पोषण
और जैव रासायनिक गुणों से भरपूर है ।
बहुमूल्य जीवाणुरोधी और अर्बुदरोधी उत्पाद हैं । बटेर के अंडों का उपयोग रक्ताल्पता,
बुलंद या निम्न रक्तचाप, गंभीर सिर दर्द, और मधुमेह में बटेर का प्रयोग किया जाता
है । बटेर के अंडे शरीर से रेडीनुडीडस हटाते हैं । बच्चों में चयापयच और
हीमेटोपाईसोसिस के लिए लाभप्रद हैं । 1. बटेर का अंडा पाचन तंत्र विकारों जैसे पेट
के अल्सर, गेस्ट्राटिस और ग्रहणी अल्सर में बहुत लाभदायक है । 2. बटेर का अंडा
रक्त विकारों जैसे एनीमिया, रक्त में विषाक्त पदार्थ और भारी धातुओं को हटाता है
तथा हिमोग्लोबीन के स्तर में बढ़ाने में सहायता करता है । 3. शरीर की बड़ी बिमारियों
जैसे दमा, तपेदिक, मधुमेह के उपचार मे सहायक । 4. बटेर का अंडा रोग प्रतिरोधक
प्रभावी होता है जो कि कैंसर के विकास को बांधित करता है । 5. बटेर के अंडे के
पोषक तत्व पथरी रोग ( जिगर पथरी, गुर्दा पथरी, पित्ताशय पथरी ) को हटाने में सहायक
है । 6. यह हदय मांस पेशियों को मजबूत एवं रक्त स्टोक को तेज करता है । 7. यह यौन
शक्ति उत्तेजक एवं यौन शक्ति बहाल एवं ग्रंथि पोषक का काम करता है 9. बटेर का अंडा
तंत्रिका तंत्र को विनियमित कर मस्तिक गतिविधियां को बढ़ाकर स्मृति को बढ़ाता है ।
10. यह मनुष्य शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करता है । उम्र और जीवन काल
में वृद्धि करता है । 11. यह त्वचा को
चमकदार एवं उसके रंग में सुधार करता है । चेहरे एवं बालों की देखभाल में मास्क एवं
शेम्पू बनाने में उपयोग होता है ।
तालिका 1 - जापानी बटेर की शारीरिक
अभिलक्षण
अण्डे का वजन 9-10 ग्राम,एक दिन के बटेर के चूजे का वजन- 6-8 ग्राम, वयस्कता की उम्र 38-42 दिन, वयस्क नर का वजन 100-130 दिन, वयस्क मादा का वजन 120-160 दिन, 100 दिन में अण्डो का उत्पादन - 80-90] जीवन काल , नर बटेर - 7 साल,मादा बटेर - 3-4 साल
तालिका 2 - अण्डे का पोषण मूल्य
ऊर्जा - 155 किलो कैलारी, कार्बोहाइडेट - 1.12 ग्राम , वसा - 10.6 ग्राम, .प्रोटीन - 12.6 ग्राम, पानी - 75 ग्राम विटामिन ए - 140 म्यूं
ग्राम ( 18 प्रतिशत), थाईमीन- विटामिन बी 1 0.066 मि.ग्रा. ( 6 प्रतिशत), राईबोफेविन - विटामिन बी 2 0.5 मि.ग्रा. ( 42 प्रतिशत), पेन्टोथेनिक एसिड- विटामिन बी 5 1.4 मि.ग्री. ( 28 प्रतिशत), फोलेट - विटामिन बी 5 44 म्यूं ग्रा. ( 11 प्रतिशत), कोलीन - 225 मि.ग्रा. ( 46 प्रतिशत) , विटामिन डी - 87 आई यू ( 15 प्रतिशत), विटामिन ई - 1.03 मि.ग्रा. ( 7 प्रतिशत), कैल्शियम - 50 मि.ग्रा. लोहा - 1.2 मि.ग्रा., मेग्नीशियम - 10 मि.ग्रा., फास्फोरस - 126 मि.ग्रा., जस्ता - 1 मि.ग्रा., कोलेस्ट्राल- 424 मि.ग्रा., खोल (शैल) - (12 प्रतिशत)
तालिका 3 - बटेर मांस का पोषण मूल्य
( बटेर 109 ग्राम) -
कैलारी - 209 किलो कैलारी, प्रोटीन - 21.4 ग्राम, विटामिन ए - 265 आई यू] विटामिन डी - 6.6 मि. ग्रा., थायमिन - 0.3 मि. ग्रा., .राबोफेविन - 0.3 मि. ग्रा.,.नियासिन - 8.2 मि. ग्रा., विटामिन बी 6 - 0.7 मि. ग्रा., फोलेट - 8.7 मा. मि. ग्रा., विटामिन बी 12 -0.5 मा. मि. ग्रा.,लोहा - 4.3 मि. ग्रा., मैग्नीशियम - 25.1 मि. ग्रा., फास्फोरस - 300 मि. ग्रा., पोटेशियम - 235 मि. ग्रा., सोडियम - 57.8 मि. ग्रा. ,जस्ता - 2.6 मि. ग्रा., तांबा - 0.6 मि. ग्रा. ,सेलेनियम - 18.1 मि. ग्रा., कोलेस्ट्राल - 82.8 मि. ग्रा., पानी - 75.9 ग्रा., .राख 1.0 ग्रा.
.
बटेर अब कभी कभार ही दिखते हैं ।
वनों की कटाई और वन क्षेत्रों में बढ़ते मानवीय दखल से पक्षियों की दुनिया प्रभावित
हुई है और पंखों वाली कई खूबसूरत प्रजातियो के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है ।
कहीं पर शिकारी कहर ढालते हैं तो कहीं पर मानवीय गतिविधियों के चलते पक्षियों के
बसेरे की जगह खतम हो गई है । पक्षियों की जो प्रजातियां लुप्त हो जाएंगी उन्हें हम
फिर कहां से लाऐंगें । बेहतर होगा उन्हें बचाने के लिए समय रहते प्रयास किए जाएं ।
आज परिंदें विलुप्त होने के कगार
पर: 1. पक्षियों के रहने के आवास नष्ट होना । छायादार पेड़ों की कटाई अंधाधुध्ं होना । 2. उचित खुराक न मिल पाना । फसलों में कीटनाशकों के छिड़काव से कीड़े मकोड़े
की कमी । 3. प्रदूषित वातावरण भी पक्षियों के विलुप्त होने के एक मुख्य वजह है ।
4. प्रदूषण की मात्रा यदि हवा में 500 से 600 माइक्रोग्राम हो जाए तो निश्चित रूप
से इसका असर परिंदों पर पड़ेगा ।
No comments:
Post a Comment