Thursday 10 July 2014

शख ध्वनि - शुभकारी एवं चमत्कारी


शख ध्वनि - शुभकारी एवं चमत्कारी  

प्रत्येक शुभ कार्य में शंख ध्वनि शुरूआत में और अंत में की जाती है । शंख कोई मामूली वस्तु नहीं है । इसे खिलौना या वाद्य यंत्र न समझे । शंख का दिव्य और अलौलिक वस्तु है । शंख की दिव्य ध्वनि सदा ही मंगलकारी और शुभ होती है । समुद्र मंथन के समय चैदह रत्न निकले थे । इन चैदह में से शंख को आठवें रत्न का पद प्राप्त हुआ था । भगवान् श्री विष्णु के हाथ में विराजमान होकर शंख ने विशेष स्थान प्राप्त किया । शंख एक समुद्री जीव का अस्थि पंजर होता है परन्तु तांत्रिक और वैज्ञानिक प्रभाव के कारण यह इतना पवित्र और प्रभावशाली है की शंख को देव प्रतिमा की तरह पूजा जाता है । शंख ध्व िसे सभी अनिष्टों का नाश होता है । शंख की ध्वनि वातावरण को शुद्ध कातर है, वास्तु दोषों को भी शंख ध्वनि दूर करती है । शंख ध्वनि से मनुष्य के मन में ईश्वर के प्रति आस्था और विश्वास को बल मिलता है । मंदिर में, शुभ कार्य में, यज्ञ आदि की शंख ध्वनि शुभ संदेश देती है । स्वयं महालक्ष्मी जी के मुखारबिंद से उच्चारित हुआ है कि वसामि पदमोत्पल शंख मध्येक वसामि चन्द्रेचमहेश्वर













हमारे ऋषि मुनियों द्वारा निर्मित कोई भी मंत्र यंत्र अथवा अनुष्ठान आदि यूं ही नहीं विकसित किये गए हैं । सभी का कोई न कोई वैज्ञानिक महत्व अवश्य होता है । वैज्ञानिकों अनुसंधान से  पता चला है कि शंख ध्वनि वातावरण के प्रदुषण से उत्पन्न कीटाणुओं को नष्ट करने में सक्षम है । शंख बजाने से फेफड़ों का अच्छा व्यायाम होता है । शंख कई प्रकार के होते हैं । शंख के कुछ नाम आकारों के वजह से भी हैं जैसे दक्षिणीवर्ती शंख, वामवर्ती शंख, पंजा शंख, एलिफेंटा शंख, मूलीशंख, काऊहेड शंख, मोती शंख आदि । 
शंख के 2 प्रकार ज्यादा प्रचलित हैं ।















.1. दक्षिणावर्ती शंख - दक्षिणावर्ती अर्थात दक्षिण मुख वाले एक विशेष जाति के शंख होते हैं । ये शंख कम पाए जाते हैं और अधिक शुभ माने जाते हैं ये मंहगे होते हैं ।
2. वामवर्ती शंख - वामवर्ती शंख का मुख बाएं तरह होता है । ये बजे वाले शंख होते हैं । इनके पेट का घुमाव बाई तरफ होता है और इन्हें दाहिने हाथ से पकड़कर बजाया जाता है । ये खूब मिलते हैं और सस्ते भी होते हैं ।
पूजा अर्चना करने के लिए एवं अध्र्य देने के लिए दक्षिणावर्ती शंख का प्रयोग करने की परंपरा है । जबकि शंख ध्वनि, वास्तुदोष दूर करने के लिए, कथा, भागवत और आरती आदि शुरू करने के लिए और समाप्त करने के लिए वामवर्ती शंख का  प्रयोग किया जाता है ।












शंख की महता को जानें - हिन्दू धर्म में शंख का बहुत महत्व है कोई भी पूजा शंख ध्वनि के बिना अधूरी मानी जाती है । पुराणों के अनुसार शंख की उत्पत्ति समुद्र मंथन के समय हुई है शंख के अनेक चमात्कारी लाभ है । ब्रह्मवैव्रत पुराण के अनुसार पूजा करते समय शंख में जल रखने से और उस जल को पूजा स्थल पर छिड़कने से वातावरण शुद्ध होता है । शंख में गंधक और कैलशियम होता है । इसलिए उस में रखा जल रोगमुक्त होता है । यह जल वायुमंडल में उन नकारात्मक शक्तियों को नष्ट करता है । शंख बजाने वाले व्यक्ति को कभी भी हृदय रोग नहीं होता है । इससे कंठ मधुर होता है । चरक संहिता में भी शंख के अनेक बताएं गए हैं । शंख से बनाई भस्म से पीलिया, पथरी और पेट के अनेक रोग दूर हो जाते हैं । योग शास्त्र में भी शंख मुद्रा का विशेष महत्व बताया गया है । माता लक्ष्मी के समान शंख भी सागर से उत्पन्न हुआ है इसलिए इसे माता लक्ष्मी का भाई भी कहा जाता है ।
















हिन्दू धर्म में शंख को बहुत शुभ माना जाता है । इसका कारण यह है कि माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु दोनों ही अपने हाथों में शंख धारण करते हैं । जन सामान्य में ही ऐसी धारणा है कि, जिस घर में शंख होता है उस घर में सुख-समृद्धि आती है । शंख में ऐसी खूबियां हैं जो वास्तु संबंधी कई समस्याओं को दूर करके घर में सकारात्मक ऊर्जा को आकर्षित करता है जिससे घर में खुशहाली आती है । शंख की ध्वनि जहां तक पहुंचती हैं वहां तक की वायु शुद्ध और ऊर्जावान हो जाती है । वास्तु विज्ञान के अनुसार सोयी हुई भूमि भी नियमित शंखनाद से जग जाती है । जैसे लक्ष्मी शंख, गरूड़ शंख, मणिपुष्पक शंख, गोमुखी शंख, देव शंख, राक्षस शंख, चक्र शंख, पौंड्र शंख, सुघोष शंख, शनि शंख एवं केतु शंख ।









शंख बौद्ध धर्म के आठ पवित्र चिन्हों में से एक है, इन्हें अष्टमंगल कहा जाता है, शंखों का आयुर्वेदिक दवाईयों के रूप में भी इस्तेमाल होता है, शंख भस्म का उपयोग पेट संबंधी बीमारियों एवं सौन्दर्य प्रसाधनों में भी उपयोग होता है । समुद्र  के जीव करोड़ों वर्षो से अपनी आत्मरक्षा के लिए इस तरह के खोल बनाते आ रहे हैं, पारिभाषिक शब्दावली में ये जीव मोलस्का और बोलचाल की भाषा में घोंघा कहलाते हैं । ये घोंघे जैसे-जैसे बड़े होते हैं, अपने खोल को न केवल बड़ा बल्कि मजबूत भी करते जाते हैं । ये खोल चूने के कार्बोनेट के साथ-साथ कैल्सियम फास्फेट और मैग्नेशियम कार्बोनेट का बना होता है । इसी खोल को हम शंख कहते हैं । शंखराज का खोल सबसे बड़ा होता है, इसके अंदर का स्तर मोती जैसा गुलाबी होता है, इसमे कान लगाकर सुनने पर समुद्र जैसे गंभीर गर्जन सुनायी पड़ती है क्योंकि बल पड़े खोल में जरा सी आवाज बहुत ज्यादा बढ़ी चढ़ी सुनाई पड़ती है । शंख करोड़ों वर्षो से बनते आ रहे हैं, लेकिन मनुष्य ने उनका उपयोग लगभग दस हजार वर्ष पहले ही सीखा है । शंखों से उसने आभूषण बनाये, मुद्रा के रूप मंे भी उनका उपयोग किया और धारदार शंखों से उसने औजारों का भी काम लिया । अमेरिका, एशिया, अफ्रीका, आस्टेलिया आदि महाद्वीपों में आदिम मनुष्य शंखों के आभूषण पहनता था फिर उसने कौड़ियों के साथ-साथ शंखों को भी क्रय-विक्रय का माध्यम बनाया । अठारवीं सदी में शंखों का संग्रह करने का फैशन भी चला ।














एक कथा के अनुसार शंख की उत्पत्ति शिवभक्त चंद्रचूड़ की अस्थियों से हुई, जब भगवान शिव ने क्रोधवश होकर भक्त चंद्रचूड़ का त्रिशूल से वध कर दिया, तत्पश्चात उसकी अस्थियाँ समुद्र में प्रभावित कर दी गयी । विष्णु पुराण के अनुसार शंख लक्ष्मी जी का सहोदर भ्राता है । यह समुद्र मंथन के समय प्राप्त चैदह रत्नों में से एक है ।  शंख समुद्र मंथन के समय आठवें स्थान पर प्राप्त हुआ था । शंख के अग्र भाग में गंगा एवं सरस्वती का, मध्य भाग में वरूण देवता का एंव पृष्ठ भाग में ब्रम्हा जी का वास होता है । शंख में समस्त तीर्थो का वास होता है । वेदों के अनुसार शंख घोष का विजय का प्रतीक माना जाता है । महाभारत युद्ध में श्रीकृष्ण भगवान् ने पांचजन्य, युधिष्ठर ने अनन्तविजय, भीम ने पौण्ड्र, अजुन ने देवदत्त, नकुल ने सुघोष एवं सहदेव ने मणिपुष्पक नामक शंखों का प्रचंड नाद करके कौरव सेना में भय का संचार कर दिया ।









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