Wednesday, 23 July 2014

मांडना कला - लोक आस्था एवं सांस्कृतिक महत्व

मांडना कला - लोक आस्था एवं सांस्कृतिक महत्व 














मांडना हमारी प्राचीन सभ्यता एवं संस्कृति की समृद्धि के प्रतीक है इसलिए चैसठ कलाओं में मांडना का भी स्थान प्राप्त है । भारत में मांडना विशेषतौर पर होली, दीपावली , नौदुर्गा उत्सव, महाशिवरात्रि और संजा पर्व पर बनाया जाता है । इससे घर परिवार में मंगल रहता है । उत्सव-पर्व  तथा अनेकानेक मांगलिक अवसरों पर रंगोली से घर-आंगन को खूबसूरती के साथ अंलकृत किया जाता है ।  रंगोली के पहले मांडना प्रचलित था जो आज भी है ।  मांडना भारत की बहुत ही प्राचीन परंपरा रही है । सिन्धु घाटी की प्राचीन सभ्यताओं मोहनजोदड़ों और हड़प्पा में इसके चिंह पाए गये हैं । 









मांडने की परांपरिक आकृतियों में ज्योमितीय एवं पुष्प आकृतियों के साथ ही त्रिभुज, चतुर्भुज, वृत, कमल, शंख, घंटी, स्वस्तिक, शंतरज पट का आधार, कई सीधी रेखाएं, तरंग की आकृति आदि मुख्य हैं । हवन और यज्ञों में वेदी का निर्माण करते समय भी मांडना  बनाए जाते हैं  । भारतीय लोक-जीवन में घरों को सजाने की लोककलाओं में मांडना प्रमुख है । मांगलिक अवसरों पर महिलाएं गेरू और खड़िये से अलंकरण बनाती हैं । राजस्थान की लोक आस्था में ‘‘ मांडनो’’ का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है । 











दीपोत्सव के अवसर पर तो यह कला लोकप्रथा का स्वरूप धारण कर लेती है । हमारे जीवन में इनके सांस्कृतिक महत्व से कम ही लोग परिचित हैं, यहां तक कि इन्हें चित्रित करने वाली महिलाएं भी अक्सर इसे नहीं जानती हैं ।  हमारी संस्कृति मे मांडनों को श्री एवं समृद्धि का प्रतीक माना जाता है । यह माना जाता है कि जिस घर मंे इनका सुंदर अंकन होता है उस घर में लक्ष्मी जी का निवास रहता है । घर के आंगन में मांडने बनाकर अति अल्प मात्रा में मूंग , चावल,जौ व गेंहू जैसी मंागलिक वस्तुएं फैला दी जाती है । 











राजस्थान के मांडनों में चैक, चैपडद्व, श्रवण कुमार, नागों का जोड़ा, डमरू, जलेबी, फीणी, चंग, मंेहन्दी , केल, बहू पसारो, बेल, दसेरो, साथिया (स्वस्तिक), पगल्या, शकरपारा, सूरज, केरी, पान, कुण्ड, बीजणी (पंखे), पंच-नारेल, चंवरछत्र, दीपक, हटड़ी, रथ, बैलगाड़ी, मोर व अन्य पशु पक्षी आदि प्रमुख हैं । मांडने के अंकन के लिए स्थान का विशेष ध्यान रखा जाता है जैसे - दीवार के केल, संझया व तुलसी , बरलो आदि । आंगन में खांडज्ञे, बावड़ी चैक, दीपावली की पंाच पापड़ी, चूनर चैक । चबूतरे पर पंचनारेल ।, पूजा घर में नवदुर्गा , रसोई घर में छीका चैक । उत्तर प्रदेश मे चैक पूरना, राजस्थान में मांडना, सौराष्ट्र मे साथिया, महाराष्ट्र व दक्षिण भारत में रंगोली व कोलम, बिहार मे अरिचन, आंध्र प्रदेश में भुग्गुल , बंगाल मे अल्पना नाम से यह कला जानी जाती है












वर्ष 2014 नववर्ष मध्यप्रदेश के शासकीय केलेण्डर में सुख-समृद्धि की कामना के साक प्रदेश के विभिन्न अंचलों में प्रचलित लोक कला मांडना को दर्शाया गया है । मांडना लोक कला में महिलाएं मांगलिक अवसरों पर विविध आकृतियां बनाकर घर की दीवारों, भूमि, मिटटी के बर्तनों, तुलसीघरा आदि को अलंकृत करती है । 




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