सावन माह - शिव भक्ति महत्व
श्रावण मास / सावन माह ( 13 जुलाई से 10 अगस्त 2014) में शिवभक्त श्रद्धा तथा भक्ति के अनुसार शिव की उपासना करते हैं । सावन माह में शिव भक्ति के महत्व का वर्णन ऋग्वेद में किया गया है । चारों ओर का वातावरण शिव भक्ति से ओत-प्रोत रहता है । शिव मंदिरों में शिवभक्तों का तांता लगा रहता है । शिव को प्रसन्न करने के लिए ‘‘ ऊं नमः शिवाय ’’ मंत्र का उच्चारण वातावरण को प्रफुल्लित कर देता है । भक्तजन दूर स्थानों से जल भरकर लाते हैं और उस जल से भगवान का जलाभिषेक करते हैं । श्रावण मास के अंतर्गत प्रत्येक सोमवार को शिवलिंग पर शिवामुट्ठी चढ़ाई जाती है । 1. प्रथम सोमवार - कच्चे चावल की एक मुट्ठी , 2. दूसरे सोमवार - सफेद तिल एक मुट्ठी । 3. तीसरे सोमवार - खड़े मूंग एक मुट्ठी । 4. चैथे सोमवार - जौ मुट्ठी चढ़ाने का महत्व है ।
रोगों से मुक्ति दिलाता सावन माह: 1. सिर दर्द, नेत्र रोग, अस्ति रोग आदि मे शिवलिंग का पूजन आक वृक्ष के पुष्पों, पत्तों एवं बिल्वपत्रों से करने से आराम मिलता है । 2. खांसी, जुकाम, नजला, मानसिक परेशानियां, रक्तचाप से आराम पाने के लिए शिवलिंग का रूद्री पाठ करते हुए काले तिल मिश्रित दूध धार से रूद्राभिषेक करना चाहिए । 3. रोग जैसे रक्तदोष में गिलोय जड़ी-बूटी के रस से शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए । 4. चर्म रोग, गुर्दे के रोग में विदार या जड़ी-बूटी के रस से अभिषेक करें । 5. लीवर, आंतों एवं अधिक चर्बी को कम करने के लिए शिवलिंग पर हल्दी मिश्रित दूध चढ़ाना चाहिए । 6. शारीरिक शक्ति की कमी, यू टी आई रोग एवं वीर्य की कमी को दूर करने के लिए पंचामृत, शहद और घृत से शिवलिंग का अभिषेक करने से आराम मिलता है । 7. रोग जैसे वात, जोड़ों का दर्द, और मांसपेशियों का दर्द में गन्ने का रस और छाछ से शिवलिंग का अभिषेक करना होता है ।
सावन माह में उपाकर्म व्रत का महत्व बहुत ज्यादा है इसे श्रावणी भी कहते हैं । सावन माह को पवित्र और व्रत रखने वाला माह माना जाताा है । पूरे सावन माह में निराहारी या फलाहारी रहने की हिदायत है । श्रावण माह में समुद्र मंथन किया गया था मंथन के दौरान समुद्र से निकले विष को भगवान शिव ने अपने कंठ में समाहित कर संपूर्ण सृष्टि की रक्षा की । किन्तु अग्नि के समान दुग्ध विष के पान के बाद महादेव शिव का कंठ नीलवर्ण हो गया । विष की ऊष्णता को शांत करने कर भगवान भोले को शीतलता प्रदान करने के लिए समस्त देवी-देवताओं ने उन्हें जल-अर्पण किया, यही कारण है कि भगवान शिव की मूर्ति व शिवलिंग पर जल चढ़ाने का महत्व आज भी है । इस साल 2014 में चार सोमवार पड़ेगें । 13 अगस्त को श्रावण पूर्णिमा अर्थात रक्षाबंधन के साथ इस पुण्य पवित्र सावन माह का समापन हो जायेगा । सावन माह में एक बिल्वपत्र से शिवार्चन करने से तीन जन्मों के पापों का नाश होता है ।
एक अखंड बिल्वपत्र अर्पण करने से कोटि बिल्वपत्र चढ़ाने का फल प्राप्त होता है । शिव पूजा में रूद्राक्ष अर्पित करने का भी विशेष फल व महत्व है क्योंकि रूद्राक्ष शिव नयन जल से प्रगट हुआ इसी लिए शिव को अति प्रिय है । भगवान शिव की पूजा-अर्चना करने के लिए महादेव को कच्चा दूध, सफेद फल, भस्म तथा भांग, धतूरा, श्वेत वस्त्र अधिक प्रिय हैं । सावन माह में दिन के अनुसार शिव पूजा का फल इस प्रकार है: रविवार - पाप नाशक, सोमवार-धन लाभ, मंगलवार- स्वास्थ्य लाभ, रोग निवारण, बुधवार- पुत्र प्राप्ति, गुरूवार-आयुकारक, शुक्रवार- इंद्रिय सुख, शनिवार - सर्व सुखकारी ।
शिव पूजा का उत्तम स्थानों में
तुलसी, पीपल व वट वृक्ष के समीप, नदी, सरोवर का तट, पर्वत की चोटी, सागर तीर,
मंदिर, आश्रम, तीर्थ अथवा धार्मिक स्ािल, पावन धाम, गुरू की शरण । शिव पूजा में
पुष्प का महत्व - 1. बिल्वपत्र - जन्म जन्मान्तर के पापों से मुक्ति, 2. कमल
-मुक्ति,धन, शान्ति प्रदायक 3. कुशा - मुक्ति प्रदायक, 4. दूर्वा - आयु प्रदायक,
5. धतूरा - पुत्र सुख प्रदायक, 6. आक - प्रताप वृद्धि, 7. कनेर- रोग निवारक, श्रंघार
पुष्प- संपदा वर्धक, शमी पत्र- पाप नाशक । शिव अभिषेक व पूजा में प्रयुक्त द्रव्य
विशेष के फल - 1. शहद- सिद्धि प्राप्ति, 2. दूध-समृद्धि दायक, 3.कुषा जल- रोग
नाशक, 4. ईख रस- मंगल कारक, 5. गंगा जल- सर्व सिद्धि दायक, 6. ऋतु फल के रस - धन
लाभ ।
सावन मास में व्रत, पूजन और अर्चना करने आप शिवजी को प्रसन्न
कर अपनी मुरादें पूरी कर सकते हैं तो शुभदायी एवं सुखकारी फल पाने में देर किस बात
की ।
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