तिलक - धार्मिक एवं वैज्ञानिक महत्व
भारतीय संस्कृति में पूजा-अर्चना,
संस्कार, संस्कार विधि, मंगल कार्य, यात्रा गमन, शुभ कार्यों के प्रारंभ में माथे
पर तिलक लगाकर उसे अक्षत से विभूषित किया जाता है । तिलक केवल धार्मिक मान्यता
नहीं बल्कि इसके पीछे कई वैज्ञानिक कारण भी है । ज्योतिष के अनुसार तिलक लगाया जाए
तो कुंडली के कई ग्रह दोष स्वतः ही समाप्त हो जाते हैं । तिलक पूजा और भक्ति का
प्रमुख अंग है । तिलक का अर्थ है भारत में पूजा के बाद माथे पर लगाया जानेवाला
निशान । उत्तर भारत में आज भी तिलक आरती के साथ आदर सत्कार स्वागत कर तिलक लगाया
जाता है ।
तिलक हमेशा भौंहो के बीच ‘‘ आज्ञाचक्र ’’ भ्रुकुटी पर किया जाता है जो कि चेतना केंद्र भी कहलाता है एवं हमारे चिंतन-मनन का स्थान है , यह चेतन-अवचेतन अवस्था में भी जागृत एवं सक्रिय रहता है । तिलक कई पदार्थों जैसे हल्दी, सिन्दूर, केशर, भस्म और चंदन आदि से लगाया जा सकता है पर पुरूष को चंदन व स्त्री केा कुंकुंम भाल में लगाना मंगलकारक कहा गया है । ‘‘ स्नाने दाने जपे होमो देवता पितृकर्म च । यदि तिलक लगाये बिना तिर्थ स्नान, जप कर्म, दान कर्म, यज्ञ होमादि, पितर हेतु श्राद्ध कर्म तथा देवों को पुजनार्चन कर्म किये जाएं तो ये कर्म निष्फल हो जाते हैं ।
हिन्दू आध्यात्म की असली पहचान है तिलक । तिलक का आध्यात्मिक महत्व यह है कि माथे के बीचों बीच आज्ञाचक्र होता है जो कि प्रमुख तीन नाड़ियों इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना का त्रिवेणी या संगम है और यह गुरू स्थान भी कहलाता है । यह चेतना का केन्द्र होने से पूरे शरीर का संचालन करता है । ध्यान योग करते समय मन को इसी स्थान पर एकाग्र किया जाता है । तिलक लगाने से दो प्रभाव दिखते हैं पहला जो तिलक लगाता है उसके स्वभाव में सुधार और दूसरा देखने वाले पर सात्विक प्रभाव होता है । तिलक लगाते समय मंत्र - ऊँ नमः सर्व लोक वशंकराय कुरू कुरू स्वाहा ।
तिलक हमेशा भौंहो के बीच ‘‘ आज्ञाचक्र ’’ भ्रुकुटी पर किया जाता है जो कि चेतना केंद्र भी कहलाता है एवं हमारे चिंतन-मनन का स्थान है , यह चेतन-अवचेतन अवस्था में भी जागृत एवं सक्रिय रहता है । तिलक कई पदार्थों जैसे हल्दी, सिन्दूर, केशर, भस्म और चंदन आदि से लगाया जा सकता है पर पुरूष को चंदन व स्त्री केा कुंकुंम भाल में लगाना मंगलकारक कहा गया है । ‘‘ स्नाने दाने जपे होमो देवता पितृकर्म च । यदि तिलक लगाये बिना तिर्थ स्नान, जप कर्म, दान कर्म, यज्ञ होमादि, पितर हेतु श्राद्ध कर्म तथा देवों को पुजनार्चन कर्म किये जाएं तो ये कर्म निष्फल हो जाते हैं ।
हिन्दू आध्यात्म की असली पहचान है तिलक । तिलक का आध्यात्मिक महत्व यह है कि माथे के बीचों बीच आज्ञाचक्र होता है जो कि प्रमुख तीन नाड़ियों इड़ा, पिंगला व सुषुम्ना का त्रिवेणी या संगम है और यह गुरू स्थान भी कहलाता है । यह चेतना का केन्द्र होने से पूरे शरीर का संचालन करता है । ध्यान योग करते समय मन को इसी स्थान पर एकाग्र किया जाता है । तिलक लगाने से दो प्रभाव दिखते हैं पहला जो तिलक लगाता है उसके स्वभाव में सुधार और दूसरा देखने वाले पर सात्विक प्रभाव होता है । तिलक लगाते समय मंत्र - ऊँ नमः सर्व लोक वशंकराय कुरू कुरू स्वाहा ।
सोमवार - भगवान शंकर का दिन एवं इस वार का स्वामी ग्रह चंद्रमा है । मस्तिष्क को शीतल और शांत रखने के लिए सफेद चंदन का तिलक लगाएं । विभूति या भस्म तिलक भी लगा सकते हैं ।
मंगलवार - भगवान हनुमान जी का दिन
एवं स्वामी ग्रह मंगल है । मंगल लाल रंग को प्रतिनिधित्व करता है, लाल चंदन या
चमेली के तेल में घुला हुआ सिंदूर का तिलक लगाने से ऊर्जा और कार्यक्षमता का विकास
होता है ।
बुधवार- मां दुर्गा एवं गणेश का
दिन माना जाता है । इस ग्रह का स्वामी बुध ग्रह है इस दिन सूखे ंिसंदूर का तिलक
इससे बौद्धिक क्षमता तेज होती है ।
गुरूवार - बृहस्पतिवार का दिन
बृहस्पति ऋषि देवताओं का गुरू है । इस ग्रह का देवता ब्रहमा जी एवं स्वामी ग्रह
बृहस्पति ग्रह है । गुरू को पीला या सफेद
मिश्रित पीला रंग प्रिय है । सफेद चंदन एवं केसर मिलाकर लेप को माथे पर लगाना
चाहिए इससे मन पवित्र और सकारात्मक विचार तथा अच्छे भावों का उद्भव तथा आर्थिक
परेशानीयों का हल निकल आता है ।
शुक्रवार - यह दिन भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मीजी का है तथा ग्रह स्वामी शुक्र ग्रह है । लाल चंदन का तिलक तनाव दूर करता है तथा भौतिक सुख-सुविधाओं में वृद्धि होती है । इस दिन सिंदूर भी लगा सकते है ।
शनिवार - यह भैरव, शनि और यमराज का
दिन जिसका ग्रह स्वामी शनि ग्रह है । इस दिन विभूत, भस्म या लाल चंदन लगाने से
भैरव प्रसन्न हो जाते हैं ।
वशीकरण तिलक - तीन प्रकार के बिंदी या तिलक प्रयोग कर आप किसी को भी वशीकृत कर सकते हैं । 1. तुलसी का बीज, रोली और काली हल्दी को आंवले के रस में मिलाकर गोल बिंदी या गोल/लम्बा तिलक लगाकर घर से निकलें । 2. गुरूवार के दिल हरताल और असगंध को केले के रस में पीसकर उसमें गोरोचन मिलाकर बिंदी या तिलक करें । 3. गुरूवार के दिन ही काली हल्दी, रोली, असगंध और चन्दन को आंवले के रस में मिलाकर तिलक या बिंदी करें समान लाभ मिलेगा ।
तिलक लगवाते समय सिर पर हाथ इसलिए
रखते हैं कि सकारात्मक ऊर्जा हमारे शीर्ष चक्र पर एकत्र हो साथ ही हमारे विचार
सकारात्मक हो व कार्यसिद्ध हो । हाथ की चारों अंगूलियों और अंगूठे का एक विशेष
महत्व है , अनामिका अंगुली शांति प्रदान करती है, मध्यमा अंगुली मनुष्य की आयु
वृद्धि करती है । अंगूठा प्रभाव और ख्याति तथा आरोग्य प्रदान करता है, तर्जनी
मोक्ष देने वाली अंगुली है । ज्योतिष के अनुसार अनामिका तथा अंगूठा तिलक करने में
सदा शुभ माने गए हैं । अनामिका सूर्य पर्वत की अधिष्ठाता अंगुली है । यह अंगुली
सूर्य का प्रतिनिधित्व करती है । अंगूठा हाथ में शुक्र का प्रतिनिधित्व करता है और
शुक्र ग्रह जीवन शक्ति का प्रतीक है ।
तिलक लगाने के मंत्र:
1. केशवानन्न्त गोविन्द बाराह पुरूषोत्तम ।
पुण्यं यशस्यमायुष्यं तिलकं में
प्रसीदतु ।।
2. कान्ति लक्ष्मीं धृतिं सौख्यं सौभाग्यमतुलं बलम् ।
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