Monday, 14 July 2014

काबड़ यात्रा - आध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्व

काबड़ यात्रा - आध्यात्मिक एवं धार्मिक महत्व







काबड़ यात्रा शिव भक्तों की वार्षिक तीर्थयात्रा है जो कि श्रावण के महीने में की जाती है । कावड़ यात्रा श्रावण (सावन) के महीने में भगवान शिव के भक्तों द्वारा आयोजित एक शुभ रैली है । कावड़ यात्रा में, भगवा वस्त्र पहने कावड़िया एक तीर्थ स्थान से पवित्र जल एकत्रित करके और पूजा और भगवान शिव का अभिषेक करने के लिए भगवान शिव के मंदिर में ले जाते हैं । ऐसी मान्यता है कि श्रावण सोमवार को भगवान महादेव का अभिषेक करने से मन की सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं । 










काबड़ यात्रा बांधा या विपरीत छोर से झूलने दो लगभग बराबर भार के साथ (आमतौर पर बांस के बने) एक पोल, कंवर के नाम पर है । कंवर एक या दोनों कंधों पर रखते हैं । दोनों किनारे पर पानी (शुद्ध जल) के बर्तन होते हैं । कंवर यात्री बाम बाम भोले या बोल बाम का मंत्र बोलते चलते हैं शब्द बाम का अर्थ ब्रहमा, विष्णु और महेश के लिए सक्षिप्त नाम है । जो यात्रा के दौरान उनके बीच ऊर्जा और उत्साह उत्पन्न करता है तथा लंबी दूरी को पूरा और सफल होने के लिए मनोवैज्ञानिक शक्ति देता है । बेम-बाम पढ कर पवित्र यात्रा पूरी हो और जो लोग अश्वमेघ यज्ञ (इंद्रियों को नियंत्रित करने के लिए किया एक ) के गुण प्राप्त करते हैं । 











पौराणिक कथाओं के कुछ उदाहरण - कंवर ले जाने की प्रथा त्रेता युग मंे शुरू की गई थी । भगवान राम एक कंवर में सुल्तानगंज से पवित्र गंगा जल ले गए और बाबाधाम पर भगवान शिव का अभिषेक किया । इसी तरह देतमान राजा रावण हरिद्वार से गंगाजल लेकर आए थे और भगवान शिव का अभिषेक किया था । 











जब आप लोगों के समूहों और समूहों को उनके कंधे पर बांस डांडिय, भगवा रंग के कपड़े पहने हुए सड़क पर बोल बम के उदबोधन के देखें तो जान जाइये ये काबड़ यात्री हैं । सावन के पवित्र महीने में उत्तर भारत में सड़कों और राजमार्गों शिव को समर्पित भजन गायन, अपने गंतव्य की ओर जोर देकर घूमना, भगवा रंग में शिव भक्तों का चलना देखा जा सकता है । श्रावण का महीना भगवान शिव को समर्पित है और भक्त सोमवार को व्रत रखते हैं । 











तीर्थयात्रियों में अधिकांश तो पुरूष होते हैं पर कुछ महिलाएं भी इस यात्रा में भाग लेती हैं । अधिंकाश पैर पर दूरी की यात्रा, कुछ तो साइकिल, मोटर साइकिल, स्कूटर , मिनी ट्रक या जीप पर यात्रा करते हैं । पहले यह यात्रा कुछ संतों, पुराने भक्तों तक ही सीमित थी लेकिन अब यात्रा कर श्रद्धालुओं की संख्या में काफी वृद्धि हुई है । तीर्थयात्रियों उनके गृहनगर तक पहुंचते हैं , पवित्र जल श्रावण माह में अमावस्या के दिन या मास शिवरात्रि के दिन शिवलिंग को स्नान कराने के लिए उपयोग किया जाता है । 








No comments:

Post a Comment