(18) माँ ज्वाला देवी ज्वालामुखी शक्तिपीठ
माँ ज्वाला शक्तिपीठ कांगड़ा घाटी का प्रसिद्ध मंदिर है । इस स्थान पर माँ सती की ‘‘जीभ’’ गिरी थी और मूर्तियों सिद्धीदा के रूप में देवी मां (अबिका) और अनमाता भैरव के रूप में भगवान शिव हैं । ये लपटे देवी ज्वाला माँ के विभिन्न रूपों की अभिव्यक्ति के रूप में पूजा की जाती है ।
नौ लपटे देवी के नाम पर रखा गया है: महाकाली, मां अन्नपूर्णा, मां चंडी, मां हिंगलाज, विन्ध्यवासिनी, महालक्ष्मी, महा सरस्वती, मां अम्बिका और अंजना देवी लगातार किसी भी ईंधन या सहायता के बिना जल ,एक चटटान से निकलती देखी जा सकती है । सती की जीभ गिरने के स्थान पर ज्वालाजी मंदिर आज स्थित है । सती की जीभ सदा से जल रही पवित्र ज्वाला (पवित्र लौ ) इसका प्रतिनिधित्व करती है ।
सम्राट अकबर ने आग बुझाने के लिए कई प्रयास किए लेकिन हर बार असफल रहा और अंत में वह भी अलौकिक शक्ति को स्वीकार कर लिया । पांडवों ने इस पवित्र पीठ की खोज की । माता ज्वाला देवी की पूजा अर्चना 3 तरीके से यानि पंचोपचाल, दसोपचाल और सोसोपचाल मुख्य रूप से कर रहे हैं और इसी प्रकार 5 अलग ज्वालाजी आरती माता ज्वाला जी में की जाती हैं । 1. श्रंगार आरती - यह ब्रहमा मुहुरत में सुबह होती है इस आरती में मालपुआ, खोआ, और मिश्री मंा ज्वाला के दरबार में भोग के लिए पेश की जाती है । 2. मंगल आरती - पहली आरती के आंधे घंटे
इस आरती में पीले चावल और दही मां भगवती को अर्पण किये जाते हैं । 3. मध्यांन काल आरती - यह दोपहर मध्यान काल में की जाती है । इस आरती में चावल, सतरंस दल और मिठाई पेष की जाती है । 4. सांयः काल आरती - यह आरती सांयः को की जाती है । इस आरती में पूरी, चना और हलवा अर्पण किया जाता है । 5. सैया आरती - अंतिम प्रार्थना के बाद सोने के लिए मां के बिस्तर तैयार करने से पहले की जाती है । यह मां के सोने की आरती है ।
यह आरती रात 9 बजे के आसपास शुरू होती है । इसमें दूध , मलाई और मौसमी फल मां ज्वाला देवी के लिए पेशकश की जाती है । भक्तगण मंगलवार और शुक्रवार को मुख्य रूप से पूजा के लिए यहां पहुंचते हैं । भारत के अन्य भागों से चैत्र अश्वनी नवरात्र और श्रावण महीने के समया लाखों में भक्त यहां पहुंचते हैं ।
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