शक्तिपीठ
की पौराणिक कथा
शिव भगवान ही केवल
एक ऐसे भगवान
हैं जिन्होंने विवाह
नहीं किया था
और वे एक
तपस्वी की तरह
रहते थे ।
भगवान शिव का
भी एक आदर्श
साथी हो इसलिए
आदि शक्ति ने
मानव अवतार लिया
तथा राजा दक्ष
की पुत्री के
रूप में सती
राजकुमारी ने नाम
से जन्म लिया
। दक्ष भगवान
ब्रहमा के पुत्र
थे और उन्हें
भगवान शिव की
जीवन शैली बिलकुल
ही पसंद नहीं
थी । सती
ने घोर तपस्या
की और दक्ष
की इच्छा कि
विरूद्ध भगवान शिव के
साथ विवाह कर
लिया ।
फिर
सती अपने पिता
की स्वीकृति के
लिए तड़पती रही
। इसके साथ
ही दक्ष ने
देवताओं को प्रसन्न
करने के लिए
एक विशाल यज्ञ
का आयोजन किया
और जानबूझ कर
भगवान शिव और
सती को आंमत्रित
नहीं किया ।
पर सती शिव की सहमति के
बिना ही यज्ञ
में शामिल होने
पहुंची । जब
सती दक्ष के
महल में पहुंची
तो उनके साथ
बिन बुलाये मेहमान
का व्यवहार किया
गया । यज्ञ
में सती की
उपस्थिति में भगवान शिव का अपमान
करने का पाप
किया । सती
को अपने पिता
की अज्ञानता और
अंहकार से बहुत
दुख पहुंचा ।
सती ने दक्ष
के इस काम
से दुखी होकर
यज्ञ के अनुष्ठान
की आग में
खुद को समर्पित
कर दिया और
इस नष्वर शरीर को छोड़ दिया
। जब यह
समाचार शिव तक
पहुंचा तो वे
गुस्से से पागल
जैसे हो गये
और यज्ञ अनुष्ठान
वेदी से सती
को निकाल का
कंधें पर सती
के शरीर को
उठाया और विनाश ,
तांडव नृत्य प्रदर्शन शुरू कर दिया
। जिससे पूरे
ब्रहमाण्ड की स्थिरता
के ऊपर खतरा
मंडराने लगा ।
भगवान विष्णु ने
मानव सभ्यता को
बचाने के लिए
सुदर्षन चक्र से
सती के शरीर के कई टुकड़े
कर दिये जब
भगवान शिव सती
को लेकर भारत
के विभिन्न स्थानों
से गुजर रहे
थे । सती
के शरीर के
52 टुकड़े पूरे देश में जहां जहां
गिरे वह स्थान
पवित्र भूमि होकर शक्ति पीठों के
रूप में जाना
जाने लगा ।
No comments:
Post a Comment