कबीर जयंती २०१४
कबीर जयंती ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष पूर्णिमा को मनाई जाती है। कबीर का नाम कबीरदास, कबीर साहब एवं संत कबीर जैसे रूपों में भी प्रसिद्ध है । कबीर का जन्म काशी में एक विधवा ब्राह्मणी के गर्भ से होना माना जाता है। कहा जाता है कि काशी में स्वामी रामानंद ने भूलवश अपने एक ब्राह्मण भक्त की विधवा कन्या को पुत्रवती होने का आशीर्वाद दे दिया जिसके फलस्वरूप संत कबीर का जन्म हुआ किन्तु लोकलाज के भय से उस ब्राह्मण कन्या ने बालक को लहरतारा नामक तालाब के किनारे छोड़ दिया, जिसे नीमा और अली या नीरू नाम के निःसंतान जुलाहा अपने घर ले आये और उसका लालन- पालन किया। कबीर का जन्म सन् 1398 ई. के लगभग माना जाता है। कहते हैं कबीर बचपन से ही हिन्दू भाव से भक्ति करने लगे थे। 'राम नाम' जपते हुए वे कभीकभी माथे पर तिलक भी लगा लेते थे। उन्हें स्वामी रामानंद के शिष्य के साथ ही प्रसिद्ध सूफी मुसलमान फकीर शेख तकी का भी शिष्य माना जाता है।
संत कबीर ने भेदभाव को भुलाकर हमेशा भाईचारे के साथ रहने की सीख दी है। सामाजिक विषमता को दूर करना ही उनकी पहली प्राथमिकता थी।
काशी के पास मगहर में देह त्याग दी। ऐसी मान्यता है कि मृत्यु के बाद उनके शव को लेकर विवाद उत्पन्न हो गया था। हिन्दू कहते थे कि उनका अंतिम संस्कार हिन्दू रीति से होना चाहिए और मुस्लिम कहते थे कि मुस्लिम रीति से। इसी विवाद के चलते जब उनके शव पर से चादर हट गई, तब लोगों ने वहाँ फूलों का ढेर पड़ा देखा। बाद में वहाँ से आधे फूल हिन्दुओं ने ले लिए और आधे मुसलमानों ने। मुसलमानों ने मुस्लिम रीति से और हिंदुओं ने हिंदू रीति से उन फूलों का अंतिम संस्कार किया। मगहर में कबीर की समाधि है।
संत कबीर के प्रसिद्ध दोहे
१. गुरु गोविंद दोउ खड़े काके लागूँ पाय। बलिहारी गुरु आपने गोविंद दियो बताय।।
२. ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोये । औरन को शीतल करे, आपहुं शीतल होए
३. बड़ा भया तो क्या भया, जैसे पेड़ खजूर । पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर
४. बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय । जो मन देखा आपना, मुझ से बुरा न कोय ।।
५. दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय । जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे को होय ।।
६. माटी कहे कुमार से, तू क्या रोंदे मोहे । एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोंदुंगी तोहे ।।
७. साईं इतना दीजिये, जामे कुटुंब समाये। मैं भी भूखा न रहूँ, साधू न भूखा जाए ।।
८. कबीर आप ठगाइये, और न ठगिये कोय। आप ठगे सुख ऊपजै, और ठगे दुख होय।।
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