Tuesday 27 May 2014

वट सावित्री व्रत - अखण्ड सौभाग्य एवं सुखी दांपत्य जीवन हेतु

वट सावित्री व्रत - अखण्ड सौभाग्य एवं सुखी दांपत्य जीवन हेतु 

वट सावित्री व्रत सौभाग्य को देने वाला और संतान की  प्राप्ति में सहायता देने वाला व्रत माना जाता है । भारतीय संस्कृति में यह वृत आदर्श नारीत्व का प्रतीक बन चुका है । ज्येष्ठ मास की त्रयोदशी से अमावस्या तक तीन दिनों तक करने में भरोसा रखते हैं ।  वट सावित्री व्रत में ‘‘वट’’ और ‘‘सावित्री’’ दोनों का विशिष्ट महत्व माना गया है । पीपल की तरह वट या बरगद के पेड़ का भी विशेष महत्व है । पाराशर मुनि के अनुसार - ‘वट मूल तोपवास’ ऐसा कहा गया है । वट में ब्रहमा, विष्ण और महेश तीनों का वास है । इसके नीचे बैठकर पूजन, व्रत कथा आदि सुनने से मनोकामना पूरी होती है । वट वृक्ष  अपनी विशालता के लिए भी प्रसिद्ध है । वृट वृक्ष दीर्घायु व अमरत्व बोध के प्रतीक के नाते भी स्वाीकार किया जाता है । वृट वृक्ष ज्ञान व निर्वाण का प्रतीक है । भगवान बुद्ध को इसी वृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था ।  
ज्येष्ठी अमावस्या के दिन वट सावित्री व्रत वृक्ष के पूजन की परंपरा है । इसे ‘‘ दाही अमावस’’ के नाम से प्रसिद्ध है ।  इस दिन वटवृक्ष को जल से सींचकर उसमें सूत लपेटते हुए उसकी 108 बार परिक्रमा की जाती है । इस व्रत में सावित्री-सत्यवान की कथा सुनी जाती है । वटवृक्ष को सनातन धर्म में इसे दैवी शक्ति सपन्न बताया गया है । पुराणों में लिखा है कि वटवृक्ष के मूल में भगवान ब्रहम, मध्य में भगवान विष्णु तथा अग्रभाग में दिवाधिदेव महादेव का वास होता है । वनस्पति विज्ञान ने यह सिद्ध कर दिया है कि पर्यावरण को शुद्ध बनाने में इसकी महत्वपूर्ण भूमिका होती है । वट वृक्ष सैकड़ों वर्षा तक हरा-भरा  रहता है । अतः पति की लम्बी आयु की कामना के लिए इसका पूजन सर्वथा उचित है । सही मायने में वट सावित्री व्रत सुखी दांपत्य जीवन का मार्ग प्रशस्त करता है ।
सावित्री-सत्यवान की कथा - सावित्री अश्वपति की कन्या थी, उसने सत्यवान को पति रूप में स्वीकार किया था । सत्यवान लकड़ियों काटने के लिए जंगल में जाया करता था । सावित्री अपने अंधे सास-ससुर की सेवा करने सत्यवान के पीछे जगंल में चली जाती थी । एक दिन सत्यवान को लकड़ियों काटते समय चक्कर आ गया और वह पेड़ से उतरकर नीचे बैठ गया । उसी समय भैंसे पर सवार होकर यमराज सत्यवान के प्राण लेने आए । सावित्री ने उन्हें पहचाना और सावित्री ने कहा कि आने मेरे सत्यवान के प्राण न लें । यम ने मना किया मगर वह वापस नहीं लौटी । सावित्री के पतिव्रत धर्म से प्रसन्न होकर यमराज ने वरदान के रूप में अंधे सास ससुर की सेवा में आंखें दी और सावित्री को सौ पुत्र होने का आर्शीवाद दिया और सत्यवान को छोड़ दिया । इसी वट वृक्ष के नीचे सावित्री ने अपने पतिव्रत धर्म से मृत पति को पुनः जीवीत कराया था तभी से यह व्रत ‘‘ वट सावित्री व्रत’’ के नाम से जाना जाता है ।


                                     







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