.चमेली - एक सुगंन्धित फूल
चमेली को फूलों की रानी माना जाता
है और इसे भारत की बेले या खुशबू की रानी कहा जाता है क्योंकि यह अति मनोहरता से
अपनी खुशबू से ठंडक और ताजगी देती है । चमेली को मोगरा, मोतिया, चमेली, मल्ली पू,
जाती, जूही, या उपवन की चांदनी नाम से भी जाना जाता है । चमेली की सबसे प्रसिद्ध
किस्म मैसूर मल्लिगे को कर्नाटक के मैसूर शहर में उगाया जाता है । इस फूल की दो
फसलें होती हैं । फूलों का उपयोग माला बनाने, एवं शुभ अवसरों शादियों एवं मंदिरों
के देवताओं की पूजा के लिए माला बनाने में होता है । महिलाएं अपने बालों में इन
फूलों को लगाती हैं ।
चमेली पौधों की खेती व्यावसायिक
तौर पर सुगंधित फूल और सुगंधित तेल के उत्पादन के लिए की जाती है । चमेली की बेल
आमतौर पर घरों , बगीचों में और सारे भारत में लगाई जाती है । चमेली के फूल, पत्ते
और जड़ तीनों का औषधीय के रूप में उपयोग किया जाता है । इसके फूल से तेल और परयूम
(इत्र) बनाया जाता है । चमेली एक खुशबूदार फूल है। यह सारे भारत में पाया जाता है।
आमतौर पर चमेली की बेल घरों, बगीचों में आसानी से देखी जा सकती है, जिसकी खुशबू
मादक और मन को प्रसन्न करती है। उत्तरप्रदेश के फर्रुखाबाद, जौनपुर और गाजीपुर
जिले में इसे व्यावसायिक तौर पर काफी बड़ी मात्रा में उगाया जाता है। चमेली के फूल,
पत्ते तथा जड़ तीनों ही औषधीय कार्यों में प्रयुक्त किए जाते हैं। चमेली का फूल झाड़ी या बेल जाति से संबंधित है ।
चमेली, जैस्मिनम प्रजाति के ओलिएसिई कुल का
फूल है। भारत से यह पौधा अरब के मूर लोगों द्वारा उत्तर अफ्रीका, स्पेन और फ्रांस
पहुँचा। इस प्रजाति की लगभग 40 जातियाँ और 100 किस्में भारत में अपने नैसर्गिक रूप
में उपलब्ध हैं। जिनमें से निम्नलिखित प्रमुख और आर्थिक महत्व की हैं जूही, मोगरा
और बेला। हिमालय का दक्षिणावर्ती प्रदेश चमेली का मूल स्थान है। इस पौधे के लिये
गरम तथा समशीतोष्ण दोनों प्रकार की जलवायु उपयुक्त है। सूखे स्थानों पर भी ये पौधे
जीवित रह सकते हैं। भारत में इसकी खेती तीन हजार मीटर की ऊँचाई तक ही होती है।
पौधे रोपने के दूसरे वर्ष से फूल लगन लगते हैं। इस पौधे की बीमारियों में फफूँदी
सबसे अधिक हानिकारक है। आजकल चमेली के फूलों से सौगंधिक सार तत्व निकालकर बेचे
जाते हैं। आर्थिक दृष्टि से इसका व्यवसाय
विकसित किया जा सकता है। चमेली जो कि फारसी शब्द यासमीन से बना है. इसका अर्थ होता
है प्रभु की कृपा या भगवान की सौगात. आम तौर पर इसका रंग सफेद होता है लेकिन कहीं
कहीं पीले रंग की चमेली भी होती है. तेल इतर और परयूम इत्यादि के उत्पादन में इसके
फूल प्रयोग होते हैं । इसके फूलों से तेल और इत्र का निर्माण भी किया जाता है।
चमेली के पत्ते हरे और फूल सफेद रंग के होते हैं, परंतु कहीं-कहीं पीले रंग के
फूलों वाली चमेली की बेलें भी पाई जाती हैं। इसका स्वाद तीखा और सुगंधित होता है।
चमेली का तेल और इत्र एक व्यावसायिक उत्पाद है, जो चमेली के फूलों से बनाया जाता
है। चमेली का रस पीने से वात और कफ में काफी आराम मिलता है। यह शरीर को
चुस्त-दुरुस्त और मन को प्रसन्न रखती है।
श्रीराम के परम भक्त हनुमानजी सभी
को कष्टों और दुखों को दूर करते हैं। श्रीराम के सभी कार्य संवारने वाले बजरंग बली
बहुत ही जल्द भक्तों के दुखों को दूर करते हैं। शास्त्रों के अनुसार पवनपुत्र
बजरंग बली को प्रसन्न करने के लिए कई उपाय बताए गए हैं। इन्हीं में से एक सटीक
उपाय है प्रति मंगलवार हनुमानजी को सिंदूर और चमेली का तेल अर्पित करना। हनुमानजी
का श्रृंगार में सिंदूर और चमेली के तेल सबसे महत्वपूर्ण सामग्री है। हनुमानजी को
सिंदूर क्या चढ़ाया जाता है? इस संबंध में एक कथा प्रचलित है। कथा के अनुसार माता
सीता ने हनुमानजी को बताया था कि सिंदूर लगाने से उनके स्वामी की उम्र लंबी होती
है। यह सुनने के बाद बजरंग बली ने श्रीराम का ध्यान करते हुए अपने शरीर पर सिंदूर
लगाना प्रारंभ कर दिया। सिंदूर लगाने से ही हनुमानजी बहुत
ही जल्द प्रसन्न होते हैं और श्रद्धालुओं की सभी मनोकामनाएं पूर्ण करते हैं।
सिंदूर अर्पित करने के साथ ही सभी के कल्याण और सुख की प्रार्थना करनी चाहिए। इसके
बाद हनुमान चालिसा का पाठ करने पर मन को शांति प्राप्त होती है और मानसिक तनाव दूर
हो जाता है। ऐसा नियमित रूप से प्रति मंगलवार किया जाना चाहिए।
.चमेली के फूल की पत्तियों में भी औषधीय गुण पाये गये हैं ।
यह दांत, मुंह, त्वचा और आंख के रोगों के बहुत फायदे मंद होती है । चमेली के
पत्तियों को मुंह में रख कर चबाने से मुंह के छाले ठीक होते हैं । चमेली के तेल को
त्वचा पर लगाने से त्वचा संबंधी रोग अच्छे होने लगते हैं । चमेली के पत्तों को
उबालकर काढ़ा बना ले जो मसूड़ों के दर्द को कम करता है । चमेली के फूलों को नियमित
चेहरे पर लगाने से चेहरे की त्वचा में ग्लो आता है । चमेली के पत्तों का रस फटी
एड़ियो/बिवाई को ठीक करता है । मन्नतें पूरी होने पर चढ़ाया जाता है चमेली का तेल
मां सती मंदिर दरबार में वर्षो की भांति सोमवार को श्रद्धालुओं द्वारा ।
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