Friday, 30 May 2014

कस्तूरी मृग - संकटग्रस्त प्रजाति

कस्तूरी मृग - संकटग्रस्त प्रजाति

कस्तूरी मृग प्रकृति के सुन्दरतम जीवों में से एक है इसका वैज्ञानिक नाम ‘‘ मास्कम क्राइसोगौस्टर ’’ है। भारत में कस्तूरी मृग, जो कि एक लुप्तप्राय जीव है, कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तरांचल के केदारनाथ, फूलों की घाटी, हरसिल घाटी तथा गोविन्द वन्य जीव विहार एवं सिक्किम के कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित रह गया है । इसे हिमालयन मस्क डियर के नाम से भी जाना जाता है । कस्तूरी मृग का नाम इसलिए पड़ा कि इसकी नाभि से कस्तूरी निकलती है । कस्तूरी अपनी सुगंध के लिए प्रसिद्ध है तथा दवाइयों में प्रयुक्त होती है । इस मृग की नाभि में अप्रतिम सुगन्धि वाली कस्तूरी होती है, जिसमें भरा हुआ गाढ़ा तरल पदार्थ अत्यन्त सुगन्धित होता है । कस्तुरी ही इस मृग की विशिष्टता प्रदान करती है । हिमालय क्षेत्र में यह देवदार, फर, भोजपत्र एवं बुरांस के वनों में लगभग 3600 मी. से 4400 मीटर की उँचाई पर पाया जाता है । कस्तूरी मृग पहाड़ी जंगलों की चटटानों के दर्रों और खोहों में रहता है साधारणतया यह अपने निवासस्थान को कड़े शीतकाल में भी नहीं छोड़ता । चरने के लिए यह मृग दूर से दरू जाकर भी अंत में अपनी रहने की गुहा में लौट आता है । कंधे पर इसकी ऊँचाई 40 से 50 से.मी. होती है । इसका रंग भूरा होता है और उस पर काले काले-पीले धब्बे होते हैं । इस मृग के सींग नहीं होते है तथा उसके स्थान पर नर के दो पैने दाँत जबड़ों से बाहर निकले रहते है तथा उसके स्थान पर नर के दो पैने दाँत जबड़ों से बाहर निकले रहते हैं । जिनका उपयोग यह आत्मरक्षा और जड़ी-बूटियों को खोदने में करता है । इस मृग का शरीर घने बालों से ढ़का रहता है । मादा वर्ष में एक या दो बार 1-2 शावकों को जन्म देती है । इसमें कस्तूरी एक साल की आयु के बाद ही बनती है । एक मृग में सामानयतः 30 से 45 ग्राम तक कस्तूरी पायी जाती है । नर मृग के निचले भाग में जननांग के समीप एक ग्रंथि से एक रस स्त्रावित होता है जो चमड़ी के नीचे स्थित एक थैलीनुमा स्थान पर एक्त्रित होता रहता है । इस थैली से ही कस्तूरी प्राप्त होती है । कस्तूरी से बनने वाला इत्र अपनी सुगन्ध के लिये प्रसिद्ध है । औषधि उद्योग में कस्तूरी को दमा, मिरगी, क्राकायुरिस, निमोनिया, टाइफाइड और हृदय रोग के लिये बनाई जाने वाली दवाइयों में प्रयोग किया जाता है । इसके सूंघने की शक्ति बहुत तेज होती है । इसी कारण किसी भी खतरे को भांप कर यह बहुत तेजी से दौड़ पड़ता है लेकिन दौड़ते समय 40-50 मीटर आगे जाकर पीछे मुड़कर देखने की आदत ही इसके जीवन के लिए खतरा बन जाती है । कस्तूरी मृग एक छोटे मृग के समान नाटी बनावट का होता है और इनके पिछले पैर आगे के पैरों से अधिक लम्बे होते हैं । इनकी लम्बाई 80-100 से.मी. तक होती है, कन्धे पर 50-70 से.मी. और शरीरिक भार 7 से 17 किलो तक होता है । कस्तूरी मृग के पैर कठिन भूभाग में चढ़ाई के लिए अनुकूल होते हैं 
कस्तूरी कुंड़लि बसैं, मृग ढूंढ़े बब माहिं । से घटि घटि राम हैं दुनिया देखे नाहिँ
 (कस्तूरी की गंध, खुद में सहेजे भ्रमित, भटक रहा था कस्तूरी मृग । आनन्द का सागर खुद मैं समेटे कदम भटक रहें थे  )
कस्तूरी - एक बहुत प्रसिद्ध और उत्कृष्ट सुगंधवाला पदार्थ जिसकी तीक्ष्ण गंध होती है जो नर कस्तूरी मृग से प्राप्त होती है और इस पदार्थ को प्राचीन काल से सुगंधित द्रव्य /इत्र तथा औषध बनाने के लिए एक लोकप्रिय रासायनिक पदार्थ के रूप में  इस्तेमाल किया जाता रहा है और दुनिया भर के सबसे मंहगे पशु उत्पादों में से एक है । कस्तूरी की विशेष गंध के लिए प्रमुख रूप से जिम्मेदार जैविक यौगिक म्स्कोने है । कस्तूरी का प्रयोग सौन्दर्य प्रसाधन एवं दवाइयों को बनाने में किया जाता है । ग्यारह से अधिक औषधियों में काम आने वाली और अपनी बेमिसाल खुशबू से अमीरों की शान समझी जाने वाली सोने से भी महँगी कस्तूरी की मांग अब भी अन्त्ररास्त्रिया बाजार में बनी हुई है । एक मृग में लगभग 30 से 45 ग्राम तक कस्तूरी पाई जाती है । कस्तूरी चाॅकलेट रंग की होती है जो एक थैली के अंदर द्रव रूप में पायी जाती है । इसे निकाल कर सुखाकर इस्तेमाल किया जाता है । कस्तूरी मृग से मिलने वाले कस्तूरी की अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में कीमत लगभग 30 लाख रूपया प्रतिकिलो है । जिसके कारण इसका अवैध शिकार किया जा रहा है ।  चीन 200 किलो के लगभग कस्तूरी का निर्यात करता है । आयुर्वेद में कस्तूरी से टी.बी., मिर्गी, हृदय संबंधी बिमारियां, आर्थराइटिस जैसी कई बिमारियों का इलाज किया जा सकता है । आयुर्वेद के अलावा यूनानी और तिब्बती औषधी विज्ञान में भी कस्तूरी का इस्तेमाल बहुत ज्यादा किया जाता है । इसके अलावा इससे बनने वाली परफयूम के लिये भी इसकी बहुत मांग है
संरक्षण - दुर्लभ कस्तूरी मृग का अस्तित्व खतरे में है ।  इसके संरक्षण के सरकारी प्रयास धराशायी हो रहे हैं । कस्तूरी पाने के लिए इनकी हत्याएं और घातक बीमारियों के चलते इनका जीवन संकट में है । हत्यारे इन्हें खोज ही लेते हैं और निमोनिया, सर्पदंश, चारा न चबा पाना, अर्जीण, हृदयाघात, टाक्सीमिया, सेप्टिक, मृत बच्चा पैदा होना या मादा का अपने बच्चे को दूध न देना, सैमिक शाॅक, गेस्ट्रो एंटीराइटिस और अपच जैसी घातक बीमारियां इन्हें घेरे रहती हैं । कस्तूरी मृगों की अधिकांश मौतें बरसात में होती हैं । ग्लोबल वार्मिंग के कारण वातावरण भी इनके अनुकूल नहीं रहा है क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग के कारण यहां का प्रजनन एवं वैज्ञानिक अनुसंधान कस्तूरी मृगों के लिए अनुकूल नहीं रहा है । कस्तूरी मृग संरक्षण के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने  वन्य जीव प्रभाग के अंतर्गत ‘‘ कस्तूरी मृग विहार ’’ की स्थापना की । इसके साथ ही ‘‘ कस्तूरी मृग प्रजनन केन्द्र ’’ काँचुला खर्क ’’ स्थापित किया गया और पिथौरागढ़ जिले में ‘‘ अस्कोट कस्तूरी अभयारण्य ’’ की स्थापना की गयी । जैसा की हम जानते हैं कि कस्तूरी सिर्फ नर मंे ही पायी जाती है जबकि इसके लिये मादा मृगों का भी शिकार किया जाता है । जिस कारण इनकी संख्या में बहुत ज्यादा कमी आ गयी है । कस्तूरी निकालने के लिये इन जानवरों का शिकार करना बिल्कुल भी जरूरी नहीं है क्योंकि कुछ आसान तकनीकों का इस्तेमाल करके इनसे कस्तूरी को आसानी से बिना मारे निकाला जा सकता है । भारत सरकार ने भी वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट के तहत इसके शिकार को गैरकानूनी घोषित कर दिया है । यदि अभी भी कस्तूरी मृग को बचाने के प्रयास गंभीरता से नहीं किये गये तो जल्द ही यह पशु शायद सिर्फ तस्वीरों में ही नजर आयेगा । जंगलों में कस्तूरी, लता कस्तूरी, जवादिया ये सब लता कस्तूरी के नाम हैं । इसके दानों में कस्तूरी जैसी ही खुशबू होती है । इसके पसीने की गन्ध को दूर किया जा सकता है ।





1 comment:

  1. ओ३म्..
    अशोक जी, नमस्ते !
    आपने इस लेख मे एक रोगका नाम 'क्राकायुरिस' बताया, येह किसा रोग है? इसकी हिन्दिमे नाम क्या है ? और इसकी लक्षण क्या है ? बताने कि कृपा करें..
    आभारी रहुंगा..
    धन्यवाद..!

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