Sunday, 18 May 2014

धनेश पक्षी - विलुप्त प्रजाति

धनेश पक्षी - विलुप्त प्रजाति

धनेश एक पक्षी प्रजाति है जिनकी चोंच लंबी और नीचे की ओर घूमी होती है और अमूमन ऊपर वाली चांेच के ऊपर लंबा उभार होता है जिसकी वजह से इसका अंग्रेजी नाम हाॅन बिल (सींग चोंच) पड़ा है क्योंकि अंग्रजों ने इस उभार को सींग का दर्जा दिया था । ग्रामीण जन तीन चांेच वाला पक्षी कहते हैं । भारत में इसकी 9 जातियां पाई जाती हैं । धनेश पक्षी  कंजुगल फिडेलिटी का अनुपम उदाहरण है । नर व मादा दोनों मिल जुल कर बच्चे का पोषण करते हैं । मादा अमूमन ऊंचे पेड़ों के खोडर में अंडे देती है और इसके बाद नर घोंसले में बैठ कर अंडे सेता है । इस दौरान मादा उसे बेरी व अन्य उपलब्ध जंगली फ्रूट  का भोजन कराती है । इस सुंदर परिंदे पर मांस लोलुप शिकारियों की नजर लग गयी । लगातार शिकार के कारण इसकी संख्या घटने लगी और अस्सी के दशक के बाद बड़े पैमान पर वृक्ष कटाई के बाद इसका हेबीटेट ‘‘वासस्थल ’’ भी समाप्त हो गया । दरअसल यह ऊंचे पेड़ों पर रहता था और इसी दौरान ऊंचे सेमल व आम वृक्षों की लार्ज स्केल पर कटाई भी हुई । धनेश पक्षियों का  बड़े पैमाने पर शिकार इसकी चर्बी से निकलने वाले कथित औषधीय गुणों के कारण होता है । घने जंगलों का ये शानदार धनेश पक्षी अपनी विशिष्ट उड़ान सुन्दर काला-सफेद रंग और दोहरी बड़ी चोंच दिखने के कारण एक बार देखने के बाद जीवन भर नहीं भुलाया जा सकता । जंगल की कटाई के कारण पुराने बड़े पेड़ खात्मे की ओर हैं, जाहिर है जब ये पुराने पेड़ न होंगें तो कोटर भी न होगे तो भला धनेश कैसे वंश वृद्धि करेगा, लिहाजा अब वो समय आ गया की पुराने पेड़ों को बचाया जाये तभी इस शानदार जीव की रक्षा होगी । धनेश पक्षी को मारने के साथ यह अंधविश्वास जुड़ा हुआ था कि इससे एक तो लक्ष्मी प्रसन्न होती है दूसरे यह कि गठिया के रोग के लिए धनेश का तेल एक रामवाण औषधि है । 
धनेश पक्षी कर्नाटक का राजकीय पक्षी है

कुछ दशक पूर्व नागालैंड में धनेश नामक चिड़िया बहुत संख्या में पाई जाती थी जोकि कम संख्या में आज भी पाई जाती हैं । उसकी बुद्धिमत्ता एवं सुन्दरता के कारण नागा समाज इस धनेश पक्षी में बड़ी श्रद्धा रखता है । नागाओं के सामाजिक व सांस्कृतिक जीवन में इस धनेश पक्षी का विशेष स्थान है । इनकी लोककथाओं , लोकगीतों तथा लोकनृत्यों  में  इसका श्रेष्ठ स्थान है । किन्तु मतांतरण के कारण यह अब इसे भूलता जा रहा था । अपनी पैतृक सांस्कृतिक जड़ से जुड़ने की लालसा से इस मेले का नाम धनेश मेला रखा गया । राज्य सरकार की योजना है कि इसे राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय स्वरूप दिया जाए । हर साल दिसंबर महीने के पहले सप्ताह में हार्नबिल या धनेश पक्षी के उपलक्ष में एक बड़े समारोह का आयोजन किया जाता है । इसे ‘‘ द हार्नबिल फेस्टिवल ’’ ने नाम से जाना जाता है । इस महोत्सन का उददेश्य है नागालैंड की रंगीन संस्कृति का प्रदर्शन । शिल्प कला और राज्य के लोक संगीत देखने मिलते हें लाखों लोग दुनिया भर से यहां आते है। ।  हार्नबिल धनेश पक्षी को इस राज्य का प्रतीक माना जाता है ।





9 comments:

  1. तेल क्या रेट है सर

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  2. Dhanesh bird ka oil kaha milega

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    1. Bhailog kabhi mat kharidiye ga is tel ko,kyonki es tel ke manufacturing ke liye in pachiyo ko maara jaa raha hai,so please don't buy,kuch log aajkal train mai ise sell kar rahe hain,ye dekhiye

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  3. Dhaneish ka tel ka kiya ret hai sir
    Hame lena hai my contract nambr 8507635387

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  4. सरकार व हम सब का पूर्ण दायित्व है कि विलुप्तता के कगार पर शेष बचे जीव जंतुओं पक्षियों का संरक्षण कैसे किया जाए विशेष जानकारी समाज के लोगों को दी जानी चाहिए ।

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  5. Kya such me iska tel gathiya rog ke liye hota h

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