Monday, 26 May 2014

खरमोर - विलुप्त पक्षी

खरमोर - विलुप्त पक्षी
खरमोर एक बड़े आकार का लम्बी टाँगों वाला भारतीय पक्षी है इसे ‘‘चीनीमोर ’’ या ‘‘ केरमोर ’’ भी कहते हैं । यह मुख्यतः उत्तर-पश्चिमी महाराष्ट , नासिक, अहमदाबाद से लेकर पश्चिमी घाट तक के भारतीय क्षेत्र में पाया जाता है किन्तु वर्षा ऋतु में यह मध्यप्रदेश, राजस्थान, गुजरात तक फेल जाता है । भारत में रतलाम, सरदारपुर सहित कई स्.थानों पर खरमोर के अभायारण्य हैं । नर और मादा बहुत कुछ एक से ही होते हैं । इसके सिर, गर्दन और नीचे का भाग काला और ऊपरी हिस्सा हलका सफेद और तीन सदश काले चित्तियों से भरा रहता है । काने के पीछे कुछ पंख बढ़े हुए रहते हैं । प्रणय तु में नर बहुत चमकीला काले रंग का हो जाता है और सिर पर एक सुंदर कलंगी निकल आती है । मादा नर से कुछ बड़ी होती है । नर का जाड़ों में और मादा का पूरे वर्ष ऊपरी और बगल का भाग काले चिन्हों युक्त हलका बादामी रहता है । इस पक्षी को ऊबड़ खाबड़ और झाड़ियों से भरे मैदान बहुत पंसद हैं , जाड़ों में इसे खेतों में भी देखा जा सकता है । इसका मुख्य भोजन घासपात, जंगली फल, पौधों की जड़े, नए कल्ले एवं कीडे मकोड़े हैं ।
खरमोर को मध्यप्रदेश में खर तीतर के नाम से पुकारते हैं ।  मध्यप्रदेश में 94 हजार 689 वर्ग किलोमीटर में वन क्षेत्र है । प्रदेश में 10 राष्टीय उदयान और 25 वन्य प्राणी अम्यारण्य है जो विविधता से भरपूर है । मध्यप्रदेश के रतलाम जिले में सैलाना में खरमोर बड़ी संख्या में प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु में चार माह के लिए आते हैं । इनकी राष्टीय स्तर पर घटती हुई संख्या के कारण इस पक्षी का संकटापन्न की श्रेणी में रखा है । इनका रहवास घास का वह क्षेत्र है जो सामान्यतर खेतों के आसपास स्थित है । मालवा क्षेत्र में ग्रामीण लोग इसे भटकुकड़ी नाम से भी पहचानते हैं । सैलाना क्षेत्र के अतिरिक्त धार जिले के सरदारपुर क्षेत्र में भी खरमोर पक्षी प्रतिवर्ष आते हैं । खरमोर पक्षी का आकार साधारण मुर्गी के बराबर होता है । खरगोन पक्षियों के आगमन से सामान्यतः 10 से 15 दिवस पश्चात नर पक्षी घास के मैदानों में अपनी टेरीटेरी निर्धारण का प्रयास करने लगते हैं ।  इसके शर्मीले होने के कारण इसे दूर से ही देख जा सकता है । सामान्यतः नर पक्षी तीन से चार फुट की उंचाई तक कूदते हैं । कूदते समय नर पक्षी अपने पंखों  का सफेद भाग विशेष रूप से प्रदर्शित करते हैं और एक तेज विशेष प्रकार की टर्र टर्र आवाज करते हैं  जो कि 500 मीटर तक सुनी जा सकती है । रतलाम जिले के साथ ही प्रदेश के अन्य क्षेत्रों से भी पक्षी प्रेमी प्रति वर्ष बड़ी संख्या में खरमोर देखने के लिए सैलाना पहुंचते हैं । उचित अवधि - अगस्त और सितम्बर माह (वर्षा की स्थिति पर निर्भर ), उचित समय - प्रातः और सांयकाल, उचित स्ािल - शिकारवाड़ी ( यह स्ािल सैलाना से तीन किलोमीटर और रतलाम से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है ), उचित सलाह - घास बीड़ों में घूमने के लिए लांग बूट साथ ले लें । खरमोर देशी मुर्गे के आकार का पक्षी है । यह सोहन चिड़िया परिवार का सदस्य है । इनमें प्रजनन के दौरान जब नर और मादा जोड़ा बांधते हैं ते कुछ में मार-धाड़ और खून खच्चर तक की नौबत आ जाती है । कुछ में मादा को आकर्षित करने के लिए नर बड़ी शालीनता से नाच-गाना करते हैं । खरमोर के प्रणय-निवेदन का तरीका बड़ा ही अनूठा है । खरमोर स्ािानीय रूप से स्ािानांतरण करते हैं और बरसात के दिनों में ऐसे स्थान पर पहुंच जाते हैं जहां ऊंची ऊंची घास के मैदान हों । दरअसल घास के मैदान खरमोर के प्रजनन स्ािल हैं । कभी-कभी ये घास के मैदान से लगे कपास या सोयाबीन आदि फसलों वाले खेतों में भी पहुंच जाते हैं । नर खरमोर प्रजनन काल में आकर्षक रूप धारण कर लेता है । उस समय इसकी गर्दन और छाती काले रंग की तथा बगल वाले पंख सफेद होते हैं माथे पर एक कलगी होती है मादा खरमोर बारहों मास एक सरीखी रहती है । यह मटमैले रंग की तथा चितकबरी होती है । प्रजनन काल नर खरमोर काफी सक्रिय हो उठता है जबकि मादा शर्मिली तथा चुप रहती है । बरसात के दिनों में घास के मैदानों में घास काफी ऊंची उठ जाती है ऐसे में नर खरमोर मादा का आकर्षित करने तथा अपनी उपस्थिति जताने के लिए ऊपर उछलता है । ऊपर उछलते वक्त नर खरमोर अपने पंखों को फड़फड़ाता है, अपनी दुम को फुला लेता है और जोर से आवाज निकालता है और फिर पैराशूट की भांति गिरते हुए वापस जमीन पर लौट आता है । नर खरमोर की आवाज इतनी तेज होती है कि लगभग आधे किलोमीटर के क्षेत्र में गूंजती है । अक्सर नर खरमोर सुबह या शाम का उछलता है या फिर दिन में घने बादल छाए हों तब भी उछलते देखा गया है । नर खरमोर इस उछाल के दौरान क्षेत्र रक्षण करता है कई बार दो या अधिक नर खरमोर में होड़ शुरू हो जाती है । जब एक नर खरमोर उछलता है तो दूसरा तभी ऊपर उछलेगा जब पहला खरमोर जमीन पर आ जाएगा । दिन भर में एक नर खरमोर 400 बार तक उछलते देखा गया है । प्रजनन के बाद मादा खरमोर जमीन पर किसी छिछले गडढ़े में 3-4 अंडे देती है और फिर उन्हें सेती है ।  अंडों से जो बच्चे निकलते हैं उनकी देखभाल भी मादा ही करती है नर खरमोर की अपनी संतान की परवरिश में कोई भूमिका नहीं होती है । मध्यप्रदेश के धार जिले में सरदारपुर तथा रतलाम जिले में सैलाना  में खरमोर अम्यारण बनाए गए हैं । जहां बरसात के दिनों में खरमोर स्.थानांतरित होकर आते हैं और प्रजनन करके फिर न जाने कहां चले जाते हैं । खरमोर (लेसर फलोरिकन) बेहद दुर्लभ प्रजाति जो इंसानों को देखकर फौरन छिप जाने वाले पंछी हैं लिहाजा इनकी गतिविधियों को निहारने का अनुभव अपने आप में दुर्लभ है । नर खरमोर मादा को रिक्षाने के लिए सैकड़ों बार उड़ उड़ कर कलाबाजियां दिखाते हुए टर्र टर्र के स्वर में बाकायदा प्रेमगीत भी गाता है । सुराहीदार गर्दन वाले नर के सिर पर सुंदर कलंगी होती । खरमोर के प्रजनन के साथ एक दुखद पहलू यह कि इंसानों ने इसे गेम बर्ड बना डाला है शिकारी करने के लिए बरसात के दिनों में घात लगाकर बैठे रहते हैं जब नर खरमोर मादा को रिक्षाने के लिए उछलता है तो शिकारी उसे निशाना बना देते है आज इसलिए इनकी संख्या कम हो रही है । इन्हीं सब कारणों से खरमोर अब इतने कम हो गए हैं कि इन्हें विलुप्तशील पक्षियों की श्रेणी में गिना जाने लगा है ।









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