Wednesday, 21 May 2014

रजनीगंधा सुगन्धित पुष्प

रजनीगंधा  सुगन्धित  पुष्प












रजनीगंधा सुगन्धित फूलों वाला पौधा है। यह पूरे भारत में पाया जाता है। रजनीगंधा का पुष्प फनल के आकार का और सफेद रंग का लगभग 25 मिलीमीटर लम्बा होता है जो सुगन्धित होते हैं। रजनीगंधा का उत्पत्ति स्थान मैक्सिको या दक्षिण अफ्रीका है, जहाँ से यह विश्व के विभिन्न भागों 16वीं शताब्दी में पहुँचा। ऐसा विश्वास किया जाता है कि भारत में रजनीगंधा को यूरोप होते हुए 16वीं शताब्दी में लाया गया।
रजनीगंधा का फूल अपनी मनमोहक भीनी-भीनी सुगन्ध, अधिक समय तक ताजा रहने तथा दूर तक परिवहन क्षमता के कारण बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान रखता   है । रजनीगंधा की व्यावसायिक खेती पश्चिमी बंगाल, कर्नाटक, तामिलनाडु और महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, हरियाणा, पंजाब, तथा हिमाचल प्रदेश होती है । रजनीगंधा के पौधे 80-95 दिनों में फूलने लगते हैं । मैदानी क्षेत्रों में अप्रैल से सितम्बर तथा पहाड़ी क्षेत्रों में जून से सितम्बर माह में फूल निकलते हैं । ऐसी जगहों पर जहां दिन और रात के तापमान में अत्याधिक अन्तर न हो पूरे साल उगाया जाता है ।














इसकी खेती पूर्ण प्रकाशीय स्थानों पर अच्छी होती है जहां दिन भर धूप लगती रहती है । रजनीगंधा को कंद लगाकर उगाया जाता है बड़े कंदों से फूल जल्दी निकलते हैं तथा पुष्पदण्ड एवं फूल भी अधिक उत्पादित होते हैं । रजनीगंधा के फूलों को पुष्प दण्डों की लम्बाई, पुष्प भाग की लम्बाई, प्रति पुष्पदण्ड फूलों की संख्या तथा व.जन के अनुरूप श्रेणीकरण किया जाता है । रजनीगंधा मूल रूप से मेक्सिको का पौधा है । इसका नाम लैटिन भाषा ट्वरोज से निकला है । इसका हिन्दी नाम ‘‘ रजनीगंधा’’ है । रजनीगंधा का मतलब ‘‘ सुगंधित रात’’ होता है । इसके फूलों का पौराणिक महत्व है । धार्मिक समारोह, शादी समारोह माला सजावट और विभिन्न पारंपरिक रस्मों में फूलों का उपयोग किया जाता है । इसका उपयोग सौंदर्य प्रसाधन इत्र, आवश्यक तेलों और पान मसाला आदि के उत्पादन में किया जाता है । इससे प्राप्त आवश्यक तेल का उपयोग विभिन्न प्रकार की आयुर्वेदिक  दवाओं , पेय पदार्थ, डेंटल क्रीम और माऊथ वाश के निर्माण में किया जाता है । इससे प्राप्त कंद का उपयोग प्रमेह के उपचार में किया जाता है ।
















भारत में रजनीगंधा बैंगलोर, मैसूर और देहरादून में पाया जाता है । रजनीगंधा एक  बारह मासी पौधा है जिसका उपयोग इत्र के निर्माण में किया जाता है । इनके फूल सफेद होते हैं फूल जोड़े में होते हैं और लंबाई 3 से 6 से.मी. होती है । रजनीगंधा का पौधा 40 से 75 इंच ऊँचाई का होता है । 
रजनीगंधा कंदीय पौधों में एक मुख्य आभूषक पौधा है इसका उपयोग कट पुष्प और सुगंध उद्योग में अत्याधिक किया जाता है । 
रजनीगंधा तीन प्रजातियों में पाया जाता है 
1. सिंगल-इसमें एक चक्र में ही फूल होते हैं । मैक्सिकन सिंगल, मैक्सिकन एवरब्लूमिंग तथा कलकत्ता सिंगल   हैं ।
2. सेमीडबल- इसमें 2-3 चक्रों में फूल होते हैं । 
3. डबल- इसमें 3 से ज्यादा चक्रों में फूल होते हैं । डबल पर्ल एक्सेलसर, पर्ल, कलकत्ता डबल ।   अन्य किस्मों में स्वर्ण रेखा और रजत रेखा भी प्रचलित हैं ।
रजनीगंधा अर्धकठोर, बहुवर्षीय, कन्दीय पौधा है। इसका कन्द बहुत सारे शल्क पत्रों से बना होता है तथा तना बहुत ही छोटा होता है। इसकी जड़े उथली एवं शाखीय होती है।
रजनीगंधा के पुष्पों का उपयोग सुंदर मालायें, गुलदस्ते बनाने में किया जाता है। इसकी लम्बी पुष्प डंडियों को सजावट के रूप में काफी प्रयोग किया जाता है। रजनीगंधा के फूलों से सुगन्धित तेल भी तैयार किया जाता है जिसे उच्च स्तर के सुगन्धित इत्र एवं प्रसाधन सामग्री में उपयोग किया जाता है।













रजनीगंधा के सुगंधित फूलों को चॉकलेट से निर्मित पेय पदार्थों में शक्तिवर्धक अथवा शान्तिवर्धक औषधियों के साथ मिलाकर गर्म अथवा ठण्डा पीया जाता है। इसके कन्दों में लाइकोरिन नामक एल्कलायड होता है जिसको प्रयोग कराने से उल्टी हो जाती है। कन्दो को हल्दी तथा मक्खन के साथ पीसकर पेस्ट तैयार कर कील-मुहासों को दूर करने में इसका उपयोग किया जाता है। कन्दो को सुखाकर पाउडर बनाकर इसका प्रयोग गोनोरिया को दूर करने में किया जाता है। जावा में इसके फूलों को सब्जियों के जूस में मिलाकर खाया जाता है। रजनीगंधा एक शीतोष्ण जलवायु का पौधा है परन्तु औसत  जलवायु  में पूरे वर्ष भर में भी लगाया जा सकता है उ.प्र. के मैदानी भागों में यह सम शीतोष्ण मौसम में अप्रैल से नवम्बर तक आसानी से उगाया जा सकता है रजनीगंधा के विकास और वृद्धि के लिए उपयुक्त तापक्रम 20-30 डिग्री से.ग्रे. है । इसके कंदों का रोपण मार्च अप्रैल या मई के महीने तक किया जा सकता है परन्तु साल भर फूल लेने के लिए प्रत्येक 15 दिन के अन्तराल पर कंद रोपण भी किया जा सकता है । प्रथम वर्ष में फूलों की पैदावार 150-200 क्विंटल प्रति हे. के आसपास रहती है जबकि दुसरे वर्ष में 200-250 क्विंटल तक होती है इसके बाद पैदावार घट जाती है रजनी गंधा की फसल से 2-3 लाख स्पाईक प्रति हे. या 15-20 टन लूज लावर और 15-20 टन प्रति हे. बल्ब तथा लेट्स अतिरिक्त आमदनी देते है । रजनीगंधा उत्पाद - रजनीगंधा तेल, रजनीगंधा इत्र और रजनीगंधा पान मसाला 










1 comment:

  1. Sir rajnigandha ke bulb ko do saal baad mitte se nikale ya kya Karen ,aur nikalne ke baad dobara lagaye ja sakte hain ye bulb ya nahi aur nikalne ke baad bulb ki dekh rekh kaise karen

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