Tuesday, 17 June 2014

माँ धारी देवी - पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षक देवी

माँ धारी देवी - पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षक देवी 

बदरीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर श्रीनगर से करीब 15 किलोमीटर की दूरी पर कलियासौड़ में अलकनन्दा नदी के किनारे सिद्धपीठ माँ धारी देवी का मंदिर स्थित है । माँ धारी देवी प्राचीन काल से उत्तराखण्ड की रक्षा करती है, सभी तीर्थ स्थानों की रक्षा करती है । माँ धारी देवी मंदिर का इतिहास बहुत पुराना है । वर्ष 1807 से इसके यहां होने का साक्ष्य मौजूद है । पुजारियों और स्थानीय लोगों का मानना है कि मंदिर इससे भी पुराना है । 1807 से पहले के साक्ष्य गंगा में आई बाढ़ में नष्ट हो गए हैं । 1803 से 1814 तक गोरखा सेनापतियों द्वारा मंदिर को किए गए दान अभी भी मौजूद है । बताया जाता है कि ज्योतिलिंग की स्थापना  के लिए जोशीमठ जाते समय आदि शंकराचार्य ने श्रीनगर में रात्रि विश्राम किया था । इस दौरान अचानक उनकी तबीयत बिगड़ने पर उन्होंने धारी माँ की आराधना की थी, जिससे वे ठीक हो गए थे । तभी उन्होंने धारी माँ की स्तुति की थी ।












इस मंदिर में पूजा अर्चना धारी गांव के पंडित कराते हैं । यहां के तीन पंडित भाई (परिवार) चार -चार महीने पूजा कराते हैं । पुजारी का कहना है कि मां की जो इच्छा हो उसे पूरा किया जाए । मां दो बार अपना जवाब सुना चुकी है कि उन्हें यहां से नहीं हटाया जाए । मां की शक्ति है कि 25 साल से यह  पाॅवर प्रोजेक्ट नहीं बन रहा है । मां हम लोगों की रक्षा कर रही है । धारी देवी मंदिर पौड़ी गढ़वाल, श्रीकोट से 15 किलोमीटर दूर कालिया सौड की सड़क है जो एक बार भूस्खलन के लिए जाना जाता है । यद्यपि अभी मानसून के दौरान, भूस्खलन होते रहते हैं पर ये बहुत हद तक सीमित एंव नियंत्रित रहते हैं । इसके अलावा अधिक महत्वपूर्ण एक किलोमीटर की नदी का रास्ता है जो इस क्षेत्र के लोगों की पूजित प्रमुख देवी धारी देवी के काली सिद्धपीठ तक ले जाता है । यहां के पुजारी बताते हैं कि द्वापर युग से ही काली की प्रतिमा यहां स्थित है । ऊपर के काली मठ एवं कालिस्य मठों में देवी काली की प्रतिमा क्रोध की मुद्रा में है पर धारी देवी मंदिर में वह कल्याणी परोपकारी शांत मुद्रा में है । उन्हें भगवान शिव द्वारा शांत किया गया जिन्होंने देवी-देवताओं से उनके हथियार का इस्तेमाल करने को कहा । यहां उनके धार की पूजा होती है जबकि उनके शरीर की पूजा काली मठ में होती है । पुजारी का मानना है कि धारी देवी, धार शब्द से ही निकला है । पुजारी मंदिर के बारे में अन्य कथा का पुरजोर खंडन करता है । 











कहा जाता है कि एक भारी वर्षा की काली रात में जब नदी में बाढ़ का उफान था, धारो गांवके लोगों ने एक स्त्री का रूदन सुना । उस जगह जाने पर उन्हें काली की एक मूर्ति मिली जो बाढ़ के पानी में तैर रही थी । एक दैवी की आवाज ने ग्रामीणों को इस मूर्ति को वही स्थापित  करने का आदेश दिया, यहंा वह मिली थी । ग्रामीणों ने यह भी किया और देवी को धारी देवी नाम दिया गया । पुजारी मानता है कि भगवती काली जो हजारों को शक्ति प्रदान करती है, वह लोगों से अपने बचाव के लिए सहायता नहीं मांग सकती थी । पर वह मानता है कि वर्ष 1980 की बाढ़ में प्राचीन मूर्ति खो गयी तथा 5-6 वर्षो बाद तैराकों द्वारा नदी से मूर्ति को खोज निकाला गया । इस अल्पावधि में एक अन्य प्रतिमा स्थापित  हुई, तथा अब मूल प्रतिमा को पुनस्र्थापित किया गया है । आज देवी की प्राचीन प्रतिमा के चारों ओर एक छोटा मंदिर चट्टान पर स्थित है । प्राचीन देवी की मूर्ति के इर्द-गिर्द चट्टान पर एक छोटा मंदिर स्थित है । देवी की आराधना भक्तों द्वारा अर्तित 50,000 घंटियों बजा कर की जाती है । माँ धारी देवी का मंदिर अलकनंदा नदी पर बन रही 330 मेगावाट जल विद्युत परियोजना की डूब क्षेत्र में आ रहा है । मंदिर समिति के अध्यक्ष एवं समिति के सदस्यों का कहना है कि मंदिर के 200 वर्ष से अधिक होने संबंधी लिखित प्रमाण हैं । ऐसे में अलकनंदा पर बने बांध से बनी झील ने मंदिर के अस्तित्व को संकट में डाल दिया है । धारी देवी माँ  श्मशानी देवी हैं इसलिए मंदिर आगे से खुला होना चाहिए जिससे धारी गांव का पैतृक घाट मंदिर के सम्मुख रहे ।








हटाई माता ‘‘ धारी देवी ’’ की मूर्ति तो उत्तराखण्ड में हुआ ‘‘महाविनाश’’ -इसे चाहें तो अंधविश्वास कहें या महज एक संजोग उत्तराखण्ड में हुई तबाही के लिए जहां लोग प्रशासन की लापरवाही को जिम्मेदार ठहरा रहे हैं वहीं उत्तराखण्ड के गढ़वाल वासी का मानना है कि माता धारा देवी के प्रकेाप से ये महाविनाश हुआ । मां काली का रूप माने जाने वाली धारा देवी की प्रतिमा को 16 जून 2013 की शाम को उनके प्राचीन मंदिर से हटाई गई थी । उत्तराखण्ड के श्रीनगर में हाइडिल-पाॅवर प्रोजेक्ट के लिए ऐसा किया गया था । प्रतिमा जैसे ही हटाई गई उसके कुछ घंटे के बाद ही केदारनाथ मे तबाही का मंजर आया और सैकड़ो लोग इस तबाही के मंजर में मारे गये  इस इलाके में माँ धारी देवी की बहुत मान्यता है लोगों की धारणा है कि माँ धारी देवी की प्रतिमा में उनका चेहरा समय के बाद बदला है । एक लड़की से एक महिला और फिर एक वृद्ध महिला का चेहरा  बना । पौराणिक धारणा है कि एक बार भयंकर बाढ़ में पूरा मंदिर बह गया था लेकिन माँ धारी देवी की प्रतिमा एक चट्टान से सटी धारो गांव में बची रह गई थी । गावंवालों को माँ धारी देवी की ईश्वरीय आवाज सुनाई दी थी कि उनकी प्रतिमा को वहीं स्थापित  किया जाए , यही कारण है कि माँ धारी देवी की प्रतिमा को उनके मंदिर से हटाए जाने का विरोध किया जा रहा था । यह मंदिर श्रीनगर से 10 किलोमीटर दूर पौड़ी गांव में है । सिर्फ केदारनाथ के मंदिर को छोड़कर । 16 जून 2013 को शाम 6 बजे धारी देवी की मूर्ति को हटाया गया और रात्रि आठ बजे अचानक आए सैलाब ने मौत का तांडव रचा और सबकुछ तबाह कर दिया जबकि दो घंटे पूर्व मौसम सामान्य था । 











श्रीनगर गढवाल क्षेत्र में एक बहुत ही प्राचीन सिद्ध पीठ है जिसे ‘‘ धारी देवी ’’ का सिद्धपीठ कहा जाता है । इसे दक्षिणी काली माता भी कहते हैं । मान्यता अनुसार उत्तराखंड में चारों  धामों की रक्षा करती है ये देवी । इस देवी को पहाड़ों और तीर्थयात्रियों की रक्षक देवी माना जाता है । महा विकराल इस काली देवी की मूर्ति स्थापना  और मंदिर निर्माण की भी रोचक कहानी है । मूर्ति जाग्रत और साक्षात है । समूचा हिमालय क्षेत्र मां दुर्गा और भगवान शंकर का मूल निवास स्थान माना जाता है । इस स्थान पर मानव के जब से अपनी गतिविधियां बढ़ाना शुरू की हैं तब से जहां प्राकृतिक आपदाएं बढ़ गईं हैं वहीं यह समूचा क्षेत्र अब ग्लेशियर की चपेट में भी आने लगा है । लेकिन नदी पर बांध बनाने के चक्कर में सरकार ने इस देवी के मंदिर को तोड़ दिया और मूर्ति को मूल स्थान से हटाकर अन्य जगह पर रख दिया ।





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