Tuesday, 24 June 2014

केदारनाथ मंदिर - प्राचीन, प्राकृतिक शिव ज्योतिर्लिंग

केदारनाथ मंदिर - प्राचीन, प्राकृतिक शिव  ज्योतिर्लिंग
केदारनाथ मंदिर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के रूद्रप्रयाग जिले में हिमालय पर्वत की गोद में पंच केदार में से एक है भगवान शिव  के 12 ज्योतिलिंगों में से 11वां ज्योतिर्लिंग केदारनाथ मंदिर में ही है कत्यूरी शैली  में पत्थरों से बने इसका निर्माण पाण्डव वंश के जनमेजय ने कराया था यहां स्थित स्वयंम्भू शिवलिंग अति प्राचीन है केदारनाथ की बड़ी महिमा है यह मंदिर एक छह फीट ऊंचे चैकोर चबूतरे पर बना हुआ है मंदिर में मुख्य भाग मण्डप और गर्भगृह के चारों ओर प्रदक्षिणा पथ है बाहर प्रांगण में नंदी बैल वाहन के रूप में विराजमान हैं केदानाथ ज्योतिर्लिंग की पूजा में प्रातः काल में शिव-पिण्ड को प्राकृतिक रूप से स्नान कराकर उस पर घी-लेपन किया जाता है   इसके बाद  धूप-दीप जलाकर आरती उतारी जाती है संध्या के समय भगवान का श्रृंगार किया जाता है, उन्हें विविध प्रकार के  चित्राकर्षक  ढंग से सजाया जाता है भक्तगण दूर से केवल इसका दर्शन ही कर सकते हैं










केदारनाथ के पुजारी मैसूर के जंगम ब्राहमण ही होते हैं ज्योतिर्लिंग की स्थापना के बारे में कहा जाता है कि हिमालय के केदार श्रृंग पर भगवान विष्णु के अवतार महातपस्वी नर और नारायण ऋषि तपस्या करते थे उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शंकर  प्रकट हुए और उनके प्रार्थनानुसार ज्योतिर्लिंग के रूप में सदा वास करने का वर प्रदान किया यह स्थल केदारनाथ पर्वतराज हिमालय के केदार नामक श्रृंग पर अवस्थित है गिरिराज हिमालय की केदार नामक चोटी पर स्थित है देश  के बारह ज्योतिर्लिंगों में सर्वोच्च केदारेश्वर ज्योतिर्लिंग केदारनाथ धाम और मंदिर तीन तरफ पहाड़ों से घिरा है एक तरफ है करीब 22 हजार फुट ऊंचा केदारनाथ, दूसरी तरफ है 21 हजार 600 फुट ऊंचा खर्चकुंड और तीसरी तरफ है 22 हजार 700 फुट ऊंचा भरतकुंड सिर्फ तीन पहाड़ बल्कि पांच नदियों का संगम भी है यहां - मंदाकिनी, मधुगंगा, क्षीरगंगा, सरस्वती और स्वर्णगौरी इसी के किनारे है केदारेष्वर धाम यहां सर्दियों में भारी बर्फ और बारिश में जबरदस्त पानी रहता है











हिमालय सदियों से ऋषि-मुनियों तथा देवताओं की तपःस्थली रहा है केदारनाथ चोटी के पूर्व दिशा  में कल-कल करती उछलती अलकनन्दा नदी के परम पावन तट पर भगवान बद्री विशाल  का पवित्र देवालय स्थित है तथा पश्चिम  में पुण्य सलिला मन्दाकिनी नदी के किनारे भगवान श्री केदारनाथ विराजमान हैं केदारेष्वर ( केदारनाथ) ज्योतिर्लिंग के प्राचीन मंदिर का निर्माण पाण्डवों ने कराया था जो पर्वत की 11750 फुट की ऊंचाई पर अवस्थित है पौरारिणक प्रमाण के अनुसार ‘‘केदार महिष अर्थात भैंसे का पिछला अंग (भाग) है केदारनाथ मंन्दिर की ऊंचाई 80 फुट है, जो एक विषाल चैकोर चबूतरे पर खड़ा है इस मंदिर के निर्माण में भूरे रंग के पत्थरों का उपयोग किया गया है यह भव्य मंदिर पाण्डवों की शिवभक्ति, उनकी दृढ़  इच्छाशक्ति तथा उनके बाहुबल का जीता जागता प्रमाण है इस मंदिर में उत्तम प्रकार की कारीगरी की गई है मन्दिर के ऊपर स्तम्भों में सहारे लकड़ी की छतरी निर्मित है, जिसके ऊपर तांबा मढ़ा गया है मंदिर का शिखर  (कलश ) भी तांबे का ही है किन्तु  उसके ऊपर सोने की पॉलिश  की गयी है मंदिर के गर्भ गृह में केदारनाथ का स्वयंमभू ज्योतिर्लिंग है, जो अनगढ़ पत्थर का है यह लिंगमूर्ति चार हाथ लम्बी तथा डेढ़ हाथ मोटी है, जिसका स्वरूप भैंसे की पीठ के समान दिखाई पड़ता है   इसके आस-पास संकरी परिक्रमा बनी हुई है, जिसमें श्रद्धालु भक्तगण प्रदक्षिणा करते हैं इस ज्योतिर्लिंग के सामने जल, फूल ,बिल्वपत्र आदि को चढ़ाया जाता है और इसके दूसरे भाग में यात्रीगण घी पोतते हैं भक्त लागे इसे लिंगमूर्ति को अपनी बाहों में भरकर भगवान से मिलते भी हैं मंदिर के जगमोहन में द्रोपदी सहित पांच पाण्डवों की विशाल  मूर्तियां हैं मंदिर के पीछे कई कुण्ड हैं जिनमें आचमन तथा तर्पण किया जा सकता है






भैंसा रूपी शिव के अंगों के आधार पर ये केदार-स्थान इस प्रकार हैं:
1.            केदारनाथ प्रमुख तीर्थ में भैंसा की पीठ के रूप में
2.            मध्य महेश्वर  में उसकी नाभि के यप में
3.            तुंगनाथ में उसकी भुजाएं और हृदय के रूप में
4.            रूद्रनाथ में मुख के रूप में और
5.            कल्पेश्वर  में जटाओं के रूप में प्रतिष्ठित हैं

 



 दक्षिण भारत के रावल (ब्राहमण) मंदिर के प्रमुख पुजारी होते हैं केदारनाथ जी का मंदिर आम दर्शनर्थियों के लिए प्रातः 7 बजे खुलता है दोपहर एक से दो बजे तक विशेष  पूजा होती है और उसके बाद विश्राम के लिए मंदिर बन्द कर दिया जाता है पुनः शाम 5 बजे जनता के दर्षन हेतु मंदिर खोला जाता है  पांच  मुख वाली भगवान शिव  की प्रतिमा का विधिवत श्रृंगार करके 7.30 से 8.30 बजे तक नियमित आरती होती है रात्रि 8.30 बजे केदारेश्वर  ज्योतिर्लिंग का मंदिर बन्द कर दिया जाता है  शीतकाल काल में केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा को उखीमठ में लाया जाता है इसी प्रतिमा की पूजा यंहा भी रावल जी करते हैं। भगवान की पूजाओं के क्रम में प्रातःकालीन पूजा, महाभिषेक पूजा, अभिषेक, लघु रूद्राभिषेक, षोडषोपचार पूजन, अष्टोपचार पूजन, सम्पूर्ण आरती, पाण्डव पूजा, गणेष पूजा, श्री भैरव पूजा, पार्वती जी की पूजा, शिव  सहस्त्रनाम आदि प्रमुख है






वैज्ञानिकों के अनुसार केदारमंदिर 400 साल तक 13वीं से 17वीं शताब्दी तक बर्फ में दबा रहा फिर भी इस मंदिर को कुछ नहीं हुआ 400 साल तक एक छोटा हिमयुग आया था जिसमें हिमालय का एक बड़ा क्षेत्र बर्फ के अंदर दब गया था मंदिर ग्लैशियर के अंदर नहीं था बल्कि बर्फ में ही दबा था, मंदिर की दीवार और पत्थरों पर आज भी इसके निशान  हैं ये निशान  ग्लैशियर की रगड़ से बने हैं ग्लैशियर  हर वक्त खिसकते रहते हैं उनके साथ कई चटटानें भी रगड़ खाती हुई चलती हैं वैज्ञानिकों के मुताबिक मंदिर के अंदर भी इसके निषान दिखाई देते हैं बाहर की ओर दीवारों के पत्थरों की रगड़ दिखती है मंदिर बहुत ही मजबूत बनाया गया है मोटी-मोटी चटटानों से पटी है इसकी दीवारें और उसकी जो छत है वह एक ही पत्थर से बनी है 85 फीट ऊंचा, 187 फीट लंबा और 80 फीट चैड़ा है केदारनाथ मंदिर इसकी दीवारें 12 फीट मोटी हैं और बेहद मजबूत पत्थरों से बनाई गई है मंदिर को 6 फीट ऊंचे चबूतरे पर खड़ा किया गया है बहुत भारी पत्थरों को इतनी ऊंचाई  पर लाकर तराष कर इस्तेमाल किया गया है पत्थरों को एक दूसरे से जोड़ने के लिए इंटरलाॅकिंग तकनीक का इस्तेमाल किया गया है भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) को मंदिर की दीवारों पर प्रारंभिक नागरी नागरी में लिखे अक्षर मिले, जो  11-12वीं सदी में ही लिखे जाते थे














देवभूमि में 16 जून को आसमान से बरसी आफत ने भारी तबाही मचाई लेकिन एक शिला की अहम भूमिका रही जब उत्तराखण्ड में आई आपदा से सब कुछ तहस नहस हो रहा था उस समय यह शिला ही मंदिर की रक्षक बनी और मंदिर को बचाया इस शिला की वजह से केदारनाथ मंदिर को कोई क्षति नहीं हुई केदारनाथ मंदिर को बचाने वाली दिव्य शिला की भी होगी पूजा इसे दैवीय संयोग कहें या फिर दिव्य शिला की करामात, केदारनाथ मंदिर को तनिक भी नुकसान नहीं पहुंचा चंद मिनटों में ही केदारनाथ और आसपास का इलाका मंदाकिनी के सैलाब में बह गया था तबाही के बीच भी केदारनाथ का मंदिर सुरक्षित रहा तो इसके पीछे इस चट्टान का ही चमत्कार रहा केदारनाथ मंदिर में 86 दिन बाद पूजा षुरू हो गई पहले सुबह सात बजे मंदिर का शुद्धिकरण   पूजा की गई इसके बाद मंदिर के कपाट खोले गए भगवान का अभिषेक किया गया फिर उसके बाद नियमित पूजा शुरू  हुई । ( अशोक सिंह )









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