Monday, 30 June 2014

अष्टविनायक मंदिर - पौराणिक और धार्मिक महत्व

अष्टविनायक मंदिर- पौराणिक और धार्मिक महत्व

अष्टविनायक यात्रा में आठ गणेश मंदिरों की तीर्थयात्रा को महाराष्ट्र में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है । तीर्थ गणेश के ये आठ पवित्र मंदिर स्वयं उत्पन्न और जागृत हैं । धार्मिक नियमों से तीर्थयात्रा शुरू की जानी चाहिए । यात्रा निकट मोरगांव से शुरू कर और वहीं समाप्त होनी चाहिए । पूरी यात्रा 654 किलोमीटर की होती है । पुराणों व धर्म ग्रंथों में उल्लेख मिलता है कि भगवान ब्रहमदेव ने भविष्यवाणी की थी कि हर युग में श्री गणेश विभिन्न रूप मंे अवतरित होंगें । कृतयुग में विनायक, त्रेतायुग में मयूरेश्वर, द्वापरयुग में गजानन एवं धूम्रकेतु नाम से कलयुग के अवतार लेंगे । भगवान गणेश के आठों शक्तिपीठ महाराष्ट्र में ही हैं । दैत्य प्रवृतियों के उन्मूलन हेतु ये ईश्वरीय अवतार हैं । मंदिरों के पौराणिक महत्व और इतिहास बताता है कि यहां विराजित गणेश प्रतिमाएं स्वयंभू मानी जाती हैं अर्थात यह मूर्तियां स्वयं प्रकट हुई हैं और इनका स्वरूप प्राकृतिक माना गया है । अष्ट विनायक की यात्रा से आध्यात्मिक सुख, आनंद की प्राति होती हैं । अष्टविनायक दर्शन की शास्त्रोक्त क्रमबद्धता इस प्रकार है ।
1.         श्री मयूरेश्वर मंदिर
2.         श्री सिद्धिविनायक (सिद्धटेक)
3.         श्री बल्लालेश्वर मंदिर
4.         श्री वरदविनायक मंदिर
5.         श्री चिंतामणी गणेश मंदिर
6.         श्री गिरिजात्मज अष्टविनायक
7.         श्री विघनेश्वर अष्टविनायक
8.         श्री महागणपति मंदिर








इन आठ पवित्र तीर्थ में 6 पुणे में हैं और 2 रायगढ़ जिले में है । जो भगवान गणेश को समर्पित कर रहे हैं जो अष्टविनायक मंदिरों की यात्रा करनी चाहिए । सबसे पहले मोरेगांव के मोरेश्वर की यात्रा करनी चाहिए और उसके बाद क्रम में सिद्धटेक, पाली, महाड, थियूर, लेनानडरी, ओजर, रन्जनगांव और उसके बाद फिर से मोरेगांव अष्टविनायक मंदिर यात्रा समाप्त करनी चाहिए ।

1.श्री मयूरेश्वर मंदिर - ज्ञान का हाथी , मंदिर पुणे से 80 किलोमीटर दूर स्थित है । मोरगांव गणेश मंदिर की पूजा का सबसे महत्वपूर्ण केन्द्र है । पौराणिक कथा के अनुसार भगवान गणेश ने दानव सिंधु से लोगों का बचाव किया था । मोरया गोसावी ने इस मंदिर के संरक्षण हैं आज मोरया गोसावी जो कि पेशवा शासकों के परिवार से है इसे व्यवस्थित कर रहे हैं । मोरेगांव मंदिर आठ श्रद्धेय मंदिरों की तीर्थ यात्रा का शुरूआती बिन्दु है तथा साथ ही तीर्थयात्री तीर्थयात्रा के अंत में मोरगांव मंदिर की यात्रा नहीं करता है तो तीर्थ अधूरा माना जाता है । मयूरेश्वर मंदिर में मुस्लिम वास्तुकला का प्रभाव दिखता है क्योंकि इसके निर्माण और संरक्षक के रूप में एक मुस्लिम मुखिसा उस समय था । मंदिर के चारों कोने मीनारों के के साथ एक लंबे पत्थर चारदिवारी से घिरे हैं । मंदिर के चार द्वार चार युगों की याद दिलाते हैं । 1. पूर्वी द्वार पर राम और सीता की छवि जो कि धर्म, कर्तव्य के प्रतीक के रूप में, 2. दक्षिणी द्वार पर शिव और पार्वती जो कि धन और प्रसिद्धि के प्रतीक के रूप में 3. पश्चिमी गेट पर कामदेव और रति जो कि इच्छा, प्रयार और कामुक खुशी के प्रतीक के रूप में और 4. उत्तरी द्वार पर वराह और देवी माही जो कि मोक्ष और शनि ब्रहम का प्रतीत मानी जाती हैं । 













मंदिर के द्वार पर एक बहुत बड़ी नंदी बैल की मूर्ति स्.थापित है जिसका मुंह भगवान की मूर्ति की तरफ है । यह नंदी भगवान शिव मंदिर ले जाया जा रहा था विश्राम के लिए उसे गणेश मंदिर पर रखा गया तो बाद में उसने वहां से जाने से मना कर दिया तब से आज नंदी और मूसा दोनों गणेश मंदिर के मुख्य द्वार के सरंक्षक माने जाते हैं । इस मंदिर में गणपति जी बैठी मुद्रा में विराजमान है तथा उनकी टंक बाई ओर की तरफ तथा चार भुजाएं एवं तीन नेत्र स्पष्ट प्रदर्शित हैं । गणेश मूर्ति के सामने गणेश के वराह मूसा एवं मोर हैं तथा गर्भगृह के बाहर नगना, भैरव हैं । मंदिर के विधानसभा भवन में गणेश के विभिन्न रूपों का चित्रण 23 विभिन्न मूर्तियों स्.थापित हैं । दिन में तीन बार सुबह 7 बजे, दोपहर 12 बजे और रात्रि 8 बजे पूजा की जाती है 









मयूरेश्वर दूर से एक छोटे किले की तरह दिखता है । मयूरेश्वर की मूर्ति के पास केवल मुख्य पुजारी को प्रवेश की अनुमति है । जिसमें गर्भगृह, गर्भगृह में है देवता विराजमान तीन आंखों , और अपने टंªक बांई ओर कर दिया है । आंखें और देवता की नाभि कीमती हीरों से जड़ी हुई है । सिर पर नागराज की नुकीले देखी जा सकती हैं । गणेश मूर्ति सिद्धि और बुद्धि की पीतल की मूर्तियों से घिरे हुए है । मूर्ति पर 100-150 साल तक सतत अभिषेक एवं सिंदूर  से वास्तवित मूर्ति से यह बहुत बड़ी दिखने लगी है । मुख्य द्वार गर्भगृह में देवता का सामना एक कछुआ और एक नंदी से होता है । हिन्दू मिथक के अनुसार मयूरेश्वर के मंदिर में भगवान गणेश द्वारा सिंधुरासुर नामक एक राक्षस की हत्या से संबंधित है । सभी देवताओं को सिंधु के कहर से बचाने के लिए भगवान गणेश से प्रार्थना की और भगवान गणेश मोर पर सवार होकर युद्ध में राक्षस सिंधु का नाश किया और बाद में मोर को भाई स्कंद को भेंट कर दिया ।















2. सिद्धिविनायक गणपति - अष्ट विनायक मंदिर तीर्थयात्रा के दौरान यह दूसरा गणेश मंदिर है जो भीम नदी के तट पर स्थित है । यह पुणे से 200 किलोमीटर दूर सिद्धटेक के गावं में स्थित है । सिद्धिटेक पर्वत पर भगवान विष्णु ने सिद्धि हासिल की थी इसलिए यहां भगवान गणेश की ऐसी मूर्ति सिद्धविनायक के रूप में कहा जाता है । पुणें में सबसे पुराने मंदिरों में से एक है । यह मंदिर 200 से अधिक साल पुराना है । मूल मंदिर श्रीमंत नानासाहेब  द्वारा 1753 में पेशवा राजवंश ने निर्माण किया गया था । पुणे में और आसपास श्रद्धालुओं के लिए यह एक जबरदस्त आस्था और भक्ति है । यह गणपति आपके सभी इच्छाओं को पूरा करने के लिए जाना जाता है और के रूप में जाना जाता है । सिद्धिटेक में सिद्धिविनायक अष्टविनायक मंदिर एक बहुत शक्तिशाली देवता माना जाता है यह वह जगह है जहां भगवान विष्णु ने सिद्धी हासिल की थी । सिद्धटेक में सिद्धि विनायक की मूर्ति स्वयंभू यानि स्वयं अवतीर्ण और पीतल फ्रेम में है । हम सिद्धि विनायक के दोनों किनारों पर जय और विजय की पीतल की मूर्तियां देख सकते हैं । मंदिर के गर्भगृह में देवी शिवाय का छोटा सा मंदिर है । सिद्धिविनायक मंदिर पहाड़ी की चोटी पर बना है जिसका मुख्य द्वार उत्तर दिशा की ओर है । मंदिर का हाॅल जो कि 15 फुट ऊंचा और 10 फुट चैड़ा है जिसे महारानी अहिल्याबाई होलकर ने बनवाया था । सिद्धिविनायक मंदिर की परिक्रमा के लिए पहाड़ी की गोल यात्रा करनी पड़ती है जिसमें लगभग 30 मिनट लग जाते हैं । इस मंदिर में गणेश की मूर्ति 3 फीट ऊंची और ढाई फीट चैड़ी और जो कि उत्तर दिशा की ओर मुख किए हैं । भगवान गणेश की टंªक सीधे हाथ की तरफ है और इस गणेश की गतिशील रूप माना जाता है ।














3.श्री बल्लालेश्वर मंदिर अपने भक्त का नाम और जो एक ब्राहम्ण की तरह कपड़े पहने है । यह मंदिर गोवा राजमार्ग पर नागोथाने से पहले से 11 किलोमीटर, मुंबई पुणे हाइवे बांद, पाली से टोयन में स्थित है । एक लड़का बल्लाल भगवान गणेश का प्रबल भक्त था । एक दिन उसने अपने पाली गांव में एक विशेष पूजा का आयोजन किया जिसमें भाग लेने के लिए गांव के सभी बच्चों को आमंत्रित किया और पूजा कई दिनों तक चली , समपिर्त बच्चों बल्लाल की पूजा के पूरा होने से पहले घर लौटने से इन्कार कर दिया । इससे बच्चों के माता पिता नाराज होकर बल्लाल के पिता कल्याणी सेठ से शिकायत की तो उन्होंने जगंल जाकर जहां यह पूरा चल रही थी भगवान गणेश की मूर्ति को एवं बल्लाल को पीटा एवं गंभीर हालत में जंगल में फेंक दिया । 



पर भक्त बल्लाल गणेश जप करता रहा तब गणपति ने दर्शन दिये तो बालक बल्लाल ने इसी गांव में निवास का आग्रह किया तब भगवान गणेश ने अपनी सहमति दी और कहा कि यह स्थान एवं मंदिर बल्लाल के नाम से ही जाना जाएगा । बल्लालेश्वर पाली पहुंचने के लिए जो कि रायगढ़, तालुका सुधागढ़ में स्थित है । पाली कर्जत से लगभग 50 किलोमीटर की दूरी पर है । यह स्थान खोपोली पूणे से 80 किलोमीटर की दूरी पर है । भगवान गणेश एक बहुत लोकप्रिय देवता हैं । भगवानों में सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण अधिकार भगवान गणपति की पूजा का है । गणपति सभी बाधाओं और दर्द को दूर कर भक्त की इच्छाओं की पूर्ति कर खुशी प्रदान करते हैं । गणपति को बुद्धि और कला का भगवान माना जाता है ।













4.श्री वरदविनायक  ’- देवताओं में प्रथम पूजनीय भगवान श्री गणेश का ही एक रूप हैं । मंदिर महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले के कोल्हापुर तालुका में एक सुन्दर पर्वतीय गाँव महाड में स्थित है । इस मंदिर की मान्यता है कि यहां वरदविनायक गणेश अपने नाम के समान ही सारी कामनाओं को पूरा होने का वरदान देते हैं । प्राचीन काल मंे यह स्थान ‘‘ भद्रक ’’ नाम से भी जाना जाता था । इस मंदिर में नंददीप नाम से एक दीपक निरंतर प्रज्जवलित है, यक सन् 1892 से लगातार प्रदीप्यमान है । कथा - पुष्पक वन में गृत्समद षि के तप से प्रसन्न होकर भगवान गणपति ने उन्हें ‘‘ गणनां त्वां ’’ मंत्र के रचयिता की पदवी यहीं पर दी थी और ईश देवता बना दिया । उन्हीं वरदविनायक गणपति का यह स्थान है । वरदविनायक गणेश का नाम लेने मात्र से ही सारी कामनाओं को पूरा होने का वरदान प्राप्त होता है । वरदविनायक चतुर्थी का साल भर नियमानुसार व्रत करने से सम्पूर्ण मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती है । प्रति माह कि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मध्याहन के समय वरदविनायक चतुर्थी या वैनाय की चतुर्थी का व्रत किया जाता है । वैनाय की चतुर्थी में गणेशजी की षोडशोपचार विधि से पूजा-अर्चना करने का विधान है । पूजन में गणेशजी के विग्रह को दूर्वा, गुड़ या मोदक का भोग , सिंदूर या लाल चंदन चढ़ाना चाहिए एवं गणेश मंत्र का 108 बार जाप करें ।














5. चिंतामणि गणपति (थेयूर) - यह मंदिर हवेली तालुका जो पुणे जिले में पवित्र स्थान जो कि तीन नदियों के संगम,  भीम ,मुला और मुथा पर स्थित है । यह पांचवा अष्टविनायक मंदिर है । अगर आप खुशिओं की तलाश में हैं और आपका मन विचलित रहता हो और चिंताएं आपको घेरे रहती हों तो आप थेयूर आएं और श्री चिंतामणि गणपति की पूजा करें सभी चिंताओं से मुक्ति मिल जाएगी । भगवान ब्रहमा ने अपने विचलित मन को वश में करने के लिए यहां पर तपस्या की थी ।


कथा - राजा अभिजीत और रानी गुनावती ने पुत्र प्राप्ति के लिए ऋषि वैशम्पायन की सलाह पर कई वर्षो तक तप किया उन्हें एक बेटा जिसका नाम गणराजा रखा गया, जो बहुत बहादुर पर गुस्सेवाला था एक शिकार अभियान में उसे ऋषि कपिला के आश्रम में रूकना पड़ा । बाबा कपिला ने गणराजा का स्वागत किया साथ ही पूरी सेना को दोपहर के भोजन के लिए आमंत्रित किया । भगवान इंद्र ने ऋषि कपिला को चिंतामणि दी थी जिससे जो मांगों वह बात पूरी होती थी । चिंतामणि की शक्ति को देख लालची गणराजा ने ऋषि कपिला से उसे देने को कहा पर उन्होंने मना कर दिया तब गणराजा ने बलपूर्वक उनसे चिंतामणि छीन ली । बाबा कपिला निराश होकर देवी दुर्गा की सलाह से भगवान गणेश की पूजा करने लगे तब गणेश ने प्रसन्न होकर गणराजा से युद्ध कर चिंतामणि वापस ले ली और राजा अभिजीत को दी, पर जब उन्होंने चिंतामणि बाबा कपिला को लौटाना चाही तो उन्होंने उसे लेने से इंकार कर दिया । भगवान गणेश और गणराजा के बीच युद्ध एक कंदब के पेड़ के पास हुई तभी से इस गावं का नाम कदंब तीर्थ पड़ गया । मंदिर - मंदिर का मुख्य द्वार उत्तर दिशा की ओर है । मंदिर का हाॅल लकड़ी से बना है और हाॅल में काले पत्थर से बना एक छोटा सा फुब्बारा है । मंदिर की एक बड़ी घंटी मुख्य मंदिर के बाहर से देखी जा सकती है ।









6. श्री गिरजात्मज गणपति मंदिर - गिरितात्म अष्ट विनायक मंदिर तीर्थ यात्रा पर दौरा किया छठे भगवान गणेश मंदिर है । यह एक पहाड़ पर है और बौद्ध गुफाओं के स्थान पर बनाया गया है । एक मात्र मंदिर है इधर भगवान गणेश गिरिजात्माजा के रूप में पूजा जाता है । लेनयादरी पहाड़ पर 18 बौद्ध गुफाओं में से 8वीं गुफा में गिरजात्मज विनायक मंदिर है । इन गुफाओं को गणेश गुफा कहा जाता है । मंदिर तक पहुंचने के लिए 307 सिढ़ियों चढ़नी पड़ती हैं । पूरा मंदिर ही एक बड़े पत्थर को काट कर बनाया गया है । 






मंदिर का मुख्य द्वार दक्षिण की ओर है । मुख्य मंदिर के सामने एक विशाल सभामंडप जो 53 फीट और 51 फीट का है जिसमें कोई भी स्तंभ नहीं है । इस हाॅल में 18 छोटे छोटे अपार्टमंेट हैं और श्री गिरिजात्मक विनायक की मूर्ति मध्य के अपार्टमेंट में स्थापित  किया गया है । भगवान गणेश की छवि उसके सिर बाईं और कर दिया साथ, एक चट्टान में नक्काशीदार बाहर एक फ्रेस्को है ।  मुख्य मंदिर की ऊंचाई केवल 7 फीट है जिसमें 6 स्तंभ है जिनमें गाय, हाथी आदि की आकृति उकेरी गई है । 










मुख्य मंदिर से एक नदी बहती है जिसके किनारे पर जूनार शहर बसा है । मंदिर में कोई बिजली का कनेक्शन नहीं है । मंदिर का निर्माण इस तरह किया गया है कि मंदिर में दिन भर सूर्य की किरणों से प्रकाश रहता है । यह जगह गणेश पुराण में  जिरनापुर या लेखन पर्वत गणेश पुराण के रूप में जाना जाता है । गिरिजात्मज विनायक मंदिर सहित सभी 30 लेनयादरी गुफाएं भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के नियंत्रण में हैं । गिरिजात्मज विनायक पार्वती के पुत्र के रूप में गणेश को दर्शाता है । यह मंदिर पुणे नासिक राजमार्ग पर पुणे से करीब 90 किलोमीटर दूर है जो नारायणगांव से 12 किलोमीटर की दूरी पर है । यहां मूर्ति एक अलग मूर्ति नहीं है । लेकिन मूर्ति का केवल एक ही आंख से देखा जा सकता है जिसमें से गुफा का एक पत्थर की दीवार पर उकेरी गई है । गिरजात्मज सचमुच गणेश गिरिजा (देवी पार्वती) के बेटे का मतलब है ।













7.विघनेश्वर गणपति मंदिर (ओजर) - ज्ञान का हाथी , जिसे 1785 में बनाया गया था और 1967 में श्री आपाशास्त्री जोशी द्वारा फिर बनाया गया ।  ओजर पुणे जिले में जूनर तालुका में है यह पुणे नासिक रोड पर नारायणगावं से जूनर या ओजर होकर 85 किलोमीटर की दूरी पर है । ओजर अष्टविनायक सातवें मंदिर के लिए निर्धारित है । मंदिर विघनेश्वर कुकदेश्वर नदी के तट पर ओजर में है । कथा के अनुसार हेमावती के राजा अभिनन्दना ने एक महान बलिदान प्रदर्शन इंद्र की गददी पाने के लिए किया तो इंद्र ने विघनसुर को बाधा डालने के लिए बुलाया जिसने संतों और दूसरो लोगों को भी परेशान करने लगा तब लोगों के गणपति से अनुरोध किया गणपति ने विघनासुर को परासत किया और विघनासुर गणपति के चरणों में गिर कर आग्रह करने लगा कि उनके साथ उसका नाम लोगों ने लेना चाहिए । विनायक ने उसके अनुरोध को स्वीकार कर उस स्थान को विधनेश्वर या विघनराज के रूप में कहा जाने लगा ।















पौराणिक कथा के अनुसार विघनासुर नामक दानव संतों को बहुत परेशान कर रहा था गणपति से अनुरोध करने पर उन्होंने उसे रोका तो दानव ने अपने नाम के साथ गणपति को स्वीकार करने का आग्रह किया इसलिए यह मंदिर विघनेश्वर, विघनहर्ता, और विधनहार के रूप में जाना जाता है । यह मंदिर सबसे खूबसूरत मंदिरों में से एक है । मुख्य द्वार के दोनों तरफ दो गार्ड दिखते हैं, एक भव्य प्रवेश द्वार के बाहर एक विशाल आंगन निहित है । मंदिर नाजुक चित्रों ओर नक्काशिंयों से सजा है । भगवान की मूर्ति के बाईं ओर टंªक जबकि चेहरा पूर्व की ओर है, मूर्ति की आंखें कीमती रत्नों से बनी हैं उनके माथे और नाभि को हीरे और अन्य रत्नों से सजाया गया है । मूर्ति के दोनों तरफ रिद्धी और सिद्धी की पीतल की मूर्तियां हैं । मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा को तथा सुरक्षात्मक दृष्टि से सभी चारों पक्षों पर मजबूत किलेबंदी की है मंदिर को बड़े बड़े पत्थरों की दीवार से चारों ओर से घिरा है तथा प्रवेश द्वार पर दो दीप मालाएं (तेल के लैंप के लिए पत्थरों के खम्भों पर) और दो विशाल द्वार पलकस यानि गार्ड दिखते हैं । मुख्य मंदिर दो हाॅल दुंदीराज की मूर्ति के साथ और अन्य सफेद संगमरमर से बना जिसमें पंचयातन यानि सूर्य, शिव, विष्णु, देवी, और गणपति) की मूतियों एवं मंदिर के स्वर्ण गुंबद और शिखर हैं । 












विघनेश्वर मंदिर 1833 में बनाया गया था और अपनी अनूठी विशेषता चिमाजी अप्पा, बाजीराव पेशवा के छोटे भाई द्वारा दान धन के साथ बनाया गया जिसमें कहा जाता है कि एक शानदार सुनहरा स्र्वण गुंबद है । मुख्य द्वार सभामण्डप के प्रवेश द्वार पर  मूसे की एक मूर्ति है । इस मंदिर में गणपति मूर्ति विघनेश्वरा सभी बाधाओं को दूर करने के लिए अवतार लिया है । इस मंदिर के देवता की पूजा से लोगों की सभी समस्याओं का हल उन्हें मिल जाता है । मंदिर विघनेश्वर अपनी शानदार भिति और मूर्तिकला काम के लिए जाना जाता है । भव्य प्रवेश द्वार, एक बड़ा आगन और ध्यान के डिजाइन किए हुए छोटे कमरे हैं । ओजर कुकादी नदी के तट पर है और नदी पर बना येदागांव बांध के पास है ।

8. महागणपति (रांजणगाँव) - मंदिर इतिहास के अनुसार 9वीं और 10वीं सदी के बीच बना था । माधवराव पेशवा भगवान गणेश की मूर्ति रखने के लिए मंदिर के तहखाने में एक कमरा बनाया है बाद में इंन्दौर के सरदार किबे पर यह पुर्निर्मित नगरखाना प्रवेश द्वार के ऊपर स्थित है , मुख्य मंदिर पेशवा की अवधि से मंदिर की तरफ दिखता है । मंदिर का प्रवेश द्वार पूर्व दिशा की ओर है और एक विशाल सुन्दर प्रवेश द्वार बना है । भगवान गणपति की मूर्ति को  ‘‘ माहोतक’’ नाम से भी जाना जाता है क्योंकि इसके 10 टंªक (सूंड़) और 20 हाथ हैं । 




यह मूल मूर्ति को मंदिर के एक तहखाने में छिपाया हुआ है क्योंकि मुस्लिम आक्रमण के भय से । यह मंदिर पुणे से रंजनगाँव में पुणे अहमदनगर राजमार्ग पर 50 किलोमीटर की दूरी पर है । यह स्थान दानव त्रिपुरासुर के किलों को नष्ट करने में शिव की मदद के लिए आए थे । सूर्य की किरणें सूर्य उगते ही सीधी मूर्ति पर आती हैं । श्री अष्टविनायक गणपतियों में महा गणपति भगवान गणेश का सबसे शक्तिशाली प्रतिनिधित्व है । शिव दानव त्रिपुरासुर को परास्त किया था इसलिए इन्हें त्रिपुरारी  महा गणपति के रूप में भी  जाना जाता है । यहां इन्हें आठ, दस या बारह हथियारों के साथ होने वाले रूप में दिखाया गया है ।
























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