बेर - सस्ता लोकप्रिय फल
बेर भारत का बहुत ही प्राचीन एवं
लोकप्रिय फल है । सस्ता एवं लोकप्रिय फल होने के कारण इसे गरीबों का मेवा भी कहा
जाता है । बेर कई रंगों पीले, हरे, लाल, बैंगनी, और गहरे कथई के होते हैं । बेर की
विशेषताएं- पका बेर बहुत मीठा, ज्यूसी व नरम होता है । बेर में छिपा है सेहत का
खजाना । बेर कई रंगों में जैसे पीला, हरा, लाल, बैंगनी, गहरा कथई में पाए जाते हैं
। गोल और अंडाकार आकार वाले बेर होते हैं । बेर का पेड़ एक साल में 50 से 250 किलो बेर दे सकता है । बेर का पेड़ 7-12 मीटर
लम्बा हो सकता है जिसकी आयू 25 साल तक होती है । बेर के फल, पत्तियों, वृक्ष की
छाल, गौंद में औषधीय गुण पाये जाते हैं जिनका पारंपरिक भारतीय चिकित्सा और
आर्युवेद में उपचरात्मक खाद्य पदार्थ के रूप में उपयोग किया जाता है । बेर का लेटिन नाम जिजिफस मौरीशियाना है ।
बेर के औषधीय गुण: बेर हमारे लिए एक बहुउपयोगी और पोषक फल है इसमें विटामिन ए और विटामिन सी की प्रचुर मात्रा होती है । बेर ठंडा, रक्त रोधक, नेत्र ज्योति बढ़ाता है । रक्तातिसार और आंतों के घाव ठीक करता है । भूख और वीर्य बढ़ाता है । त्वचा में कट या घाव होने पर फल का गूदा घिसकर लगाने से कटा हुआ स्थान जल्दी ठीक हो जाता है । फेफड़े संबधी बीमारियों व बुखार ठीक करने के लिए इसका ज्यूस अत्यन्त गुणकारी है । बेर को नमक और काली मिर्च के साथ खाने से अपच की समस्या दूर होती है । सूखे बेर खाने से कब्जियत दूर होती है । बेर को छाछ के साथ लेने से भी घबराना, उल्टी होना व पेट में दर्द की समस्या खत्म हो जाती है । बेर की जड़ों का ज्यूस की थोड़ी मात्रा में पीने से गठिया एवं वात जैसेी बीमारियों को कम किया जा सकता है । बेर के शरीर के लिए अत्यंत लाभदायक व स्वास्थ्यवर्धक होने के साथ आम आदमी की पहंुच में है । हर वर्ग का व्यक्ति इसे आसानी से उपयोग में ले सकता है । बेर में शर्करा, विटामिन सी, विटामिन ए , फाॅस्फोरस व कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता हे । बेर को पकाकर, बैक कर व उबालकर चावल या अन्य अनाज के साथ चटनी बनाकर खाया जाता है । बेर के पेड़ का तना मजबूत होने के कारण इसकी लकड़ी नाव, औजार, घर के खंबे, खिलौने आदि बनाने के काम आते हैं ।
बेर के औषधीय गुण: बेर हमारे लिए एक बहुउपयोगी और पोषक फल है इसमें विटामिन ए और विटामिन सी की प्रचुर मात्रा होती है । बेर ठंडा, रक्त रोधक, नेत्र ज्योति बढ़ाता है । रक्तातिसार और आंतों के घाव ठीक करता है । भूख और वीर्य बढ़ाता है । त्वचा में कट या घाव होने पर फल का गूदा घिसकर लगाने से कटा हुआ स्थान जल्दी ठीक हो जाता है । फेफड़े संबधी बीमारियों व बुखार ठीक करने के लिए इसका ज्यूस अत्यन्त गुणकारी है । बेर को नमक और काली मिर्च के साथ खाने से अपच की समस्या दूर होती है । सूखे बेर खाने से कब्जियत दूर होती है । बेर को छाछ के साथ लेने से भी घबराना, उल्टी होना व पेट में दर्द की समस्या खत्म हो जाती है । बेर की जड़ों का ज्यूस की थोड़ी मात्रा में पीने से गठिया एवं वात जैसेी बीमारियों को कम किया जा सकता है । बेर के शरीर के लिए अत्यंत लाभदायक व स्वास्थ्यवर्धक होने के साथ आम आदमी की पहंुच में है । हर वर्ग का व्यक्ति इसे आसानी से उपयोग में ले सकता है । बेर में शर्करा, विटामिन सी, विटामिन ए , फाॅस्फोरस व कैल्शियम प्रचुर मात्रा में पाया जाता हे । बेर को पकाकर, बैक कर व उबालकर चावल या अन्य अनाज के साथ चटनी बनाकर खाया जाता है । बेर के पेड़ का तना मजबूत होने के कारण इसकी लकड़ी नाव, औजार, घर के खंबे, खिलौने आदि बनाने के काम आते हैं ।
बेर की किस्मे - गोला,
इलायची, नाजुक, फल मक्खी, बनारसी, नरमा, नागपुरी, पैबन्दी, महरूम, सफेदा, सौनार,
मुड़या, उमरान, पोंडा, अजूबा, फेसलाबाद, महमूदबली, अनोखी, आल्ूाबुखारा, पाक व्हाइट
इत्यादि । पौराणिक एवं धार्मिक महत्व: 1. गुरूद्वारा श्री बेर साहिब -गुरूनानक देव
ने सुल्तानपुर लोधी टाउन जिला (पंजाब)
में काली बेन नदी के किनारे बैठ कर 14 साल 9 महीने 13 दिन तपस्या की और पवित्र
गं्रथ सुखमनी साहब का सृजन किया तथा बेर का झाड़ लगाया जिसे बदरी कोल कहते हैं आज
भी गुरूद्वारा बेर साहिब के नाम से प्रसिद्ध है । स्वर्ण मंदिर परिसर में तीन
पवित्र वृक्ष हैं । बेर बाबा बुडढ़ा इन्हीं में से एक है । वहीं लाची बेर और दुख
भंजनी दो अन्य वृक्ष है । अमृत सरोवर के उत्तरी किनारे पर स्थित इस जुजुबे वृक्ष
का नाम एक सिक्ख संत बाबा बुडढा के नाम पर पड़ा है । बाबा बुडढा इसे पेड़ की छाया
में बैठ कर तालाब की खुदाई पर नजर रखते थे । स्र्वण मंदिर के ठीक सामने स्थित बेर
बाबा बुडढ़ा घूमे बिना इस तीर्थस्थल की यात्रा अधूरी मानी जाती है । 2. शबरी के बेर - शबरी जाति की भीलनी का
नाम था श्रमणा, बाल्याकाल से ही वह भगवान श्री राम की अन्नय भक्त थी मतंग ऋषि के
आश्रम के बाहर बैठ राम का इंतजार करने लगी जब भगवान राम सीता की खोज में मंतग ऋषि
के आश्रम पहुंचे तब शबरी के कंद मूलों को
भगवान को अर्पण किया पर बेर खराब और खटटे न निकलें इसलिए उसने बेरों को चखना आंरभ
किया तथा मीठे बेर राम को दिये राम ने निसंकोच बड़े प्रेम से शबरी के जूठे बेर खाएं
श्रमणा स्वर्ग गई । श्री श्रमणा रामायण में शबरी के नाम से प्रसिद्ध है ।
बेर हमारे लिए एक बहुपयोगी एवं
पोषक फल है । मौसमी फलों में सभी वर्गों में यह बहुत लोकप्रिय है । पोषकता के आधार
पर इसे सेव फल के अनुरूप ही पाया जाता है । बेर का वृक्ष उन खराब तथा कम उपजाऊ
भूमि में भी पैदा हो जाता है जहां पर अन्य फल वृक्ष नहीं उग पाते हैं । बेर को
शुष्क और अर्धशुष्क जलवायु वाले भागों में सफलतापूर्वक उगाया जा सकता है । बेर का
वृक्ष 2-3 वर्ष का होेने पर फल देना शुरू कर देता है , 9 से 10 वर्ष आयु वाले बेर
की कलमी पौधे 15-25 किलोग्राम प्रति पौधा फल दे देते हैं । बेर (जिजिफस मौरिटिआना
एल) देश कके अर्द्ध शुष्क और शुष्क क्षेत्रों में लगाया जाने वाला महत्वपूर्ण फल
है । बैर एक पौष्टिक फल है, जिसमें विटामिन बी समूह की मात्रा (थायमीन, राबोलेविन
और नियासिन) , विटामिन सी औ बीटा कैरोटीन की मात्रा भरपूर है, जो विटामिन ए के लिए
अग्रदूत है । यह फास्फोरस, कैल्शियम और लोहे जैसे खनिज से भी समृद्ध है ।
.रेगिस्तानी इलाके में पथरीले इलाके में बिना पानी के इलाके में बीहड़ बंजर स्थानों
पर बेर की उत्पत्ति होती है ।
देश के विभिन्न प्रदेशा में उगाई जाने वाली बेर की किस्में ।
देश के विभिन्न प्रदेशा में उगाई जाने वाली बेर की किस्में ।
उत्तर -प्रदेश - बनारसी कडाका, बनारसी, पैवन्दी, नरमा,
अलीगंज
बिहार - बनारसी, नागपुरी, पैवन्दी, थोर्नलैस
महाराष्ट्र - कोथो, महरूम, उमरान
आन्ध्रप्रदेश - बनारसी, दोढया, उमरान
पंजाब , हरियाणा - उमरान, कैथली, गोला, सफेदा, सौनोर-2, पौंडा
राजस्थान - सौनोर, थौर्नलैस
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