जल संकट और बावडियों का महत्व
बावड़ी या बावली सीढ़ीदार कुँए या
तालाबों के कहते हैं । इनके जल तक सीढ़ियों के सहारे आसानी से पहुंचा जा सकता है ।
भारत में बावड़ियों के निर्माण और उपयोग का लम्बा इतिहास है । दूर से देखने पर ये
तलघर के रूप में बनी हवेली जैसी दृष्टिगत होती हैं । बावड़ियों को सर्वप्रथम
हिन्दुओं द्वारा कला के रूप में काम में लिया गया और उसे बाद मुस्लिम शासको ने भी
इसे अपनाया । बावड़ियाँ सुरक्षा के लिए ढकी भी हो सकती हैं और स्थापित्य की दृष्टि
से भी बावडियाँ महत्वपूर्ण हैं । आभानेरी नामक नामक ग्राम में स्थित बावड़ी 100 फीट
गहरी है । इस बावड़ी के तीन तरफ सोपान और विश्राम घाट बने हुए हैं । इस बावड़ी की स्थापित्य कला अदभुत है । यह भारत की सबसे बड़ी और गहरी बावड़ियों में से एक है
इसमें 3500 सिढ़ियाँ हैं । हमें पुरानी जल संरचनाओं को बचाने के साथ ही नई सरंचनाओं
का सृजन करना चाहिए । जनसंख्या में वृद्धि और
शहरीकरण से हमारी जल संरचनाएं प्रभावित हुई हैं । जल संरचनाओं के महत्व के
प्रति समाज और आम जनों को जागरूक होना होगा । जल स्तर का नीचे जाना, पानी की कमी
आसन्न संकट की तरह है इसे पहचानने की जरूरत है । जैसा की हम जानते ही हैं कि जल,
जंगल और जमीन जीवन के आधार हैं । तालाबों और झीलों से पर्यावरण संतुलित रहता है ये
जैव विविधता और जीव जगत के केन्द्र है। जल संरचनाएं अपनी पहचान खो रही है । यह
समाज के लिए एक चुनौती है । इनके संरक्षण का दायित्व हम सबका है ।
बुरहानपुर की मुगलकालीन जलप्रदाय
व्यवस्था:- जलप्रदाय की जल व्यवस्था बुरहानपुर के गौरवपूर्ण अतीत का सर्वाधिक
महत्वपूर्ण समारक है । जहाँगीर के समय बुरहानपुर में एक कुशल जलप्रदाय प्रणाली के
निर्माण की शुरूआत हुई और आज भी शहर के पेयजल की जरूरत का करीब चैथाई हिस्सा इस
व्यवस्था से पूरा हो रहा है । जलप्रदाय की इस अदभुत प्रणाली के जो अवशेष आज
बुरहानपुर में मिलते हैं । इस प्रणाली में कुछ किलोमीटर दूर फेली सतपुड़ा पर्वत
श्रेणियों से ताप्ती नदी की ओर बहने वाले भूमिगत जल स्त्रोतो को जमीन के भीतर तीन
स्थानों पर रोककर पानी एकत्र किया गया । पानी की इन बावड़ियों को भंडारा कहा गया है
। बुरहानपुर के धरातल की तुलना में से तीनों भंडारे या बावड़ियाँ पर्याप्त उँचाई पर
थे । इन भंडारों के नाम हैं - सूखा भण्डारा, मूल भण्डारा और चिंताहरण । ये सभी
भंडारे बुरहानपुर शहर के उत्तर-पश्चिम में है । इन भण्डारों में भूमिगत पानी एकत्र
कया जाता है और भूमिगत सुरंगों से इन्हें जाली कारंज तक पहुंचाया जाता है, जहाँ से
पानी मिटटी तथा तराशे हुए पत्थरों के पाइपों द्वारा शहर को पानी पहुंचाया जाता है
। इन तीन जलाशयों से बुरहानपुर और बहादुरपुर तक पानी पहुंचाने के लिए जो 8 चैनलों के
अवशेष मिलते हैं । आज 6 चैनल बचे हैं ये ऐसे बने हैं कि पास की पहाड़ियों से भूमिगत
जल रिसकर इन तक आ सके । इनमें से 3 चैनल बुरहानपुर शहर को, दो बहादुरपुर कस्बे को
और 1 रावरतन हाड़ा के महल को पानी पहुंचाते हैं ।
भादवा माता मंदिर और प्राचीन बावड़ी
- इस मंदिर की प्राचीन बावड़ी के बारे में कहा जाता है कि माता ने अपने भक्तों को
निरोगी बनाने के लिए जमीन से यह जल निकाला था और कहा था कि मेरी इस बावड़ी के जल से
जो भी स्नान करेगा, वह व्यक्ति रोगमुक्त हो जाएगा । मंदिर परिसर में स्थित बावड़ी
का जल अमृत तुल्य है । माती की इस बावड़ी के चमत्कारी जल से स्नान करने पर समस्त
शरीरिक व्याधियाँ दूर होती है । यह मंदिर मध्यप्रदेश के नीमच शहर से 18 किलोमीटर
की दूरी पर स्थित है । पन बाग बावड़ी विदिशा - इस बावड़ी से
पूरे क्षेत्र की प्यास बुझ जाती थी लेकिन आज की स्थिति में खुद बावड़ी ही प्यासी है
। पान बाग स्थित प्राचीन बावड़ी घनी आबादी के बीच में आ गई है । तब से उसमें कचना डालने वालों की संख्या भी बढ़
गई है । आज बावड़ी में पानी की जगह कचरा की कचरा दिख रहा है । बड़ी मात्रा में पूजन
सामग्री जाम हो जाने के बाद स्थिति यहां तक आ गई कि बावड़ी पानी की जगह कचरा नजर
आता है । छह दशक पहले पान बाग की बावड़ी से आस-पास के बगीचों में सिंचाई होती थी और
नागरिकों की प्यास भी बुझाती थी । सालों तक इस बावड़ी का उपयोग लोगों ने किया,
लेकिन इसके रखरखाव के लिए कोई भी ठोस कदम नहीं उठाए गए हैं । लोग मंदिर और घरों से
निकलने वाली पूजन सामग्री भी बावड़ी में डालते हैं ।
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