सायटिका - असहनीय दर्द का रोग
सायटिका में हमारे शरीर में जब
कूल्हे से लगाकर एड़ी तक दर्द की इतनी तेज लहर उठती है जिस व्यक्ति सहन नहीं कर
पाता है । जांघ और पिंडली के पिछले हिस्से में कूल्हे से नीचे तक एक नस होती है
इसमें दर्द होने की स्थिति ही सायटिका कहलाती है । .अधिकाशतः अनियमित जीवनशैली तथा
उठने बैठने के गलत तरीकों के कारण नसों में ज्यादा दर्द होता है विशेषकर कमर से
लेकर पैर की नसों तक । वैसे कहा जाय तो सायटिका खुद में बीमारी नहीं बल्कि
बीमारियों के लक्षण हैं । सायटिका - जब
सायटिक नर्व में सर्दी लगने, अधिक चलने, ट्यूमर, या स्पाइन मंे विकृतियां होने
लगे, इन में से किसी का दबाव नर्व या नर्व एंंिडंगस पर पड़ने से उत्पन्न होता है ।
सायटिका में दर्द हिप ज्वांइट के पीछे से शुरू होकर धीरे धीरे तीव्र होता है और
नर्व मार्ग से अंगूठे तक चला जाता है । घुटने और टखने के पीछे दर्द बहुत अधिक रहता
है । एक और लक्षण दर्द के साथ ही पैर में शून्यता हो जाती है । तीव्र रोग में दर्द
असहनीय होता है और मरीज को बिस्तर पर ही पड़े रहना पड़ता है । अगर रोग पुराना हो
जाता है तब पैर में क्षीणता और सिकुड़न पैदा हो जाती है । सबसे पहले को रोग का असली
कारण जानना जरूरी हो जाता है । उम्र के बढ़ने के साथ ही हडिडयों तथा हडिडयों को
जोड़ने वाली चिकनी सतह के घिस जाने के कारण सायटिका हो जाती है । वैसे तो रोग कभी
भी किसी भी उम्र में हो सकता है पर 50 साल की उम्र के बाद यह अधिक देखा गया है ।
जैसा कि हम जानते हैं कि सायटिका की समस्या रीढ़ की हडडी व कमर की नसों से सम्बंधित
है जिसका सीधी संबंध पैर से होता है और सायटिका में पैरों मंे तेज दर्द के कारण
चलना मुश्किल हो जाता है । सायटिका के कुछ कारणों में अधिक चलना, अत्यधिक साइकिल ,
मोटर साइकिल अथवा स्कूटर चलाने से सायटिका नर्व पर दबाव पड़ता है । सायटिका बरसात
और ठंड के मौसम में काफी परेशान करती है । सायटिका में एमआरआई से स्थिति
स्पष्ट हो जाती है उसी के हिसाब से इलाज
करवाना चाहिए । कसरत और फिजियोथैरेपी से बहुत आराम मिलता है ।
सायटिका से बचाव के उपाय: 1.एक ही स्थान पर लंबे समय तक न
बैठें । हर आधे घंटे में कुछ देर के लिए खड़े रहने का प्रयास करे तथा चलने से भी
कमर की हडडियों को आराम मिलेगा । 2. झुककर व.जनदार चीजों को उठाने
से बचें क्योंकि इससे रीढ़ की हडडियों के जोड़ों पर अधिक दबाव पड़ता है 3. कुर्सी पर सीधा बैठे तथा कमर के
हिस्से पर एक छोटा सा तकिया भी लगा सकते हैं । 4. कमर और रीढ़ की हडडी की कसरत
नियमित करें पर अपने चिकित्सक की सलाह जरूर
ले लें । कुछ कसरत जैसे क्वाड्रिसेप स्ट्रेच, कैट एवं कैमल एकसरसाइज,
ऐबडाॅमिनल क्रंचेज आईसोमेंट्रिक्स, हैमस्टिंªग स्टेªच, पीरीफाॅर्मिस स्ट्रेच आदि
आप कर सकते हैं । 5. आप हल्का भोजन ले ताकि व.जन न
बढ़े । शरीर को गर्म रखें, गर्म पानी से स्नान करें । सन बाथ भी अच्छा रहता है । 6.
ज्यादा मुलायम गद्दों पर न सोएं, गर्म पानी की थैली से सिकाई करें । आगे झुकने से
बचंे । वेस्टर्न टाॅयलेट का इस्तेमाल करें ।
सायटिका का उपचार: सायटिका में दर्द के उपचार का सबसे
उपयुक्त तरीका है व्यायाम विशेषकर ऐसे व्यायाम जिसमें शरीर को आगे की ओर खींचना
होता है और साथ ही पीठ के ऐसे व्यायाम भी हैं जिनसे सायटिका के दर्द में आराम मिल
सकता है । योग और व्यायाम का नियमित अभ्यास बहुत फायदेमंद हो सकता है । सायटिका
दर्द से मुक्ति के प्रमुख योगासन जैसे भुजंगासन, मकरासन, मत्स्यासन, क्रीड़ासन,
वायुमुद्रा और वज्रासन हैं । अपने आहार में उन पदार्थों का
समावेश करें जिसमें पोटेशियम की मात्रा अधिक हो जैसे केला, आलू और संतरा । सायटिका
के रोगियों को भोजन में ठंडी तासीर वाले पदार्थ जैसे दही, केला, मूली, अरबी,
टमाटर, नींबू, संतरा आदि का सेवन नहीं करना चाहिए साथ ही चने और उड़द की दाल भी
हानिकारक हो सकती है । एक पाद उत्तानासन सायटिका दर्द दूर
करने को सबसे अच्छा इलाज है । तन को स्वस्थ्य रखने के साथ मन को
शान्त रखने के लिए योग के 8 अंग - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याचार, धारणा,
ध्यान और समाधि को अपनाकर आप अपने आपको स्वस्थ्य रख सकते हैं । हरसिंगार (पारिजात) एक सुन्दर वृक्ष जिसमें सुन्दर व
सुगन्धित फूल लगते हैं इसके फूल, पत्ते और छाल का उपयोग औषधि बनाने के लिए किया
जाता है । पारिजात के गुणों में यह
हल्का, रूखा, तिक्त, कटु, गर्म, बात-कफनाशक, ज्वर नाशक, मृदु विरेचक, शामक, उष्णीय
और रक्तशोधक होता । पारिजात में सायटिका रोग को दूर करने का इसमें विशेष गुण होते
हैं । पारिजात के फूलों में सुगंधित तेल होता है । रंगीन पुष्प् नलिका में
निक्टैन्थीन नामक रंग द्रव्य ग्लूकोसाइड 0.1 प्रतिशत होता है । बीज मज्जा से 12-16
प्रतिशत पीले भूरे रंग का स्थिर तेल निकलता है । पत्तों में टेनिक एसिड,
मेथिलसेलिसिलेट, एक ग्लाइकोसाइड (1 प्रतिशत), मैनिटाल (1.3 प्रतिशत),एक राल (1.2
प्रतिशत), कुछ उड़नशील तेल, विटामिन सी और ए होते हैं । छाल में एक ग्लाइकोसाइड और
दो क्षाराभ होते हैं । इस वृ़क्ष के पत्ते और छाल विशेष रूप् से उपयोगी होते हैं ।
इसके पत्तों का सबसे अच्छा उपयोग सायटिका रोग को दूर करने में किया जाता है ।
पारिजात के 250 पत्ते साफ करके एक लीटर पानी में उबालें । जब पानी लगभग 700 मिली
बचे तब उतारका ठण्डा करके छान लें, पत्ते फेंक दें और 1-2 रत्ती केसर घोंटकर इस
पानी में घोल दें । इस पानी को दो बड़ी बोतलों में भरकर रोज सुबह-शाम एक कप मात्रा
में इसे पिएँ । ऐसी चार बोतलें पीने तक सायटिका रोग जड़ से चला जाता है । किसी-किसी
को जल्दी फायदा होता है फिर भी पूरी तरह चार बोतल पी लेना अच्छा होता है । पारिजात
के पत्ते वसन्त ऋतु में गुणहीन रहते है। अतः यह प्रयोग वसंत ऋतु में लाभ नहीं करता
। सायटिका रोग में मेथी एक चमत्कारिक
औषधि जिसमें पत्तियां गुणकारी और दाने फायदेमंद साबित होते है । मेथी के 20-30
दाने ताजे पानी के साथ सेवन करने से जोड़ों के दर्द, गठिया और सायटिका आदि वात
रोगों में लाभ मिलता है । शिमला मिर्च में रसायन केप्सायसिन दर्द निवारक कमर दर्द,
सायटिका और जोड़ों के दर्द जैसी समस्याएं कम होती हैं । लहसुन पीसकर पुल्टिस बांधने
से दमा, गठिया, सायटिका को दूर करता है ।
पुल्टिस को सूजे भाग की सृजन व दर्द भगाती है । लहसुन की 10 कलियों को 100 ग्राम
पानी एवं 100 ग्राम दूध में मिलाकर पकायें । पानी जल जाने पर लहसुन खाकर दूध पीने
से सायटिका का दर्द दूर होता है । करें भुजांगासन, दूर करेगी सायटिका
। आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से सायटिका रोग एक वायुविकार है । वायु को बढ़ाने वाले सभी
पदार्थ सायटिका रोग बढ़ाते हैं । अतः आपको वायुवर्धक आहार-विहार नहीं करना चाहिए ।
गठिया रोग, सायटिका दोनों अलग अलग जरूर हैं परन्तु दोनों में वायु प्रकोप प्रमुख
हैं । एक्यूपंक्चर, एक्यूप्रेशर और योगासान ही इसका इलाज है । सायटिका कारपोरेट
कल्चर की आधुनिक बीमारी है तो सलाह है कि प्रकृति के साथ रहें और कई बीमारियों से
बचें ।
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