सदाबहार - फूलों वाला लोकप्रिय
पौधा
सदाबहार या सदाफूली फूल बारहों
महीने खिलने वाला पौधा है जिसे केथारेनथस कहते हैं । सदाबहार की आठ प्रजातियां
प्रसिद्ध हैं यह फूल मेडागास्कर एवं भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है । फूल
तोड़कर रख देने पर भी पूरा दिन ताजा रहते हैं । मंदिरों में पूजा पर चढ़ाए जाने में
इसका उपयोग खूब होता है । सदाबहार छोटा झाड़ीनुमा पौधा है इसके गोल पत्ते थोड़ी
लम्बाई लिए अंडाकार व अत्यन्त चमकदार व चिकने होते हैं । एक बार पौधा उगने के बाद
आसपास अन्य पौधे अपने आप उगने लगते है। पांच पंखुड़ियों वाला यह फूल सफूद, गुलाबी,
फालसाई, जामुनी आदि रंगों में खिलता है । पतो व फल की सतह थोड़ी मोटी होती है ।
इसके चिकने मोटे पत्तों के कारण ही पानी का पाष्पीकरण कम होता है और पानी की
आवश्यकता बहुत कम होती है । सदाबहार का
फूल सुन्दर होने के साथ ही आसानी
से हर मौसम में खिलता है , कई रंगों मंे खिलता है । यह फूल यूरोप, भारत,
चीन और अमेरिका में पाया जाता है तथा इसके औषधीय गुणों के कारण इसकी व्यवसायिक
खेती की जाती है ।
औषधीय गुण - सदाबहार का उपयोग
खाँसी, गले की खराश और फेफड़ों के संक्रमण में उपयोग किया जाता है । इसे मधुमेह के
उपचार में उपयोगी पाया गया है क्योंकि इसमें दर्जनों क्षार ऐसे पाये गये हैं कि
उनसे रक्त शकरा की मात्रा को नियत्रिंत किया जा सकता है । सदाबहार की पत्तियों में
‘‘विनिकरस्टीन’’ नामक क्षारीय पदार्थ होता है जो कैंसर, विशेषकर रक्त कैंसर
(ल्यूकीमिया) में बहुत उपयोगी होता है । आज यह विषाक्त पौधा संजीवनी बूटी का काम
कर रहा है तथा फूलों वाली क्यारियों के लिए सबसे लोकप्रिय पौधा बन चुका है । यह
फूल सुन्दर तो है ही आसानी से हर मौसम में उगता है । भारत में प्राकृतिक चिकित्सक
मधुमेह रोगियों को श्वेत सदाबहार के फूलों का प्रयोग सुबह खाली पेट करने की सलाह
देते हैं । फ्रांस में इसे वर्जिन लावर व इटली में लावर आॅफ डेथ कहा जाता है ।
इटली में मृत बच्चों के कफन पर इसकी मालाएं रखी जाती हैं । इसका नाम सार्कर्स
वायलेट भी कहा गया है क्योंकि जादू टोने में विश्वास करने वाले इससे तरह तरह के
विष व रसायन बनाते हैं । कम होने से यह बड़े मजे में कहीं पर भी चलता खिलता व फेलता
है ।
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