अंगूर - बलवर्धक एवं सौन्दर्यवर्धक फल
अंगूर एक सुगंधित लता वाला बलवर्धक
एवं सौन्दर्यवर्धक फल है । फलों में अंगूर को सर्वोत्तम माना जाता है । अंगूर फल
मां के दूध के समान पोषक है यह निर्बल-सबल, स्वस्थ्य-अस्वस्थ्य आदि सभी के लिए
समान उपयोगी होता है । अंगूर में ग्लूकोस और डेक्ट्रोस पाए जाते हैं, जो शरीर के
अंदर ऊर्जा उत्पन्न करते हैं । बहुत से ऐसे रोग हैं जिसमें रोगी को कोई पदाथ नहीं
दिया जाता है उसमें भी अंगूर दिया जा सकता है । अंगूर सारे भारत में आसानी से
उपलब्ध फल है । पका हुआ अंगूर तासीर में ठंडा, मीठा और दस्तावर होता है । अंगूर फल
मीठा और स्वादिष्ट है यह केवल एक लाभदायक फल नहीं बल्कि इसे एक सम्पूर्ण आहार की
संज्ञा दी है । अंगूर हरे और काले के साथ ही लाल, गुलाबी, नीले, बैंगनी, सुनहरे और
सफेद रंगों के होते हैं । अंगूर की पांच जातियों में तीन हरे और दो काले रंग की
होती है । काले अंगूर (मुनक्का), बैंगनी अंगूर, लम्बे अंगूर, छोटे अंगूर, बीज रहित
अंगूर जिन्हें सुखाकर किशमिश बनाई जाती है । अंगूर के औषधि गुण : 1. अंगूर के सेवन
से फेफड़ों में जमा कफ निकल जाता है इससे खांसी में भी आराम आता है अंगूर जी
मिचलाना, घबराहट, चक्कर आने वाली बीमारियों में भी में भी लाभदायक है । 2. श्रवांस
रोग व वायु में भी अंगूर का प्रयोग हितकर होता है । 3. लाल अंगूर में
रिस्वेराट्रोल रसायन हृदय को वृद्धावस्था के प्रभावों से सुरक्षित रखता है इसलिए
इसे आयु बढ़ाने वाला प्रसिद्ध फल है । फलों में यह सर्वोत्तम एवं निर्दोष फल है ।
निरोगी के लिए यह उत्तम पौष्टिक खाद्य है तो रोगियों के लिए बलवर्धक भोजन है । 4.
काले अंगूरों में ओरोस्टिलवेन नामक पदार्थ पाया जाता है जो एक एंटी-आॅक्सीडेंट हैं
। अंगूर के अनगिनत लाभों में एक है अवसाद दूर करने के लिए अंगूर मंे असाधारण
प्रभाव होता है । अंगूर दुख व चिंता और तनाव दूर करने में अत्याधिक प्रभावशाली है
। 5. अंगूर का पोटेशियम प्रफुल्लता प्रदान करता है और हृदय गति को नियंत्रित करने
में प्रभावी है । 6. अंगूर शरीर से विषैले पदार्थो को बाहर निकालता है । रक्त को
साफ करता है और रक्तवर्धक होने के कारण सुस्ती दूर करता है । शरीर के किसी भी भाग
से रक्त स्त्राव होने पर अंगूर के एक गिलास ज्यूस में दो चम्मच शहद घोलकर पिलाने
पर रक्त की कमी को पूरा किया जा सकता है । अंगूर का शरबत ‘‘ अमृत तुल्य’’ माना गया
है । अंगूर को बदहजमी, उच्चरक्त चाप और चर्म रोगों में अत्यधिक लाभदायक मानते हैं । 7. अंगूर में क्षारीय तत्व बढ़ाने की
अच्छी क्षमता के कारण ही शरीर में यूरिक एसिड की अधिकता, मोटापा, जोड़ों का दर्द,
रक्त का थक्का जमना, दमा, नाड़ी की समस्या व त्वचा पर लाल चकत्ते उभरने आदि
स्थितियों में इसका सेवन लाभकारी होता है । 8. अंगूर के बीज के सत्व से कैंसर
कोशिकाओं को नष्ट किया जा सकता है बीज का सत्व कैंसर कोशिकाओं के डीएनए को
क्षतिग्रस्त कर देता है और कैंसर का विकास नहीं हो सकता है । 9. गर्भवती माताओं को
गर्भस्थ बच्चे के लिए, और जिन माताओं का दूध कम हो तथा शिशु भूखा रहता हो तो वे
अंगूर का सेवन करें लाभकारी रहेगा । 10. आधा सिरदर्द में अंगूर का रस सूर्योदय से
पूर्व लेना रोग मुक्ति दिलाता है । 11. जी मिचलाना, घबराहट और चक्कर आने की स्थिति
में एवं घाव जल्दी भरे इसके लिए अंगूर खाने की सलाह दी जाती है । 12. काले अंगूर में पाए जाने वाले फलैवोनायडस का सीध संबंध तंत्रिका कोशिकाओं से
रहता है । इनके बीच होने वाला संवाद मस्तिष्क कोशिकाओं के पुनरूत्पादन को बढ़ावा
देता है इससे अल्पकालीन एंवम् दीर्घकालीन
याददाश्त को सुधारने में मदद मिलती है और इससे अल्जाइमर का इलाज किया जाता है ।
13. आरोग्य तथा शक्ति से भरपूर अंगूर क्योंकि अंगूर के प्रत्येक दाने में शक्ति
विद्यमान रहती है ।
अंगूर के व्यंजन: - 1. अंगूर की
चटनी - मीठी चटनी स्वादिष्ट तो है साथ में स्वास्थ के लिहाज से भी अच्छी है ।
इसमें खजूर पीस कर डाल सकते हैं । संेधा नमक, काली मिर्च या लाल मिर्च एवं शक्कर
डालें । भारत में अंगूर अधिकतर ताजा ही खाया जाता है वैसे अंगूर के कई उपयोग हैं ।
इससे किशमिश, रस एवं मदिरा भी बनाई जाती है । .उत्तर भारत में लगाई जाने वाली कुछ
किस्मों की विशेषताएं नीचे दी जा रही हैं । परलेट - शीघ्र पकने वाली किस्मों में
से एक है अधिक फलदायी और ओजस्वी । गुच्छे माध्यम, बड़े तथा गठीले होते हैं एवं फल
सफेदी लिए हरे तथा गोलाकार होते है । ब्यूटी सीडलेस - यह वर्षा के आगमन से पूर्व मई के अंत तक पकने वाली किस्म है गुच्छे
मध्यम से बड़े लम्बे तथा गठीले होते हैं । फल मध्यम आकार के गोलाकार बीज रहित एवं
काले होते हैं । पूसा सीडलेस - यह किस्म जून के तीसरे सप्ताह तक पकना शुरू होती है
। गुच्छे मध्यम, लम्बे बेलनाकार सुगन्धयुक्त एंव गठे हुए होते हैं । फल छोटे एवं
अंडाकार होते हैं । पकने पर हरे पीले
सुनहरे हो जाते हैं । फल खाने के अतिरिक्त अच्छी किशमिश बनाने के लिए उपयुक्त हैं
। .पूसा नवरंग - यह संकर किस्म है जो शीघ्र पकने वाली काफी उपज देने वाली किस्म है
। गुच्छे मध्यम आकार के होते हैं फल बीजरहित, गोलाकार एवं काले रंग के होते हैं ।
इस किस्म में गुच्छा भी लाल रंग का होता है । यह किस्म रस एवं मदिरा बनाने के लिए
उपयुक्त है । चिड़िया अंगूर को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाती है । फल पकने के समय
चिड़िया गुच्छे खा जाती है । अतः घर के आंगन में लगी बेल के गुच्छों को हरे रंग की
मलमल की थैलियों से ढक देना चाहिए । बड़े-बड़े बगीचों में नाइलोन के जाल से ढक दें ,
ढोल बजाकर चिड़ियों से छुटकारा पाया जा सकता है । अंगूर की पूरे साल खूब मांग रहती
है लेकिन अंगूर से किशमिश, शरबत बनाया जाते हैं । अंगूर के कई मूल्यवर्धित उत्पाद
बनाए जा सकते हैं जिसमें जैम, जैली, शरबत, रस, किशमिश, मक्खन आदि प्रमुख हैं । अंगूर
से किशमिश बनाना:- ऐसी किस्म जिसमे कम से कम 20 प्रतिशत मिठास हो । किशमिश 3
विधियों से तैयार की जाती है 1. प्राकृतिक प्रक्रिया 2. गंधक प्रक्रिया 3. कृत्रिम
विधि । 1. प्राकृतिक विधि में एक टेª में फेलाकर तेज धूप में 6-7 दिन तक रखते हैं
। उलटते पलटते रहते हैं फिर छायादार स्थान पर रख कर हवा लगने दें । इसमें किशमिश
मुलायम रहती है तथा इसका रंग भी खराब नहीं होता है । इसमे ं15 प्रतिशत नमी रहती है
। 2. गंधक प्रक्रिया - इसमें किशमिश का रंग बिलकुल नहीं बदलता है किशमिश हरी रहती
है ंधूप में सुखाने से किशमिश का रंग थोड़ा भूरा हो जाता है । किशमिश पर तेल की परत
भी चढ़ाई जा सकती है तेल लगाने से किशमिश चमकीली हो जाती है और इसे लंबे समय तक
भंडारित किया जा सकता है । 3. कृत्रिम प्रक्रिया से किशमिश बनाने के लिए
माइक्रोवेव किरणों से अंगूरों को सुखाया जाता है । जिससे फल का रंग, खुशबू व पोषक
तत्व ताजे जैसे बने रहते हैं
अंगूर का शरबत - साफ अंगूर एवं
बराबर मात्रा में पानी डालकर 10 मिनट तक पकायें । एक बर्तन में चाशनी जिसमें
सिट्रिक एसिड एवं पोटेशियम मेटाबाइ सल्फाइट मिलाएं । फिर शरबत में मिला कर साफ
बोतल में भरकर ठंडे स्थान पर रखें । अंगूर का पौषकमान: प्रत्येक 100 ग्राम अंगूर में लगभग 85.5 ग्राम पानी, 10.2 ग्राम
कार्बोहाइडेटस, 0.8 ग्राम प्रोटीन, 0.1 ग्राम वसा, 0.03 ग्राम कैल्शियम, 0.02
ग्राम फास्फोरस, 0.4 मिलीग्राम आयरन, 50 मिलीग्राम, विटामिन बी 10 मि.ग्रा.,
विटामिन सी 8.4 मि.ग्रा., विटामिन पी 15 यूनिट, विटामिन ए 100 से 600 मि.ग्रा.
टैनिन 0.41-0.72 ग्राम टार्टरिक अम्ल पाया जाता है । सोडियम, क्लोराइड, पोटेशियम,
सल्फेट, मैग्नििशियम तथा एल्युमिनयम महत्वपूर्ण तत्व भरपूर मात्रा में होते हैं ।
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