सोेन चिरैया - सुनहरी छोटी प्रजाति
सोेन चिरैया ऐसी चिड़िया है जो कि
सिर्फ फूलों का रस चूसती है , पर आज यह सोेन चिरैया विलुप्त होने की कगार पर है ।
सोेन चिरैया का भोजन सिर्फ फूलों का रस यानि मकरंद है । फूलों की खेती करने वाले
बताते हैं कि सोेन चिरैया का आशियाना फुलवारी है । दूरसंचार की विभिन्न कम्पनियों
ने टावरों का जाल बिछा दिया है इनसे निकलने वाली किरणों की चपेट मंे आकर बड़े
पैमाने पर चिड़ियों की मौत हो रही है ।
सोेन चिरैया की संख्या में कमी की यह बहुत
बड़ी वजह है । इस चिड़िया का व.जन 10-20 ग्राम होता है । श्याम रंग की इस चिड़िया के
गले में सुनहरी धारी होती है, जो सूर्य की किरण पड़ते ही सोने जैसा चमकती है । रंग
और लकीर की वजह से ही इसे ‘‘ सोेन चिरैया ’’ या ‘‘श्याम चिरैया’’ कहा जाता है ।
इसकी पूंछ भी चोंच की तरह नुकीली होती है और जीभ काले नाग की तरह । अपनी लम्बी जीभ
को सांप की तरह बाहर-भीतर कर वह फूलों का रस चूसती है । दूसरी प्रजाति जो विलुप्त
होने की कगार पर है, ये पक्षी नारियल के पेड़ों पर घोसला बनाती है, ये पक्षी दूसरे
पक्षियों के घोसलों में अपने अंडे देती है ।
सोन चिरैया - ( चिकबरी बड़ी प्रजाति
- ग्रेट इंडियन बस्टर्ड बर्ड )
लुप्तप्राय ग्रेट इंडियन बस्टर्ड
(सोन चिरैया) मस्स्थलीय पर्यावरण प्रणाली में पक्षियों का सुरक्षित आश्रयस्.थल
बनाया हुआ था । यह उद्यान का सबसे बड़ा आकर्षण ग्रेट इंडियन बस्टर्ड ( सोन चिरैया )
नामक पक्षी है, जो एक लुप्तप्राय प्रजाति है और केवल भारत में ही पाया जाता है ।
विलुप्त हो रही है सोन चिरैया - दुनिया की सबसे वजनदार पक्षियों में से एक सोन
चिरैया की प्रजाति लुप्त होने की कगार पर है ।
सोन चिरैया एक मीटर ऊंची होती है और
इसका वनज 15 किलो होता है । सोन चिरैया को कभी भारत और पाकिस्तान की घासभूमि में
पाया जाता था, लेकिन अब इसे केवल एकांत भरे क्षेत्रों में देखा जाता है, आखिरी बार
राजस्थान में इस अनोखे पक्षी का गढ़ माना गया था । पक्षी सोन चिरैया हुकना या
तुकदार भी कहलाता है । डीलडौल में गिद्ध के समान, सिर तक ऊंचाई कोई तीन फीट, व.जन
कोई 13 किलोग्राम - कुछ कुछ शुतुरमुर्ग की तरह दिखेन वाले इस पक्षी का शरीर बगैर
बालों वाली टांगों के समकोण पर टिका होता है ।
सफेद गर्दन, काली खोपड़ी, चैड़े पंखों
की नोक के पास सफेद -सा धब्बा और सिर पर कलगी-ये कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जिनके कारण
सोन चिरैया कुछ अलग ही दिखती है । जंगलों से सोन चिरैया के लुप्त होने के लिए
शिकार के साथ -साथ वहां के प्राकृतिक वृक्षों की संख्या कम होना ही जिम्मेदार है ।
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