गौरेया - विलुप्त पक्षी (संरक्षण एक जरूरत )
भारत के हिन्दी क्षेत्र में यह गौरेया के नाम से लोकप्रिय है पर पंजाब में चिड़ी, उर्दू में चिड़िया तथा मराठी में चिमानी ने नाम से जानी जाती है । प्राणी वैज्ञानिक इसे घरेलू चिड़िया ( पासर डोमेस्टिकस) के नाम से जानते हैं। घरेलू गौरेया जो यूरोप और एशिया में सामान्य रूप से हर जगह पायी जाती है । अमेरिका, अफ्रिका, न्यूजीलैंड और आस्टेलिया के नगरीय बस्तियों में इसने अपना घर बनाया हुआ है प्रजातियां - गौरेया की 6 प्रजातियाँ प्रसिद्ध हैं - हाउस स्पैरो, स्पेनिश स्पैरो, सिंड स्पैरो, रसेट स्पैरो, डेड सी स्पैरो और ट्री स्पैरो । इनमें से हाउस स्पैरो को गौरेया कहा जाता है । यह विश्व में सबसे अधिक पाए जाने वाले पक्षियों में से है पर आज इसके संरक्षण की बात की जा रही है । गौरेया एक छोटी चिड़िया है यह हल्के भूरे रंग या सफेद रंग में होती है । इसके शरीर पर छोटे छोटे पंख और पीली चैंच व पैरों का रंग पीला होता है । नर गौरेया की पहचान उसके गले के पास काले पंख होते हैं । पर्यावरण गडबड़ से पक्षियों का अस्तित्व संकट में पड़ गया है । पक्षी प्रकृति की शोभा बढ़ाते हैं भोर की शुरूआत पक्षियों के कलरव से होती है । पिछलें कुछ वर्षो से आसमान में उड़ने वाले और पेड़ों पर आशियाना बनाने वाले पक्षियों की संख्या में तेजी से कमी आयी है । कुछ प्रजाति के पक्षी तो विलुप्त हो चुके हैं तो बहुत से पक्षी विलुप्त की कगार पर हैं । कभी होता था कि घरों की छत पर कोैए आकर बैठते थे उनकी कर्कश आवाज एवं घर घर में गौरेया के घोसलें होते थे पर आज इस की कमी के कारण हैं - पक्के मकानों का निर्माण, लुप्त होते बाग बगीचे, खेतों में कीटनाशकों का उपयोग, पक्षियों के भोजन स्त्रोंतों की उपलब्धता की कमी तथा कुछ और भी ............
इसके अतिरिक्त मोबाइल टावरों से निकलने वाली तरंगों को भी गौरेया के लिए हानिकारक माना जा रहा है ।
विश्व गौरेया दिवस ( वल्र्ड स्पेरो डे ) हमें इस बात के लिए आगाह करता है कि गौरेया पर संकट के बाद मॅंडरा चुके हैं । आज जंरूरत है इस प्रजाति के संरक्षण की । आधुनिकीकरण के कारण गौरेया की संख्या में मूलभूत कमी है । आज छोटे बच्चों को चिड़या फोटे फ्रेम या किताबों में दिखाना पड़ रही है । आपने ने कभी सोचा है इसका जिम्मेदार कौन है !
गौरेया एक सामाजिक पक्षी है । गौरेया को एक बुद्धिमान चिड़िया माना गया है गौरेया का प्रमुख आहार अनाज के दाने, जमीन में बिखरे दानें तथा कीड़े मकोड़े है
कहाँ गुम हो गई तो तुम गौरेया
नहीं सुनी चहचहाहट एक अरसे से
क्या करें हम तुम फिर लौट आओ
ताकि हम बच्चों को कह सकें कि
ऐसी होती है गौरेया
गाना गा सके
चुन चुन करती आई चिड़िया
दाल का दाना लाई चिड़िया
प्रदूषण और विकिरण से शहरों का तापमान बढ़ रहा है जिससे घबराकर गौरेया ने अपने घौसले के लिए शहर से दूर जाकर कहीं अपना नया आशियाना तो नहीं खोज लिया ।
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